सन् 62 के लिये एक प्राचीन ग्रन्थ की भविष्यवाणी

August 1960

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(श्री भारतीय योगी)

संसार के ऊपर नाश और विपत्तियों की जो काली घटायें छाई हुई हैं और जिनकी चर्चा हम प्रायः राजनीतिज्ञों और भविष्यवक्ताओं के मुख से सुनते रहते हैं, वे इस समय और भी भयंकर रूप धारण कर रही हैं। आशावादी लोग कुछ समय की ऊपरी शान्ति और मेल-मिलाप की बातों को देख कर संसार-संकट के टल जाने की आशा करने लगते हैं, पर शीघ्र ही कोई नई घटना ऐसी हो जाती है कि सर्वनाशी संग्राम का भय बिल्कुल निकट ही जान पड़ने लगता है। पिछले दिनों बड़े राष्ट्रों के कर्णधारों के आवागमन तथा शिखर-सम्मेलन की चर्चा से लोगों में शाँति-स्थापित हो जाने का विचार उत्पन्न होने लगा था, पर एक अमरीका हवाई जहाज द्वारा रूस के ऊपर जासूसी करने से वह समस्त आशा-निराशा में परिणत हो गई और जिस शिखर-सम्मेलन की इमारत को कई महीनों के परिश्रम से खड़ा किया था, वह तीन घंटे के भीतर ही चकनाचूर हो गई। उसके बाद तुरन्त ही दोनों देशों में सैनिक तैयारियाँ बढ़ा दी गईं और एक दूसरे को धमकियाँ दी जाने लगीं। ऐसी दशा में शाँति की आशा करना मन मोदकों के समान ही है। न जाने किस दिन एक साधारण सी घटना के कारण तनातनी पैदा हो जाए और विश्व के प्रमुख राजनैतिक नेताओं की स्पर्धा और अहंकार के कारण युद्ध का शंख-नाद सुनाई पड़ने लगे।

अभी तक इस भावी संकट के सम्बन्ध में जो कुछ विचार किया गया है उससे भविष्यवक्ता इसी निर्णय पर पहुँचे हैं कि इस सम्बन्ध में सबसे कठिन स्थिति सन 1962 के फरवरी मास के प्रथम सप्ताह में उत्पन्न होगी। उस समय लगभग आठ ग्रह एक ही राशि में एकत्रित हो रहे हैं और इसके परिणाम स्वरूप संसार में प्राकृतिक और राजनैतिक हलचल के अत्यन्त बढ़ जाने की पूर्ण आशंका है। ज्योतिषियों के मतानुसार उस समय मंगल, शनि, शुक्र, सूर्य, चन्द्रमा और बृहस्पति यह बात ग्रह एक साथ मकर राशि में आ जायेंगे। केतु इनके पास ही रहेगा और परिस्थिति को गंभीर बनाने के लिए पर्याप्त प्रभाव डालेगा। इन ग्रहों के प्रभाव से आकाश से आने वाली विश्व तरंगों (कॉस्मिक रेज) और आकर्षण तरंगों में ऐसा परिवर्तन होने की संभावना है जिससे पृथ्वी का वातावरण एक साथ क्षुब्ध हो जाए, मनुष्यों के दिमाग भी अशान्त हो उठें। जैसे गर्मी और सर्दी की लहरों से मनुष्य शीघ्र ही व्याकुल हो उठते हैं और उनके नित्य कर्मों में बड़ा अन्तर पड़ जाता है, उसी प्रकार विश्व-तरंगों के प्रभाव से मनुष्य की बुद्धि और दिमाग पर विचित्र प्रकार का प्रभाव पड़ता है और वे ऐसे कार्य करने को तत्पर हो जाते हैं जिनकी साधारण समय में कोई सम्भावना नहीं होती। यह आठ ग्रहों का संयोग भी ऐसा ही अवसर बतलाया जाता है और उस समय के लिए जो संभावनायें प्रकट की जा रही हैं वे काफी भयजनक और नाश की सूचक हैं।

