महात्मा मुगुटरामजी की चमत्कारी साधना

December 1959

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(श्री वेदप्रकाश अगवाल बी.काम.)

आध्यात्मिक उन्नति द्वारा किस प्रकार एक साधारण दिखलाई पड़ने वाला मनुष्य संसार की सब विभूतियों और शक्तियों का स्वामी बन जाता है, इसका परिचय हमारे मुँजसर (बड़ोदा) निवासी श्री मुगुटराम महाराज के चरित्र से मिलता है। उनको हुये अभी थोड़ा ही समय हुआ है, उनका जन्म सं0 1930 में हुआ था। उनकी शक्तियों का लाभ उठाने वाले अभी हजारों व्यक्ति उस प्रदेश में मौजूद हैं। वे छोटी अवस्था से ही अपने नाना के पास रहे थे, जो स्वयं एक बहुत बड़े साधक और धार्मिक पुरुष थे। इसके फल से मुगुटरामजी में छोटी अवस्था में ही भक्ति और ज्ञान के अंकुर उत्पन्न हो गये थे, जिन्होंने बड़ी आयु में एक विशाल वृक्ष का रूप धारण कर लिया और अपनी छाया तथा फलों से अनगिनत नर-नारियों का कल्याण किया।

मुगुटरामजी को वर्तमान समय की तरह स्कूल या कालेज की शिक्षा प्राप्त नहीं हुई थी। वे प्रायः कहा करते थे कि “अरे भाई, मैं तो केवल गुजराती की दो पुस्तकें पढ़ा हुआ हूँ, अगर नौकरी करनी पड़े तो मुझे कोई दस बारह रुपया से ज्यादा तनख्वाह न देगा, पर भगवान के भजन और गायत्री के जप के प्रभाव से ही मुझे सब प्रकार की सफलता प्राप्त हो सकती है। वे बतलाया करते थे कि मैं रात भर नीचे की तरफ माथा और ऊपर पैर करके तथा पैरों को एक खूँटी से बाँधकर शिवजी का भजन करता था और सुबह 3-4 बजे से लेकर 6-10 बजे तक गायत्री का जप करता था। कभी-कभी लगातार बारह घंटा बैठकर जप ही करता रहता था।” इस प्रकार की कठोर तपस्या और साधना का फल यह हुआ कि उनकी आन्तरिक शक्तियाँ पूर्णरूप से विकसित हो गई और वे प्रतिदिन ऐसे कार्य करते रहते थे जिनको लोग चमत्कार ही मानते थे।

(1) जैसा हमने ऊपर लिखा है मुगुटरामजी नाम मात्र को स्कूल की दो पुस्तकें पढ़े थे। पर उनको अपने आप सब भाषाओं का ज्ञान हो गया था। एक दिन बड़ौदा के एक सरकारी अफसर आये तो उनके साथ तैलंगी भाषा में बात करने लगे, फिर दूसरे व्यक्ति के साथ कर्नाटकी भाषा बोलने लगे। एक दिन कोई फकीर आया तो उसके साथ उर्दू में खूब बातचीत की। काम पड़ने पर अंग्रेजी भी बोल लेते थे।

(2) इतनी कम शिक्षा होने पर भी उनको समस्त शास्त्रों का ज्ञान था। उन्होंने कभी ज्योतिष नहीं सीखी थी, पर वे हजारों मनुष्यों की कुँडली देख कर उनका ठीक-ठीक फल बता देते थे। जिनके पास कुँडली न हो उनकी आकृति तथा हाथ देखकर ही कुँडली तैयार कर देते थे। स्वर-शास्त्र के वे पूरे जानकार थे और कहते थे। कि इसके द्वारा विश्व की समस्त बातों का पता लग सकता हैं। उन्होंने बड़ौदा के पुलिस कमिश्नर श्री घाटगे की स्वर-शास्त्र की दो चार बातें बतला दी थी। उसके फल से एक भयंकर डाकू मीरखाँ को पकड़ते समय उनकी अद्भुत रीति से रक्षा हो जाती थी।

