आत्म-उपदेश

April 1960

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(1) क्यों बेफायदा चिन्ता करते हो, किससे बेकार डरते हो। कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा न पैदा होता है न मरता है।

(2) जो है सो है, जो हुआ सो हुआ, जो होगा सो अच्छा होगा। तुम अतीत का दुःख न करो। भविष्य से भयभीत न हो / वर्तमान बीत रहा है।

(3) तुम्हारा क्या गया जो तुम रोते हो? तुम क्या लाये थे जो खो दिया। जो लिया यहीं से लिया जो दिया सो यहीं दिया। जो लिया उसी से लिया जो दिया उसी को दिया। जो खाली हाथ आये थे सो खाली हाथ चले।

(4) जो आज तुम्हारा है यह कल किसी और का था और परसों किसी का था न यह किसी का है। तुम इसको अपना समझ कर प्रसन्न होते हो और यही प्रसन्नता तुम्हें अप्रसन्न कर रही है।

(5) परिवर्तन संसार की जान है। जिसको मौत समझते हो यही जीवन है। मिनट में तुम करोड़ों के वारिस और क्षणभर में लावारिस बन जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-बेगाना, दिल से मिटा दो। ख्याल से हटादो। फिर सब तुम्हारा है और तुम सब के हो। न यह जिस्म तुम्हारा है न तुम जिस्म के हो। यह आग से बनता है और यह आग में मिल जुल जाता है। मिट्टी से बनता है और मिट्टी में मिल जाता है। यह पानी से पैदा होता है। और पानी में समा जाता है। यह हवा से भरा हुआ है और हवा में भर जाता है। न हड्डी रहती है, न जबान, कान, आँख का निशान बाकी रहता है, मगर फिर भी तुम्हारा वैभव वैसे का वैसा ही रहता है। फिर तुम सोचो कि तुम क्या हो?

(6) यह जगह तुम्हारी और सब चीज तुम्हारी है। जहाँ से चाहो चल पड़ो, जहाँ पर चाहो ठहर जाओ और जहाँ पर चाहो खत्म कर दो। इसका न कहीं आदि है और न ही अन्त। तुम्हें किसका डर? अपना ही डर और आप ही डराने वाले हो।

(7) उठो तुम परमात्मा के अमृत पुत्रों! तुम प्रकृति की सबसे बड़ी शक्ति का प्रतीक हो। तुम्हारे अन्दर सम्पूर्ण दैवी शक्ति इस प्रकार भरी जैसे बीज में वृक्ष निहित है।

(8) वास्तव में तुमको किसी का डर नहीं, फिक्र नहीं, सन्देश नहीं, दर्द नहीं, तुम स्वयं को उसे सौंप दो।

(9) सब धर्मों में श्रेष्ठ धर्म हरि नाम जपना और निर्मल काम करना।

-के. पी. वर्मा


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