हिन्दू धर्म में संस्कारों का महत्व

August 1960

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(डॉ. चमनलाल गौतम)

मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा जाता है। वह परमात्मा का राजकुमार है। परमात्मा ने उसे अनेकों प्रकार की अद्भुत शक्तियों से विभूषित किया है जिनकी सहायता से उसने अपना सर्वतोमुखी विकास किया। शारीरिक क्षमता कम होते हुए भी उसने हाथी, शेर आदि को बन्दी बना कर अपने इशारों पर नचाया। विज्ञान के वह वह चमत्कार उसने दिखाए जिसे देखकर बुद्धि भ्रमित हो जाती है, बुद्धि बल से उसने उन-उन वस्तुओं का निर्माण कर लिया जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। नये-नये भौतिक आविष्कार मनुष्य की विकसित बुद्धि का परिचय देते हैं। मनुष्य आज इतना शक्तिशाली हो गया है कि घर बैठे हजारों लाखों व्यक्तियों के भविष्य को मटियामेट कर सकता है। उसने ऐसी मशीनों का निर्माण किया है कि हाथ से काम करने वाले अनेकों व्यक्तियों की अपेक्षा मशीन की सहायता से एक व्यक्ति अधिक काम कर सकता है। परमात्मा ने मनुष्य को बुद्धि की वह महान शक्ति और सम्पत्ति प्रदान की है जिसे पाकर वह धन्य हो गया।

परमात्मा ने किसी भी प्राणी को पूर्ण नहीं बनाया। अपूर्णता की कमी को अनुभव करते हुए वह पूर्ण बनने का प्रयत्न करता है। यही उसके जीवन का उद्देश्य होता है। अन्य प्राणियों की अपेक्षा जहाँ मनुष्य में अधिक गुण हैं वहाँ उसमें कमियाँ भी हैं। पशु उससे बढ़े चढ़े हैं। पशु का बालक जन्म लेते ही उछलने, कूदने लगता है। उसे खड़े होना, चलना, दूध पीना, माता को पहचानना आदि बातें सिखाई नहीं जातीं वरन् वह स्वयं सीख जाते हैं। मनुष्य के बालक के साथ यह बात नहीं हैं। बिना सहायता के वह आगे नहीं बढ़ सकता। उसे प्रत्येक कार्य की शिक्षा दी जाती है। यदि उसे साँसारिक कार्यों की शिक्षा न दी जावे तो वह पशु से भी अधिक विकसित न होगा। उसे सहायता की आवश्यकता पड़ती है।

भारतीय मनीषियों ने हजारों वर्षों के अनुभव के पश्चात यह निष्कर्ष निकाला था कि मनुष्य जीवन केवल खाने-पीने और मौज उड़ाने के लिए नहीं है, चौबीसों घण्टों भौतिक जीवन को सुखी बनाने की दौड़-धूप में लगे रहना कोई बुद्धिमानी की बात नहीं है वरन् इससे भी श्रेष्ठ उद्देश्य जीवन का निर्माण है जिससे वास्तव में मनुष्य मनुष्य बनता है। यही कारण है कि भारतीय ऋषियों ने भौतिक उन्नति को गौण और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति को जीवन का मुख्य उद्देश्य निर्धारित किया था। वह भली प्रकार जानते थे कि “जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद्द्विज उच्यते” जन्म से सभी शूद्र होते हैं। संस्कारों के द्वारा उसे द्विज बनाया जाता है। आवश्यकता आविष्कार की जननी है। उन्होंने ऐसे ऐसे उपाय खोज निकाले जिससे मनुष्य सच्चे अर्थों में मनुष्य बन जाता है। इन उपायों का नाम उन्होंने संस्कार रखा। डॉ. राजबली पाण्डेय ने लिखा है कि संस्कृत साहित्य में संस्कार का प्रयोग शिक्षा, संस्कृति, प्रशिक्षण, सौजन्य, पूर्णता, व्याकरण सम्बन्धी शुद्धि संस्करण, परिष्करण, शोभा आभूषण, प्रभाव, स्वरूप, स्वभाव, क्रिया, काम, स्मरण शक्ति पर पड़ने वाला प्रभाव, शुद्धि क्रिया, धार्मिक विधि विधान, अभिषेक, विचार भावना, धारणा, कार्य का परिणाम क्रिया की विशेषता आदि अर्थों में हुआ है।” महर्षि गौतम ने इस बात का समर्थन किया है कि संस्कारों से नैतिक विकास होता है। उन्होंने दया, क्षमा, अनुसूया, शौच, शम, उचित व्यवहार, निरीहता तथा निर्लोभता-आत्मा के आठ गुणों का जन्म संस्कारों द्वारा होते लिखा है।