(3) योग शास्त्र की उनको पूरी जानकारी थी। वे षटचक्रों का ऐसा वर्णन करते थे कि मानों उनको आँखों से प्रत्यक्ष देख रहे हों। शरीर के किस अंग में कौन सी चीज है इसका वर्णन स्पष्ट रूप से कर देते थे। प्राणायाम, आसन मुद्रा आदि सब विषयों को वह भली प्रकार समझा देते थे।

(4) वे कहते थे नक्षत्रों का तमाम वनस्पतियों के साथ सम्बन्ध है। इस लिये अगर खास नक्षत्र में कोई वनस्पति लाई जाय और रोगी को विशेष विधि पूर्वक दी जाय तो उसका रोग अवश्य दूर हो जायगा। इस वनस्पति का अमुक देवता के लिये अमुक नक्षत्र में हवन करने से भी बड़ा लाभ हो सकता है।

(5) मंत्र शास्त्र के बड़े ज्ञाता थे और किस मंत्र का प्रयोग कहाँ करना यह बहुत अच्छी तरह जानते थे। स्वयं अनेक मंत्रों की रचना अद्भुत रीति से करते थे। दूसरे मंत्रों के स्वरूप और सामर्थ्य को भली प्रकार जानते थे। वे आवश्यक ‘बीज’ अक्षर मंत्र के आरंभ, अंत या मध्य में लगाकर साधन का ऐसा विधान बतला देते थे, कि मंत्र का प्रयोग अवश्य सफल होता था।

(6) वे वेदों के मंत्र बोलकर उनका तात्पर्य अच्छी तरह समझा देते थे। प्रसंग आने पर उपनिषदों की कथायें सुनाते थे। पुराण तो ऐसा लगता था कि उनको कंठस्थ ही है। जो पंडित जिस प्रसंग को लेकर उनके पास आता वे उसी विषय के सब प्रकार के शास्त्रीय प्रमाण उसे सुना देते थे।

(7) अपनी जन्म जात आत्म शक्ति और गायत्री की असाधारण उपासना के बल से उनका वचन सिद्ध हो गया था। जो कुछ मुँह से निकल जाता वही सत्य हो जाता। उदाहरणार्थ ब्राह्मण भोजन करने को बैठे और पानी बरसने लगा, तो आप कहते कि वर्षा तो अभी बन्द हो जायेगी और वैसा ही हो जाता। “ जा, तेरा ज्वर अभी उतर जायगा।” यह कहते ही ज्वर दूर हो जाता। जा, भगवान तुझे पुत्र देगा, तो शीघ्र ही पुत्र का मुख दर्शन होता। जाओ, महादेव पर सवा पाँच सेर दूध चढ़ाना तुम्हारा दुःख दूर हो जायगा तो, वैसा ही होता। साँप के काटे मनुष्यों से कहते जाओ तुम्हारा जहर उतर जायगा, तो साँप के काटे से लोग बच जाते। इस तरह असंख्य लोगों ने उनके वचन की सिद्धि से लाभ उठाया था।

(8) कभी किसी की रक्षा के लिये आवश्यकता पड़ जाती तो वे दूसरा शरीर धारण कर लेते थे। इसी प्रकार जंगल में नारायण स्वामी की शेर के आक्रमण से रक्षा की थी। पक्षी क्या बोल रहे हैं इसे वे भली प्रकार समझ जाते थे। वे कहते थे कि जब हम परावाणी में प्रवेश कर जाते हैं तो संसार के समस्त प्राणियों की बोलियाँ और भाषायें समझ में आने लग जाती हैं।

(9) तप द्वारा उनको लक्ष्मी की भी सिद्धि हो गई थी। इस लिये बिना किसी से कुछ भी माँगे और पैसा रुपया का स्पर्श न करने पर भी वे राजाओं की तरह खर्च करते रहते थे। अपने जीवन में उन्होंने लाखों मनुष्यों को अन्नदान और दक्षिणा दी थी। राजाओं के से बड़े-बड़े ब्रह्मभोज करते रहते थे, बड़े-बड़े यज्ञ करते थे। अपने नाना और माता के मरने पर पास में पैसा न होते हुये भी उनकी क्रिया कर्म ऐसे धूमधाम से की कि जैसा कोई लखपति भी नहीं कर सकता।

