यदि मानस में दृढ़ निश्चय है,
फिर कहाँ कौन, किस का भय है?
होता विदेश भी अपना घर,
बन जाता है रिपु भी सहचर,
जलते हैं दीप ठोकरों में,
काँटों में फूलों अवसर,
इसमें भी क्या कुछ संशय है?
यदि मानस में दृढ़ निश्चय है।
बंध सकता है झंझा-प्रवाह,
मिल सकती है सिंधु की थाह।
मरु हरे-भरे हो जाते हैं,
खुल सकती है अग्नि में राह,
मुट्ठी में बँधा हिमालय है,
यदि मानस में दृढ़ निश्चय है।
तीनों कालों में तेरी गति,
तू दशों दिशाओं भूपति।
हे जन्म-जन्म के भ्रमित पथिक,
है नहीं अल्प भी इसमें अति-
कण-कण में तेरा परिचय है,
यदि मानस में दृढ़ निश्चय है।
है जगत कलपना का कौशल,
सपनों में लग सकते हैं फल।
आशाएँ पूरी होती हैं,
चाहिए एक विश्वास प्रबल,
पार्थिवता भीतर की लय है,
यदि मानस में दृढ़ निश्चय है।
असफलताएँ अभिशाप नहीं,
अपमानों का संताप नहीं।
सिद्धियाँ बिना दुख-कष्ट सहे
मिलती हैं अपने-आप नहीं,
जो तपा उसी की ही जय है,
यदि मानस में दृढ़ निश्चय है।
-श्री गोविन्द वल्लभ पंत
*समाप्त*