इन भावी घटनाओं के सम्बन्ध में अनेक ज्योतिषियों और राजनीतिज्ञों की सम्मतियाँ हम समय-समय पर पाठकों के लाभार्थ उपस्थित कर चुके हैं। अभी हाल में मद्रास के एक बहुत बड़े विद्वान ज्योतिष प्रेमी ने ग्रह-गणना के फल की जाँच करने के लिए कुम्भकोणम के एक पंडित से प्रश्न किया था, जिनके पास “भृगुसंहिता” के समान भविष्य बतलाने वाला एक अप्राप्य ग्रन्थ है। इस ग्रंथ का नाम “आत्म-नूल” (सूत्र, धागा एवं व्याख्या) है और इसमें व्यक्तियों तथा देशों की भावी घटनाओं पर विस्तार किया गया है। इस ग्रन्थ के द्वारा वर्तमान समय की घटनाओं और आठ ग्रहों के योग का जो फल दिया गया है, उसका साराँश इस प्रकार है-

जब यह सात या आठ ग्रहों का योग पड़ेगा तो लगभग दो या सवा दो दिन तक आकाश स्थित ग्रहों में भयंकर संघर्ष होता रहेगा।

दुनिया के शासकों, विभिन्न देशों के प्रमुख नेताओं, मनुष्य जाति के संचालकों के मस्तिष्क में भारी उथल-पुथल मच जाएगी, जिसके कारण वे ऐसे कार्य करने लगेंगे कि उनके परिणाम स्वरूप उन देशों के निवासियों को अनेक प्रकार के कष्ट सहन करने होंगे।

सामाजिक और साम्प्रदायिक उपद्रवों के कारण लोगों को बड़ा कष्ट उठाना पड़ेगा। विरोधी तत्व विशेष रूप से सक्रिय हो जायेंगे। व्यक्तियों और सम्पत्ति के विरुद्ध हिंसात्मक अपराधों में बहुत वृद्धि हो जाएगी। प्रायः सभी देशों की सरकारें काल्पनिक योजनाओं और दिखावटी उद्योगों की पूर्ति के लिए जनता पर असहनीय टैक्सों का बोझा लाद देगी। संसार के सभी भागों के लोगों की साधारण आय किसी न किसी प्रकार के ऐसे टैक्सों द्वारा हड़प कर ली जाएगी। कहने के लिए ये सब काम सर्व साधारण के हितार्थ होंगे, पर वास्तव में उनके कारण लोगों की तकलीफ और परेशानी बढ़ जाएगी।

प्रकृति और पंचभूतों में हलचल उत्पन्न होने से बड़ी-बड़ी दुर्घटनायें होंगी। महासमुद्र भीषण रूप धारण कर लेंगे। समुद्र का जल पृथ्वी पर चढ़ आयेगा। संसार के अनेक भागों में पर्वताकार लहरें उठकर आस पास की जमीन को डुबा देंगी जिससे लोगों को अकथीय कष्ट उठाने पड़ेंगे।

खौफनाक तूफान और जोरदार वर्षा के कारण अनेक स्थानों में प्रलयकाल का सा दृश्य उपस्थित हो जाएगा। उसी समय अन्य अनेक स्थानों में अवर्षण के फलस्वरूप त्राहि-त्राहि मची होगी और सूर्य की तीक्ष्ण किरणें जमीन और प्राणियों को भून डालेंगी।

सन् 1962 के अन्त तक एक बहुत शक्तिशाली आकर्षण शक्ति सम्पन्न व्यक्ति का आविर्भाव होगा जो कि भगवान के अवतार के समान जान पड़ेगा। यह व्यक्ति दैवी तेज सम्पन्न होगा। जिसके प्रकाश से चारों ओर एक अभूतपूर्व आध्यात्मिक आभा प्रसारित हो जाएगी। (आश्चर्य से स्तम्भित होकर लोग यही कहेंगे कि पिछले दो हजार वर्षों में ऐसी घटना संसार में कभी देखने में नहीं आई। इस भविष्यवाणी से कुछ लोग ऐसा अनुभव करते हैं कि नेताजी सुभाष बोस उस समय जन-साधारण में प्रकट हो जायेंगे, पर हम इस बात पर विश्वास नहीं करते। तो भी लोगों की जानकारी के लिए हमने “नूल” की भविष्यवाणी का साराँश ज्यों का त्यों प्रकट कर दिया है, जिससे यथा समय उसकी परीक्षा की जा सके।)

