आपकी कठिनाइयाँ क्या हैं?

April 1960

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( डॉ. रामचरण महेन्द्र एम. ए., पी-एच. डी. )

छोटे लोगों को छोटी तकलीफें बड़ी लगती हैं-

क्या आपने पहाड़ियों को देखा है? पहाड़ियों को भोजन, निवास तथा वस्त्र आदि की अनेक असुविधाएं होती हैं। उन लोगों में बेहद गरीबी, बेबसी और लाचारी है। घोर सर्दी, फिर बारिश और तन ढ़कने को वस्त्र तथा गर्मी के लिए ईंधन का अभाव। पैसा पास नहीं। यदि बीमार पड़ जायें, तो दवा दारु की कोई सुविधा नहीं।

पर फिर भी पहाड़ी लोग हम आप से ज्यादा स्वस्थ, सुन्दर, तृप्त और दीर्घजीवी मिलते हैं। अभाव, गरीबी, बेबसी और कठोर ठंड में भी सुखी रहते हैं। उनके पास हर पग पर कठिनाइयाँ हैं। किन्तु उनका साहस देखिए, वे हर प्रकार की कठिनाई को पार कर निरन्तर जीवन में आगे बढ़ते हैं। कभी अनुकूल परिस्थिति न होने की शिकायत नहीं करते। कठिनाइयों से डर कर उन्होंने पहाड़ों पर रहना छोड़ा नहीं है। उनकी पीढ़ियाँ उन्हीं विषम और प्रतिकूल परिस्थितियों में पलती-पनपती आ रही हैं।

संसार में ऐसा कौन है जिसे कठिनाइयों का सामना न करना पड़ा हो? प्रत्येक व्यक्ति ने असंख्य कठिनाइयों में से गुजर कर सफलता की मंजिल पार की है। वे कठिनाइयों से भागे नहीं हैं। जो कठिनाइयों से जितना युद्ध करता है, वह उतना ही मजबूत बनता है। उसमें उतनी ही शारीरिक,मानसिक और आत्मिक शक्तियों का विकास होता है। कठिनाइयाँ मनुष्य के स्वावलम्बन को बढ़ाती हैं और इच्छा शक्ति को प्रबल करती हैं।

जैन मुनि श्री सुखलाल जी के संकल्प बल को देखकर संसार चकित रह गया। उन्होंने अनेक दिन अनशन करके व्यतीत किए। कई सप्ताह केवल जल पी कर बिताये। कई सप्ताह केवल भोजन किया पर जल न पिया। गर्म शिलाओं पर बैठ कर तपस्या की, कई बार ठंडे बर्फ जैसे पत्थरों पर बैठ कर मंत्र जाप किया। फिर अन्त में बीस दिन निराहार रह कर जीवन त्याग दिया। इस घोर तपश्चर्या के बावजूद उन्होंने 60 वर्ष का स्वस्थ जीवन व्यतीत किया। कल्पना कीजिए, उनके मार्ग में कितनी कठिनाइयाँ थी। एक वस्त्र से काम चलाते, मीलों का पैदल सफर करते, घन्टों स्वाध्याय करते, यदि किसी पर क्रोध आ जाता, तो अपने आप को सजा देते, उसका उपवास द्वारा प्रायश्चित करते। 60 वर्ष का उनका जीवन केवल मनोबल के सहारे चलता रहा। वे जीवन भर सबल मन से कठिनाइयों से युद्ध करते रहे। कभी हार नहीं मानी! वे कहा करते थे कि जो व्यक्ति कठिनाइयों से लड़ने और जूझकर अभ्यास करता रहता है, वह नई अप्रत्याशित कठिनाई आने पर उस से कभी भयभीत नहीं होता। डट कर उनका सामना करता है और पूर्ण विजय प्राप्त करता है।

मनुष्य का यह स्वभाव है कि उसे जितना ढीला छोड़ो, वह उतना ही आलसी और निष्क्रिय बनता जाता है। जिसको जितना नर्मी या प्यार से रखो, वह उतना ही कोमल बन जाता है। जंगलों में उगने वाले बेर के वृक्ष को देखिए। न जल न मुलायम उर्वर भूमि, न कोई देख-रेख। ऊपर से झुलसा देने वाली गर्म-गर्म लू, रेत के तूफान, और ऊँट और बकरियों के चर जाने का भय। पर वाह रे बेर के वृक्ष! तू इन सब कठिनाइयों में भी तपस्वी की भाँति अटल अडिग खड़ा है। तेरा कठिनाईयों से लगातार युद्ध करने का आदर्श अनुकरणीय है। वह अंगूर की बेल किस अर्थ की जो तनिक सी धूप या लू से, अथवा तनिक सर्दी से कुम्हला जाय! बेर शूर वीरता का प्रतीक है। कठिनाइयों से सदा युद्ध करने का दिव्य संदेश देने वाला है। राजस्थान में जब वर की सवारी निकलती है तो घोड़े पर चढ़े हुए वर के साथ-साथ एक व्यक्ति बेर के वृक्ष को भी साथ लेकर चलते हैं। ऐसा मालूम होता है मानों हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने वर को सदा कठिनाइयों से युद्ध करने की प्रेरणा दी है। यह बेर का वृक्ष कह रहा है-

