जलाओ ऐसा दीपक एक (kavita)

December 1959

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ज्योतियाँ जिससे जलें अनेक, जलाओ ऐसा दीपक एक!

बुझे जो तूफानों में नहीं,

जले अविराम, तिमिर कर दूर।

धरा पर लाये पुण्य-प्रकाश-

स्नेह तुम दो, इतना भरपूर॥

पंथ ज्योतित हो उठें अनेक, जलाओ ऐसा दीपक एक!

प्रलय की झोंको में बुझ गये-

न जाने कितने दीप अजान।

जलादो, गाकर दीपक राग-

बावरे बैजू की बन तान॥

प्रेरणा भर दो ऐसी एक, स्वतः जागृत हो उठे अनेक!

सृजन हो नया, दृष्टि हो नई-

लगन हो नई, नया विश्वास।

हृदय में ले अदम्य उत्साह-

रचें फिर से नूतन इतिहास॥

पीर यदि भर दो ऐसी एक, कंठ से निकले गीत अनेक!

-रामस्वरूप खरे ‘साहित्य रत्न’


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