विभिन्न भागों में सामाजिक कलह और अशाँति की वृद्धि होगी। जातियों और सम्प्रदायों के लड़ाई झगड़े और संघर्ष बहुत बढ़ जायेंगे। जाति भेद की प्रथा चूर-चूर हो जाएगी। सत्य का सूर्य बादलों में छुप जाएगा और परोपकार की भावना प्रायः लुप्त हो जाएगी। इसके परिणाम स्वरूप जो अव्यवस्था और गड़बड़ी फैलेगी, उससे स्त्रियों, मन्दिरों और ईश्वरोपासना के स्थानों के विरुद्ध अपराधों में विशेष रूप से वृद्धि होगी।

पर एक विचित्र बात यह होगी कि ऐसे विपरीत काल में अनेक दिखावटी धर्माचार्य और धर्म-प्रचारक पैदा हो जायेंगे जो प्रकट में जप, तप और भगवान की उपासना का डंका पीटेंगे, पर जिनका उद्देश्य निजी स्वार्थ-साधन ही होगा। सच्चे धर्म का लोप होगा और मिथ्या तथा बनावटी धर्म प्रचलित किये जायेंगे।

इस योग में जो ग्रह आयेंगे वे भी अनिश्चित साथियों के नजदीक में रहने के कारण अपने को अप्रसन्न और कष्ट में अनुभव करेंगे। परिणाम स्वरूप सूर्य का तेज भी पूर्वापेक्षा घट जाएगा। (ग्रहों के इस युद्ध का वर्णन विख्यात ज्योतिषी वराह मिहिर ने भी किया है, पर उसमें सूर्य के तेज हीन होने की बात नहीं लिखी है।)

इस अवसर पर राहु, श्लेषा नक्षत्र में से योग के घर को देखता रहेगा और बहुत हानिकारक सिद्ध होगा। राहु और मंगल दोनों ही सबसे अधिक शक्तिशाली बुराई और नुकसान करने वाले ग्रह माने गये हैं।

यद्यपि मंगल हानिकारक माना गया है, पर दक्षिण दिशा के प्रदेशों को वह लाभकारी सिद्ध होगा क्योंकि वही उन प्रदेशों का स्वामी है। दक्षिण विभाग में और उत्तरी विभाग के भी दक्षिणी प्रदेशों में मंगल रक्षा-कार्य करेगा। (यह स्पष्ट बतलाना कठिन है कि दक्षिणी भाग कहाँ से माने जायें। प्राचीन ग्रंथों में विंध्याचल के नीचे दक्षिण माना गया है। कहीं पर हिमालय से दक्षिणी भाग माना गया है। और कहीं पर मेरु पर्वत से दिशाओं का हिसाब बतलाया गया है। पर मेरु पर्वत कौन सा है यह निश्चित पूर्वक नहीं कहा जा सकता।

मुख्य-मुख्य पहाड़ों पर भी प्रभाव पड़ेगा और ज्वालामुखियों के भड़कने की भी सम्भावना है। जिन देशों में बहुत ऊँचे गगनचुम्बी मकान बनाये गये हैं-(जैसे अमरीका के चालीस और साठ मंजिलों के मकान मशहूर हैं) उन पर विशेष खराब असर पड़ेगा। बहुत विशाल और ऊँची इमारतों को आँधी तूफान, भीषण वर्षा और ओलों से हानि पहुँचेगी। इस समय वर्षा ऐसे अधिक वेग से होगी कि जिससे यही जान पड़ेगा कि इन्द्र ने समस्त बादलों को इसी अवसर के लिए एकत्रित कर लिया है।

नवम्बर 1962 के लगभग सप्त ऋषि के क्षेत्र से एक धूमकेतु (पुच्छल तारा) उदय होगा और पृथ्वी की तरफ आयेगा। यह एक अशुभ चिन्ह होगा। सन् 1960 से भी पृथ्वी के अनेक स्थानों में ऐसी घटनायें होंगी जिनसे सन् 1962 की अति भयंकर घटनाओं का कुछ दिग्दर्शन हो सकेगा।

