“ज्ञानी ब्रह्म को जानना चाहता है। भक्त के लिए भगवान सर्वशक्तिमान, षड़ैश्वर्य पूर्ण भगवान हैं। परन्तु वास्तव में ब्रह्म और शक्ति अभिन्न हैं, वे ही सच्चिदानन्दमयी हैं। जैसे मणि और उसकी ज्योति। मणि की ज्योति कहने से ही मणि का बोध होता है, और मणि कहने से ही उसकी ज्योति का। बिना मणि को सोचे उसकी ज्योति की धारणा नहीं हो सकती, वैसे ही बिना मणि की ज्योति को सोचे मणि की भी। एक ही सच्चिदानन्द की शक्ति के भेद से उपाधि-भेद होता है इसलिए उनके विविध रूप होते हैं।
“‘तारा, वह तो तुम्हीं हो।’ जहाँ कहीं कार्य (सृष्टि, स्थिति, प्रलय) है वहीं शक्ति है, परन्तु जल के हिलकोरे, बुलबुल आदि होने पर भी जल हैं। सच्चिदानन्द ही आद्यशक्ति है- जो सृष्टि, स्थिति प्रलय करती है। जैसे कप्तान कोई काम नहीं करते, तब भी वही हैं, और जब वे लाट साहब के पास चले हैं तब भी वही हैं। केवल उपाधि का भेद है।”
-स्वामी रामकृष्ण परमहंस