सात्विक शब्दों की प्रचण्ड शक्ति

August 1960

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(श्री आत्मदर्शी)

आधुनिक मनोविज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि जो-जो शब्द जानकर या अनजान में अपने ही मुख से उच्चारण करते हैं, वे हमारे जीवन, हमारी आदतों और व्यवहार को प्रभावित करते हैं। मनुष्य अनजान में कुछ न कुछ बोलता रहता है। किन्हीं शब्दों का प्रयोग कर बैठता है। कुछ ही कह देता है, पर हम यह नहीं समझते कि हमारे इन शब्दों में जीवन को बनाने या बिगाड़ने की शक्ति छिपी हुई है। शब्दों के दो रूप हो सकते हैं, शुभ और सात्विक शब्द जैसे “महाशय, देवियों”, महाराज, बन्धुवर, महात्मा, प्रियवर, राम, कृष्ण, हरि, ओम इत्यादि। दूसरी ओर अशुभ और कुत्सित शब्द जैसे दुष्ट, राक्षस, पापात्मा, बदमाश, शरारती तथा असंख्य गालियाँ। हम नहीं जानते कि दैनिक जीवन में किस वर्ग के शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं तथा उनका क्या प्रभाव होगा?

स्मरण रखिए आपके मुख से निकलने वाला हर एक शब्द, प्रत्येक स्वर, (चाहे उसका कुछ भी अर्थ हो) हमारे समग्र शरीर को चलायमान कर देता हैं। हमारी सूक्ष्म नाड़ियाँ झंकृत हो उठती हैं। हमारे मुखमण्डल के अवयव विशेष रूप से तनते या ढीले पड़ते रहते हैं। हमारे ओष्ठ हिलते हैं, पर साथ ही हमारे नेत्र, हमारे कपोल, हमारा मुखमण्डल एक विशेष तरह से देदीप्यमान हो उठता है।

प्रत्येक शब्द के साथ भावों और नाना अर्थों का एक विपुल संसार जुड़ा हुआ है। जब हम अपना प्रिय शब्द बोलते हैं, तो गुप्त रूप से उससे संयुक्त समस्त भाव, विचार, कथाएँ और प्रभाव हमारे शरीर में एक बार ही घूम जाते हैं। उनसे हमें गुप्त आत्मिक बल मिलता है। जब महात्मा गान्धी जी के गोली लगी तो उनके मुख से “हे राम।” शब्द निकले और वे इन शब्दों के साथ धड़ाम से पृथ्वी पर ढेर हो गये। इन शब्दों के उच्चारण में गाँधी जी ने गुप्त आत्मिक शक्ति के अनुभव किया था। हिन्दू सेनाएँ “महावीर हनुमान की जय” बोलकर अनेक युद्धों में विजय प्राप्त करती रही हैं। अनेक व्यक्ति “शिव” का प्रयोग करते हैं। कुछ “हरिकृष्ण” शब्द बोलते हैं, कुछ “राधाकृष्ण” कहते हैं। हिन्दू देवी-देवताओं के नाम बोल-बोलकर भारतीय जनता प्राचीन काल से शक्ति संग्रह करती चली आई है। “सत्यनारायण देगा, गुरु रक्षा करेगा, सत्य श्री-काल, प्रभु देगा” आदि-2 अनेक शब्द हम दैनिक जीवन में प्रयोग करते हैं। प्रत्येक शब्द के साथ संयुक्त विचार गुप्त मन में भर जाते हैं।

इन सात्विक शब्दों के उच्चारण से, एक शक्तिशाली पवित्र विचारधारा और शुद्ध सात्विक भाव हमारे मानसिक जगत में फैल जाते हैं। पूरा मानसिक वातावरण उसी स्वर और विचार से आच्छादित हो उठता है। शरीर का अणु-अणु उसी शब्द से काँप उठता है, उसी के अनुसार नए सिरे से ढलने लगता है।

आप कोई शब्द पूरे विश्वास से उच्चारण कीजिए और साथ ही दर्पण में अपने मुख की आकृति भी देखिए। उस शब्द के उच्चारण से आपके मुख पर क्या क्या परिवर्तन दिखाई देते हैं?

आप पायेंगे कि उस शब्द के भाव या अर्थ के अनुसार ही आपकी आकृति भी बनती बिगड़ती जा रही हैं। जैसे ही क्रोध, आवेश, गाली गलौज या कुत्सित उत्तेजना का कोई शब्द आपके मुख से निकलता है, वैसे ही आपका मधुर चेहरा तन जाता है, ओंठ काँपने लगते हैं, सम्पूर्ण शरीर में अजीब थरथराहट सी उत्पन्न हो जाती है, नेत्र लाल होकर चढ़ जाते हैं। इन बाहरी परिवर्तनों के अलावा शरीर के अन्दर समग्र मानसिक जगत में अजीब कोलाहल, कसक और तेजी पैदा हो जाती है। जितनी देर तक क्रोध के ये कटु शब्द मुख से निकलते रहेंगे, उतनी देर तक आन्तरिक मानसिक संस्थान में भी सर्वत्र भयंकरता छाई रहेगी। वैसी ही कटु और अस्थिर अन्तर स्थिति बनती जाएगी। आपका हृदय क्रोधाग्नि में फुँकने लगेगा। दिल की धड़कन बढ़ जायेगी। शरीर में गर्मी, खुश्की और वायु का प्रकोप प्रतीत होगा। देर तक क्रोध के शब्दों का उच्चारण करने से सिर में भारीपन आ जाएगा और कमर में दर्द रहने लगेगा।