ग्रहों के योग का प्रभाव संसार के अन्य देशों पर भारतवर्ष की अपेक्षा अधिक पड़ेगा, भारत की “कर्म-भूमि” अपेक्षाकृत सुरक्षित रहेगी। यहाँ भी गंगा और ब्रह्म पुत्र के क्षेत्र में अन्य भागों की अपेक्षा अधिक हानि होगी।

संसार के विभिन्न देशों में जो व्यक्ति सामाजिक, राजनैतिक, अन्य क्षेत्रों के प्रमुख नेता समझे जाते हैं वे बड़े खतरे की स्थिति में पड़ जायेंगे। इसका अर्थ यह नहीं है कि उनकी मृत्यु अथवा नाश अवश्यम्भावी है। पर इस अवसर पर राजनैतिक हलचलें और उलट फेर बहुत जोर के होंगे। जिसके फल से कितने ही प्रसिद्ध नेता शक्ति हीन हो जायेंगे और नये नेताओं का उदय होगा। किसी भी प्रकार का सामाजिक तथा राजनीतिक गम्भीर उलटफेर इस अवसर पर होना अवश्यम्भावी है। इसके सिवा इस समय किसी-किसी स्थान पर समुद्र का सूख जाना और धरातल का फटना और जंगलों तथा पशुओं के लिए संकट उपस्थित होना भी बतलाया गया है।

यह ग्रह-योग सात या आठ ग्रहों का बतलाया गया है। कुछ लोग केतु को इससे अलग बतलाते हैं और कुछ उसे सम्मिलित करते हैं। “नूल” उसे सम्मिलित करने के पक्ष में है। जिन स्थानों में पहाड़ हैं उन पर खराब असर पड़ेगा। इसके लिए “नूल” में “मलेटा इडम” का शब्द आया है। इसका अर्थ पर्वत का निम्न भाग, पर्वत क्षेत्र, पर्वत की उपत्यिका और उनके पास के मैदान सभी से हैं। पर “नूल” के पढ़ने वाले पंडित ने बतलाया कि इस शब्द के दो भाग करके इसका अर्थ सभ्यता के केन्द्र बहुत बड़े-बड़े शहरों और राजधानियों से भी हो सकता है और इस अवसर पर उन पर कुप्रभाव पड़ना सम्भव है।

केतु और राहु का सम्बन्ध ऐसा है कि जहाँ इनमें से किसी एक का शक्तिशाली योग होगा, वहाँ दूसरे का भी पर्याप्त प्रभाव पड़ेगा। इस दृष्टि से इस योग में समस्त नौ ग्रहों को सम्मिलित मानना चाहिए। वास्तव में इस योग के अवसर पर राहु की स्थिति वैसी ही प्रभावशाली हैं जैसी कि अन्य ग्रहों की। इसलिये “नूल” में इसका नाम ‘नव-सम्मेलनम’ दिया गया है। इसका शब्दार्थ तो नौ ग्रहों का सम्मेलन है, पर “नव” का अर्थ नवीन या नया भी होता है। इस प्रकार यह अवसर एक नई दुनिया की सृष्टि होने का है जबकि एक नवीन सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था का उदय होगा और मानवीय सम्बन्धों के मूल्यों में वर्तमान समय की अपेक्षा बड़ा अन्तर पड़ जाएगा। इस दृष्टि से यह पुनर्जीवन या पुनर्निर्माण का समय होगा और जब नई शक्तियाँ पुरानी शक्तियों को हटाकर उनका स्थान ग्रहण करने लगेंगी तो उन दोनों में तनातनी, कलह और संघर्ष होना अनिवार्य है।

इस अवसर पर केवल एक ही योग नहीं है, वरन् “नूल” के मतानुसार इस समय नौ प्रकार के योग हैं-सप्त योग, अष्ट योग, गोल योग, अगोल योग, तिथि योग, अतिथि योग, कर्मयोग, अकर्म योग, कर्तरी योग। पर “नूल” के पंडित इन सबका स्पष्ट अर्थ नहीं बतला सके। जहाँ तक अनुमान किया जाता है “गोल योग“ का सम्बन्ध केवल व्यक्तिगत जन्म कुण्डलियों से होगा। सार्वदेशिक फल से सम्बन्ध रखने वाले योग का नाम “वृहत संहिता” में श्रृंगारक योग लिखा है, पर “नूल” में उसे “अगोल योग“ कहा गया है। नामों के इस अन्तर का क्या कारण है यह समझ में नहीं आया।