“ हे युवक! जीवन में तू इस बेर के वृक्ष की तरह कठिनाइयों से सतत युद्ध करते रहना। प्रतिकूलताओं के सामने कभी पीठ न दिखाना। संघर्ष से ही तु जीवन कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करेगा। इच्छा शक्ति की वृद्धि के लिए तुझे सदा कठिनाइयों से लड़ने का अभ्यास करना है। मेरी तरह निडर और शूर-वीर बन। कायरता की कृति ही मनुष्य के दुःखों का कारण है। शूरवीरता की पौरुष मनोवृत्ति संसार की कठिनाइयों का अन्त कर देती है। तू साहसी है। वीर है। पौरुष का प्रत्यक्ष नर है। जीवन की प्रतिकूलताओं से भागना नहीं।”

निर्बल मन का व्यक्ति कल्पित कठिनाइयों के नर्क में निवास करता है-

आप अपनी समस्याओं को ध्यान से देखिए सब को एक कागज पर स्पष्ट लिख लीजिए। आप पायेंगे कि इनमें से बहुत सी तो धूमिल रेखाएँ भर हैं जो कल्पना लोक की जननी हैं। शायद ये जीवन में कभी भी घटने वाली नहीं है।

कुछ कठिनाइयाँ वाह्य जीवन और समाज से सम्बन्धित हैं। संभव है आप आर्थिक कठिनाइयों में फंसे हैं? या समाज के कुछ व्यक्ति आप से बैर भाव रखते हैं? आप के सामाजिक सम्बन्ध शायद बिगड़े हुए है कन्या के विवाह की कठिनाई में फंसे हुए हैं। राजनीति की किसी पार्टी वाले आपको परेशान कर रहे हैं? आपका व्यापार नहीं चलता समाज में आपको यश और प्रतिष्ठा नहीं मिली है? आपको आपकी नौकरी छूटने का भय बना रहता है? आपके अफसर परेशान करते हैं या आपकी बेइज्जती करते हैं? संभव है आपको बिरादरी वालों ने जाति से बहिष्कृत कर दिया? ये सब बाहरी कठिनाईयाँ है।

साधारण व्यक्ति प्रायः इन्हीं या इसी प्रकार की और बहुत सी बाह्य कठिनाइयों में व्यस्त रहते हैं। इन कठिनाइयों से मुक्ति के लिए वाह्य जीवन की जटिलताओं को बुद्धिपूर्वक हल करना चाहिए। समाज में अपने मित्रों हितैषियों, सम्बन्धियों और परिचितों से मिलकर जटिलता को दूर करना चाहिए।

इन कठिनाइयों का कारण अपने आप को सामाजिक वातावरण में पूरी तरह फिट न कर पाना है। हमें आशा नहीं छोड़नी चाहिए। प्रत्युत योग्यताएँ बढ़ा कर समाज में अपना उचित स्थान बनाना चाहिए। संभव है आप एक नगर या एक पेशे में असफल रहते हो। दूसरा नगर और दूसरा पेशा लीजिए। नए मित्र बनाइये। अपने से बड़ों से सलाह लीजिए। चार व्यक्ति जो कहें, उनकी सहायता से कर्त्तव्य निश्चित कीजिए। कभी-कभी जल्दबाजी न करने से और धैर्यपूर्वक रुकने से कठिनाइयाँ स्वतः सुलझ जाती हैं।

आपके जीवन में जटिल गुत्थियाँ आयेंगी। दो तरफ को प्रलोभन होगा, पर आप धैर्य से रुके रहें। सोचते रहें। बहुत जटिलताएँ तो स्वतः ही हल हो जाएंगी। “उतावला सो बावला”- यह सत्य ही कहा गया है।

बाहरी कठिनाइयाँ आन्तरिक कठिनाइयों का आरोपण मात्र हैं-

वास्तविक कठिनाइयाँ मनुष्य के गुप्त मन में निवास करती हैं। निर्बल मन का व्यक्ति सदा कल्पित भयों में निवास करता है। अभद्र कल्पनाएं किया करता है तनिक सी जटिलता आते ही कायरता दिखाने लगता है। अनेक कठिनाइयाँ मिल कर गुत्थियों (मानसिक जटिलताओं ) की सृष्टि कर देती हैं।

हम अन्दर ही अन्दर ही सोचते हैं, “अमुक कठिनाई आ गई तो क्या करेंगे? यदि हमारी आय आदि का साधन जाता रहा तो क्या होगा? यदि दुकान में घाटा हो गया तो क्या होगा? यदि रात में चोरी डकैती या हत्या हो गई तो क्या होगा? यदि कोई हम पर आक्रमण कर बैठा तो क्या होगा? हमारा बच्चा स्कूल गया है। उसे किसी ने चुरा लिया, तो क्या होगा? पत्नी स्वस्थ नहीं रहती। इसकी बीमारी बढ़ गई तो क्या होगा”

