ज्योतियाँ जिससे जलें अनेक, जलाओ ऐसा दीपक एक!
बुझे जो तूफानों में नहीं,
जले अविराम, तिमिर कर दूर।
धरा पर लाये पुण्य-प्रकाश-
स्नेह तुम दो, इतना भरपूर॥
पंथ ज्योतित हो उठें अनेक, जलाओ ऐसा दीपक एक!
प्रलय की झोंको में बुझ गये-
न जाने कितने दीप अजान।
जलादो, गाकर दीपक राग-
बावरे बैजू की बन तान॥
प्रेरणा भर दो ऐसी एक, स्वतः जागृत हो उठे अनेक!
सृजन हो नया, दृष्टि हो नई-
लगन हो नई, नया विश्वास।
हृदय में ले अदम्य उत्साह-
रचें फिर से नूतन इतिहास॥
पीर यदि भर दो ऐसी एक, कंठ से निकले गीत अनेक!
-रामस्वरूप खरे ‘साहित्य रत्न’