मंगल पृथ्वी का पुत्र है। आकाशीय पिंडों में से मंगल ही पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों के शुभाशुभ कार्यों से विशेष प्रभावित होता है। वर्तमान समय की भाँति जब पाप कर्मों की वृद्धि हो जाती है तो उनका कुपरिणाम मंगल तक पहुँचता है और इससे वह क्रोधित और नाराज होता है। समय-समय पर वह मनुष्य जाति को इन कर्मों का दण्ड देता रहता है। मंगल पर्याप्त शक्तिशाली ग्रह है और वह मनुष्यों को बुरे कामों के विरुद्ध चेतावनी देने के लिए भाँति-भाँति की दुर्घटनाओं और आपत्तियों के रूप में दण्ड देता रहता है। पृथ्वी माता यह देखकर दुःखी होती है कि उसका पुत्र ही धरातल पर ऐसी-ऐसी विपत्तियों को भेजता है। इससे पृथ्वी का कलेजा फटने लगता है और परिणाम स्वरूप जगह-जगह भूकम्प, पृथ्वी में दरारें पड़ जाना, पहाड़ों का खिसकना आदि घटनायें देखने में आती हैं।

ऐसा जान पड़ता है, किसी दैवी योजना के अनुसार पृथ्वी निवासियों के पाप कर्म मंगल में पहुँचते हैं, मंगल उनसे नाराज और व्यथित होकर पाप कर्म करने वालों को पाप की सजा देता है। भयंकर तूफान, अग्निकाण्ड, प्रलयंकारी वर्षा और बाढ़, लड़ाई-झगड़े, मारकाट और महायुद्ध भी मंगल के कुपित होने से उत्पन्न होते हैं।

इस प्रकार “नूल” में निकट भविष्य में होने वाली घटनाओं की भयंकरता पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। पर साथ ही उसमें स्पष्ट शब्दों में यह कह दिया गया है कि ईश्वरीय योजना का पूरा रहस्य मनुष्य को कभी ज्ञात नहीं हो सकता। जिन ऋषियों ने “नूल” की रचना की है उन्होंने अपने ऊपर किसी प्रकार का उत्तरदायित्व नहीं लिया है और सर्वत्र यही लिखा है कि ईश्वरेच्छा से ऐसा होना सम्भव जान पड़ता है। इस अवसर के लिए “नूल” में भयंकर घटनाओं का होना अवश्य लिखा है पर उससे ऐसा नहीं जान पड़ता कि तीसरा महायुद्ध ऐसे सर्वनाशी रूप में होगा कि जिससे दुनिया का अस्तित्व ही नष्ट हो जाएगा। आठ ग्रहों के योग से संसार में कई प्रकार की प्राकृतिक और राजनैतिक विपत्तियों का आना सम्भव है और मनुष्य जाति के लिये भयंकर दण्ड सहन करना पड़े, इसके भी चिन्ह दिखलाई देते हैं, पर अन्तिम परिणाम स्वरूप संसार का कल्याण भी हो सकता है। सैकड़ों वर्षों से भिन्न-भिन्न देशों में जो लड़ाई-झगड़े चल रहे हैं और जिनके फलस्वरूप प्रति बीस-पच्चीस वर्ष बाद संसार में घोर हलचल मच जाती है, इनका अन्त होकर एक ऐसी दीर्घकाल व्यापी शान्ति का आविर्भाव हो सकता है, जिसमें मनुष्य को आध्यात्मिक विकास का अवसर प्राप्त हो और वह पशुत्व तथा दानवता की प्रवृत्तियों को त्याग कर देवत्व के गुणों को ग्रहण करने लगे। पर इन स्वर्गीय प्रदेशों में पहुँचने के पूर्व मनुष्य को अपने वर्तमान पापों का प्रायश्चित करना ही पड़ेगा। इस अवसर पर विभिन्न देशों की क्या परिस्थिति होगी और एकत्रित होने वाले आठ ग्रहों के योग का प्रभाव भिन्न भिन्न देशों पर कैसा पड़ेगा इसकी विवेचना आगामी लेख में की जाएगी।


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