बुरे शब्दों के उच्चारण से मानसिक बीमारियाँ

स्वर विज्ञान बतलाता है कि बुरे, कटु, अशुभ और वासना-मूलक गन्दे शब्दों की जड़ें मनुष्य के गुप्त मन में बैठ जाती हैं। जो व्यक्ति गाली देते हैं, उनकी अश्लीलता उनके गुप्त मन में मौजूद रहती है। दीर्घकाल से मन में जमी हुई वासना का मैल ही इन कुशब्दों और गालियों से बार बार निकला करता है।

प्रत्येक शब्द एक प्रकार का विचार बीज है। जो शब्द मन में एक बार जम जाता है, वही धीरे-धीरे अपने गुण रूपी अंकुरों को चारों ओर फैलाया करता है। ये जड़ें पुनः पुनः वही शब्द बोलने या व्यवहार में लाने से बढ़ पनप कर वृक्ष बन जाती हैं। पहले आदमी इन शब्दों (विशेष रूप से गालियों) का अर्थ नहीं समझता, पर धीरे-धीरे यह शब्द ही अच्छे या बुरे फल प्रकट करते हैं।

जो व्यक्ति या असभ्य जातियाँ मुँह से कुशब्द, गालियाँ, क्रोध और घृणा सूचक कुशब्दों का उच्चारण किया करते हैं, उनके बच्चों के चरित्रों को नीचे गिराने में इन कुशब्दों का विशेष हाथ होता है। बच्चा तो कोमल दूध के समान निष्कपट स्वच्छ मन का होता है। वह जो अश्लील या गन्दे शब्द अपने माँ बाप, पास-पड़ोस या निकट वातावरण से सुनता है, वह उन्हें ही उचित समझ कर उन्हें ग्रहण कर लेता है। बड़ा होने पर इन्हीं शब्दों का गन्दा तात्पर्य समझ कर उधर की ओर ढुलक उठता है। इन्हीं शब्दों के अनुसार उनके जीवन ढलने लगते हैं और वे सदा के लिए पतन के मार्ग पर पड़ जाते हैं।

मनोविज्ञानवेत्ता बतलाते हैं कि प्रत्येक बोला हुआ शब्द गुप्त मन पर प्रबल संस्कार छोड़ता है। उस संस्कार से वातावरण बनता है। यह वातावरण जीवन का निर्माण करता है। अतः हमारी जिह्वा से निकलने वाले शब्दों का जीवन में भारी महत्त्व है। शब्द ही मनुष्य के भाग्य-निर्माता हैं। अच्छे शब्द, प्रेरक शब्द, धर्म भावनाओं और पवित्र संकल्पों से भरे हुए शब्द संसार-संघर्ष में सफलता या विफलता देने वाले हैं।

मधुर शब्द जीवन को सरस या नीरस बनाता है। धार्मिक और वेद के वाक्यों से नूतन विचारों, भव्य भावनाओं और उन्नत संस्कारों की उपलब्धि होती है।

प्रेरक शब्द से मनुष्य कठिनाइयों और उत्तेजना के अनेक क्षणों में विजय पाने में समर्थ हुआ है। विचारकों, महर्षियों, महान कवियों, धर्मोपदेशकों और महापुरुषों के शब्द अनेक व्यक्तियों के जीवन में नया मोड़ उत्पन्न करने वाले होते हैं। शब्द (अर्थात् यह विपुल साहित्य) ही संग्रहित न रहें, तो मनुष्य जाति में जो श्रेष्ठ हैं, वही लुप्त हो जाए। तम के निगूढ़तम क्षणों में भव्य शब्दों द्वारा प्रकाश की अभिनव प्रभा का उदय होता है।

शब्द साधना से सुप्त मानवीय शक्तियाँ जागती हैं। मनुष्य में नई शक्ति और अद्भुत सामर्थ्य का उदय होता है। निष्प्राण जैसे व्यक्ति में नई जान और नई आशा का विकास होता है। कालिदास प्रारम्भ में मूढ़ थे, पर मार्मिक शब्दों ने ही नए ज्ञान का उद्रेक किया था। भारतीय मनीषियों ने इसी मनोवैज्ञानिक तथ्य को आधार मान कर मन्त्र-विज्ञान नामक प्रक्रियाओं को जन्म दिया है। भारतीयों के मुख से निकलने वाले मन्त्र वास्तव में कुछ ऐसे चुने हुए सशक्त, सप्राण और प्रखर शब्द हैं, जो अपना विशेष अर्थ रखते हैं। हमारे आचार्यों ने ये शब्द बड़े अनुभव और ज्ञान के बल पर बनाये और जीवन भर का सारा निचोड़ थोड़े से शब्दों में भर दिया है। मन्त्रों में प्रयुक्त शब्दों का साकार हो जाना, जीवन में पूरी तरह उतर आना और जीवन का उन्हीं के अनुसार चलने लगना मन्त्र सिद्धि होना कहा जाता है। जो इन मन्त्रों की सिद्धि कर लेता है, भारतीय पद्धति के अनुसार उसके जीवन का काया-पलट हो जाता है।

अतः मन्त्रों के सही अर्थ समझिये और जीवन में उतारिये।


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