इस प्रकार की असंख्य कठिनाइयों की कल्पनाएं आपके मन में हो सकती हैं। कायरता की दूषित मनोवृत्ति इन कल्पनाओं से मिलकर परिस्थितियों को उलझा देती है। कायर होने पर ही हम अपने विषय में हीनता और अशक्तता में अपने आपको अशक्त और निर्बल होने की कल्पना करते हैं। इस जिस परिस्थिति से डर आते हैं, वही हमारी हानि करती है। दूसरी ओर कठिन परिस्थिति से भी यदि हम न डरें और अपनी पूरी शक्ति और साहस बढ़ जाते हैं।

गाँधीजी लिखते हैं, “मैं कायरता को मानव की बड़ी कमजोरी मानता हूँ। आप कायरता से मरें, इसकी अपेक्षा आपका बहादुरी से प्रहार करते हुए और कष्ट सहते हुए मरना मैं बेहतर समझता हूँ। मनुष्य का आध्यात्मिक विकास सदा कठिनाइयों से लड़ते रहने से होता है।”

मनुष्य मन आध्यात्मिक चिन्तन से बलवान बनता है—इस विषय में प्रसिद्ध मनोविज्ञान बेन्ता प्रो॰ लालजीराम शुक्ल की सम्पत्ति दीर्घकालीन अनुभव का निचोड़ है। वे लिखते हैं, “मनुष्य के मन में अपार शक्ति है। वह जितनी शक्ति की आवश्यकता का अनुभव करता है, उतनी शक्ति अपने भीतर से (अर्थात् गुप्त मन से) ले सकता है। जो व्यक्ति अपने आपको कर्त्तव्य -दृष्टि से बड़े-बड़े संकटों में डालता रहता है, वह अपने भीतर अपार शान्ति की अनुभूति भी करने लगता है। उसे अपने संकटों को पार करने के लिए असाधारण शक्ति भी मिल जाती है। उसकी इस प्रकार की आँतरिक शक्ति की अनुभूति ज्यों-ज्यों बढ़ती जाती है, उसकी कार्यं क्षमता भी बढ़ती जाती है। जिस व्यक्ति को अपने कर्त्तव्य का पूरा निश्चय है, जो उसे पूरा करने के लिए सर्वस्व खोने को तैयार रहता है, उसे कोई परिस्थिति भयभीत नहीं करती। कर्त्तव्य का ज्ञान रहने पर बाहरी कठिनाइयाँ घट जाती हैं।”

आध्यात्मिक चिन्तन से मनुष्य शान्तिपूर्वक परिस्थिति पर विचार करना सीखता है। ठंडे मन से विचारने से कर्त्तव्य बुद्धि स्वच्छ हो जाती है, उचित अनुचित का विवेक जाग उठता है। कर्त्तव्य सम्बन्धी उलझे हुए विचार सुलझ जाते हैं। ये विचार सुलझते ही वास्तविक और काल्पनिक कठिनाइयों का स्पष्टीकरण हो जाता है। जो व्यक्ति अपने चारों ओर आपत्तियों को घिरा हुआ पाता है, उसका कारण उसके उलझे विचार ही हैं। अपने मन के विचारों, समस्याओं, और संकटों को दो भागों में विभाजित कीजिए।

1- वे कार्य या निर्णय जो तुरन्त करने के हैं। ये वे कर्त्तव्य हैं जिन्हें आगे नहीं सरकाया या टाला जा सकता।

2- वे कार्य जो अभी कुछ टल सकते हैं और जिनपर अभी शान्तिपूर्वक पुनः विचार किया जा सकता है। इस वर्ग की कठिनाइयों के विषय में दूसरों से सलाह भी ली जा सकती है।

कुछ ठहर कर जल्दबाजी और उत्तेजना छोड़कर आप अनुभव करेंगे कि आपकी बहुत सी पर्वत सदृश कठिनाइयाँ धीरे धीरे कम होती जा रही जब उनका असली समय आयेगा, तो आप पायेंगे कि वे बिल्कुल ही काल्पनिक थी और उनसे द्वंद्व एक मूर्खता ही थी।

यदि हम कर्त्तव्य बुद्धि को जागरुक रखें, नीचे चलने वाली हवाओं की तरह कठिनाइयों से ही समाप्त हो जायं। मनुष्य जितना ही ऊँचे आध्यात्मिक दृष्टिकोण से वस्तुस्थिति को देखता है उतना ही कठिनाइयाँ उसे तुच्छ प्रतीत होती हैं। साहसपूर्ण विचारों में निवास करने से विषम परिस्थितियों पर भी विजय प्राप्त होती है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण वाले व्यक्ति को साँसारिक कठिनाइयाँ तुच्छ लगती हैं। वह सदा उन्हें रौंदता हुआ कर्त्तव्य पग पर आरुढ़ होता है।


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