चल रहा राही अकेला ही नहीं,
साथ आँसू का उजाला चल रहा।
जल रहा दीपक न यह इस रात में,
सुबह लाने को वियोगी जल रहा॥1
पीर पथ की सहचरी वन कर चली।
हर कली के साथ मिट्टी की डली॥
राह के दोनों किनारे हाथ हैं।
राह के पत्थर पगों के साथ हैं॥2
गल रहा राही अकेला ही नहीं,
साथ में हिमगिरि युगों से गल रहा॥
चल रहा राही अकेला ही नहीं,
साथ आँसू का उजाला चल रहा॥3
राह की दूरी न किस के सामने,
हाय! मजबूरी न किस के सामने।
पर पगों की ओर आँसू ढल रहा,
भूल कर दूरी विचारा चल रहा॥4
ढल रहा आँसू अकेला ही नहीं,
सान्ध्य पथ पर सूर्य साथी ढल रहा।
चल रहा राही अकेला है,
साथ आँसू का उजाला चल रहा॥5
साथ में हैं दीप दो जलते हुए,
हाथ में हैं अश्रु दो ढलते हुये।
साथ हैं तारे गगन के रात में,
सूर्य साथी बन गया है प्रात में॥।6
चाँद का संसार रजनी में जला,
सूर्य का संसार दिन में जल रहा।
चल रहा राही अकेला ही नहीं,
साथ आँसू का उजाला चल रहा॥7
चल रहा राही निडर विश्वास पर,
उड़ सका पक्षी निडर आकाश पर।
लक्ष्य तक पथ साथ में आगे बढ़ा,
स्वयम् का विश्वास चोटी पर बढ़ा॥8
जो स्वयम् को मान एकाकी रुका,
जिन्दगी अपनी स्वयम् वह छल रहा।
चल रहा राही अकेला ही नहीं,
साथ आँसू का उजाला चल रहा॥9
धूलि में मिल बीज डाली पर खिला,
जो चला वह राह से आगे मिला।
कौन है जो रोक ऐसे पग सके,
जिन्दगी वह है कि जिससे पथ थके॥10
जल रहा दीपक अकेला ही नहीं,
शलभ भी जलते अंधेरा जल रहा।
चल रहा राही अकेला ही नहीं,
साथ आँसू का उजाला चल रहा॥11
रघुवीरशरण मित्र