हीरे और जवाहरात जिस स्थिति में बाजार में देखे जाते हैं, उस हालत में वह खानों से नहीं निकलते, उनको खराद पर चढ़ाया जाता है, तब वह निखरते हैं। विधिवत संस्कार द्वारा ही उसकी शोभा बढ़ती है। पारे को विधि पूर्वक जारण मारण करके संस्कार द्वारा ही संजीवन रसायन बनाया जाता है। बाग में सुन्दर वृक्ष सुशोभित करने के लिए माली को उसकी बड़ी देख भाल करनी पड़ती है। खाद, पानी, गुड़ाई, निराई, काट-छाँट, कलम आदि अनेक प्रक्रियाओं के द्वारा ही वह पौधे को मन चाहे रूप में बनाता है। जहाँ इस प्रकार के संस्कार करने वाला माली नहीं होता वहाँ पौधे कुरूप, अस्त-व्यस्त, और विकृत परिस्थिति में पड़े रहते हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने नर पशु को द्विज-आदर्श वाद के दृष्टिकोण को अपनाने वाला महामानव बनाने की विधि का आविष्कार किया था जिसे ‘संस्कार विज्ञान’ का नाम दिया गया था। जिस समय लोगों को अपने धार्मिक कृत्यों, कर्मकाण्डों आदि पर आस्था थी और विधिवत संस्कार आदि कराये जाते थे, उस समय यहाँ घर घर में महापुरुष जन्म लेते थे क्योंकि षोडश संस्कारों द्वारा मनुष्य धीरे धीरे महानता के पथ पर आगे बढ़ता रहता है।

आज सब और भौतिकवाद की ध्वनि सुनाई दे रही है। पाश्चात्य दृष्टिकोण को अपना कर हमने अपने धार्मिक विश्वासों को खो दिया है। हिन्दू धर्म के रीतिरिवाज, व्रत, त्यौहार, कर्मकाण्ड, साधना, हवन आदि पर हमारी आस्था कम हो रही हैं। हम उनका उपहास करते हैं। यही कारण है कि आध्यात्मिक दृष्टि से उतने विकसित नहीं हो पाते और दीन हीन बन कर दुःख पाते रहते हैं। यह निश्चय के साथ कहा जा सकता है कि हिन्दू धर्म की प्रत्येक प्रक्रिया में अवश्य कुछ रहस्य छिपा रहता है। वह अन्ध विश्वास पर आधारित नहीं है। वह बुद्धि और तर्क की कसौटी पर खरे उतरती हैं। हम उन्हें बाह्य दृष्टि से देखते हैं, उनकी गहराई तक पहुँचने का प्रयत्न नहीं करते, इसलिए नासमझी के कारण उनकी उपेक्षा करते हैं। अब समय आ गया है कि हम उनको समझें और पुनः उनको जीवन विकास के लिए प्रयोग में लावें।

संस्कारों के महत्व पर परम पूज्य आचार्य जी ने लिखा है कि षोडश संस्कारों के विधि विधान एवं कर्मकाण्ड में आहुतियों, शक्तिशाली मन्त्रों के प्रयोगों, अनेकों रहस्यपूर्ण क्रिया-प्रक्रियाओं के द्वारा विविध अवसरों पर किसी व्यक्ति पर ऐसा सूक्ष्म प्रभाव छोड़ा जाता है कि उसकी मनोभूमि, बुराइयों क्षुद्रताओं से ऊपर उठकर अच्छाइओं एवं महानताओं को ग्रहण कर सके। समय समय पर होने वाले इन षोडश संस्कारों का कर्मकाण्ड तो रहस्य पूर्ण अध्यात्म विज्ञान के चमत्कारी सत्परिणामों से परिपूर्ण है ही साथ ही उस अवसर पर जो शिक्षाएँ दी जाती हैं, वे भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। उत्सव मनाते हुए मनोभूमि को विशेष उल्लसित करके उस समय जो शिक्षाएँ दी जाती हैं वे ठीक समय पर बोये जाने वाले बीज की तरह फलवती होती हैं।

अ. भा. गायत्री परिवार ने भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान का जो बीड़ा उठाया है उसमें संस्कारों को पुनः व्यावहारिक रूप देने का विशेष महत्व है। डबरा आदि कई शाखाओं ने इनके महत्व को भली प्रकार समझा है और उन शाखाओं से विधिवत संस्कार किये जाते हैं। अब किसी भी शाखा को पीछे नहीं रहना है। विधि विधान को समझने और करने के लिए तो संस्कार पद्धति हैं ही। अखण्ड-ज्योति के आगामी अंकों में प्रत्येक संस्कार पर एक लेख माला आरम्भ होगी जिसमें उनके रहस्य और महत्व को दर्शाया जाएगा। आशा है पाठक उनसे कुछ प्रेरणा प्राप्त करेंगे।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118