(10) जो कोई अपने किसी मृत सम्बन्धी से बातचीत करना चाहता तो वे उसकी आत्मा को तुरन्त बुला देते और उससे स्पष्ट बातें करते हुये उसकी इच्छा पूछने वाले को बता देते थे। एक बार ईडर रियासत के मुँसिफ श्री चतुर्भुज माणकेश्वर भट्ट उनके पास आये और अपनी मृत पत्नी से बात करने की इच्छा प्रकट की। उन सज्जन को इस बात का पूरा विश्वास हो गया कि वास्तव में उनकी पत्नी की आत्मा ने आकर बातचीत की थी। भविष्य के विषय में वे प्रायः लोगों को पहले से बतला देते थे। दूसरों के मन की बात जानकर बिना कहे ही उसका उत्तर दे देना उनके लिये बिल्कुल साधारण बात थी।

(11) एक बार उनकी बातचीत एक डॉक्टर से हो रही थी, जो पेरिस (फ्राँस) होकर आया था। मुगुटरामजी ने अपने स्थान में बैठे हुये ही दूरदर्शन शक्ति द्वारा उसे पेरिस का सब हाल सुना दिया, जिसे डॉक्टर ने बिल्कुल ठीक बतलाया। इस पर पास में बैठे उच्छवलाल जौहरी को कौतूहल हुआ और उसने परीक्षा के लिये महाराज से कहा कि मेरा कपड़वंज कस्बे में जो मकान है उसका वर्णन बतलाइये। महाराज ने कहा-”यह कौन सी कठिन बात है। तेरे घर की हाल तो ये डॉक्टर साहब ही बतला सकते हैं।” उनके यह कहते ही डॉक्टर साहब सचमुच जौहरी के घर के भीतर का हाल बतलाने लग गये, जिसको उसे सत्य मानना पड़ा। इस प्रकार वे दूसरे लोगों में भी चमत्कारी शक्ति उत्पन्न कर देते थे। अनेक मरते हुये व्यक्तियों को उन्होंने मंत्र पढ़ कर जल पिलाने से बचा दिया था। एक बहुत बढ़े अफसर का हृदय रोग एक फूँक कर दूर कर दिया।

(12) दुनिया में किस जगह कौन-कौन योगी और सिद्ध पुरुष रहते है इसका उनको भली प्रकार पता था। इच्छा होने पर उनके साथ बातचीत करते, उनको अपने पास बुला लेते अथवा सूक्ष्म शरीर से स्वयं उनके पास चले जाते।

(13) अपने पास आने वाले मनुष्यों के पूर्व जन्म का हाल भी वे बतला देते थे। उस जन्म के किस कर्म के पाप से इस जन्म में कष्ट मिल रहा है। इसका पूरा हाल वे जान सकते थे और फिर उसको मिटाने का उपाय बतलाते उसको करने से निश्चय ही वह कष्ट दूर हो जाता था।

(14) उनके यहाँ आने वाले मनुष्यों का कोई हिसाब न था। रसोइया और उनकी पत्नी उनसे पूछ लेते थे कि कितने व्यक्तियों की रसोई बनेगी। फिर भी प्रायः ऐसा होता था कि दस आदमियों का भोजन बना और खाने वाले 25-30 आ गये-पच्चीस का भोजन बनाया गया और खाते समय सौ आदमी आ गये। पर उनके यहाँ कभी भोजन का अभाव नहीं हुआ। सदा हर एक चीज इच्छानुसार मिलती रहती थी। वे कहा करते थे कि मेरे ऊपर अन्नपूर्णा की कृपा है। कभी भंडार में कमी नहीं पड़ सकती।

इस प्रकार महात्मा मुगुटरामजी ने अनेक वर्षों तक अपनी आध्यात्मिक शक्ति से सर्व साधारण का अकथनीय उपकार करके यह दिखला दिया कि यदि मनुष्य सच्चे हृदय से प्रयत्न करे और ईश्वर पर विश्वास रखे तो उसके लिये कुछ भी असंभव नहीं है।


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