(सेठ विशनचन्दजी एम.पी., शाहजहाँपुर)
शब्द ब्रह्म है; शब्दों की रचना से शक्ति, विनोद, चिन्ता, कर्तव्य, उदासीनता, तीव्रता आदि प्रभाव नित्य जीवन में सभी को दूर समय देखने को मिलते हैं।
अनेक व्यक्ति यह कहकर जनसाधारण को डरा देना चाहते हैं कि मन की एकाग्रता, बाह्य एवं आन्तरिक शुद्धि आदि महान गुणों के प्राप्त होने पर ही मानव को भगवान की कृपा प्राप्त हो सकती है, अन्यथा नहीं। कुछ अन्य महापुरुष यह भी मानते हैं कि भगवत् कृपा से बुद्धि पवित्र होती है, यही उसका महान लाभ है, अन्य भौतिक लाभ तो कल्पना मात्र अथवा जनसाधारण को प्रभु चरणों में आकर्षित करने के हेतु कहे गये हैं। पर वर्तमान की भौतिकता प्रधान युग में अनेक व्यक्ति इस प्रकार की बातों से संतुष्ट नहीं होते और इन प्रश्नों का स्पष्ट उत्तर चाहते हैं।
मेरा विचार है कि भगवत् कृपा पूर्णता सरल है। खेत या बाग में बीज डालकर जो किसान या माली पूरी भावना से कर्त्तव्य पालन करता है, वह प्रत्यक्ष में अधिक लाभ पाता है। पर दृढ़ भावना के अभाव में जो उदासीन होकर भी अपना कार्य करता है उसे भी अपने कर्तव्य के अनुसार प्रत्यक्ष फल मिल ही जाता है। इसमें हमें शिक्षा मिलती है कि यदि अधिक निष्ठा से कार्य किया जाय तो फल भी अधिक प्राप्त हो सकता है। जिस प्रकार उस सर्वशक्तिमान की दासी प्रकृति संसार में श्रद्धा और उदासीनता- दोनों प्रकार के कर्त्तव्यों का उचित फल देती है, तो उस दीनदयाल के दरबार में अन्तर क्यों हो सकता है। वहाँ भी ज्ञानी और इन्द्रिय दमन करने वाले, एकाग्र मन से प्रभु-वन्दना में लीन महान फल के स्वामी होते हैं, तो जो भावकुशन शिवशंकर को केवल एक लोटा जल चढ़ाकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर देते हैं, वे भी अपनी भावना के अनुकूल फल अवश्य प्राप्त करते हैं।
मुझे एक उपमा दियासलाई की याद आ गई जिन पदार्थों को मिलाकर उसे बनाया जाता है वे संसार में सर्वत्र बिखरे पड़े थे, पर उनसे कोई लाभ नहीं उठा सकता था। किसी महान कर्तव्यशाली सज्जन ने उन्हें एकत्रित कर, मात्रानुकूल मिलाकर, नियमित रूप में तैयार कर दिया तो वह बड़े काम की बन गई। अब चाहे कोई सन्त उसे रगड़े या कोई बालक रगड़े वह अवश्य जल उठेगी। इसी प्रकार संसार को सन्मार्ग पर लाने के हेतु महान विभूतियों ने अनेक प्रभावशाली उपाय निकाले हैं, जिनसे कल्याण के इच्छुक तरह-तरह के लाभ उठा सकते हैं। इसी उद्देश्य से महापुरुषों ने अक्षरों के शब्द और शब्दों के मन्त्र इस विधि से बनाये, जिनके प्रयोग से प्रत्येक व्यक्ति अपना उद्देश्य पूरा कर सकता है।
जिस प्रकार कोई दियासलाई से प्रकाश बना लेता है; कोई पाकशाला में अग्नि जलाकर स्वादिष्ट भोजन तैयार करता है, कोई अन्य जनों के कष्ट का साधन उत्पन्न कर देता है, कोई यों ही जलाकर बुझा देता है, उसी प्रकार मंत्र की शक्ति से तरह-तरह के कार्य पूरे किये जा सकते हैं। मानव सृष्टि के आरम्भ में सब से पहले वेदों का प्रादुर्भाव हुआ। उसी अलौकिक ब्रह्मवाक्य से मानव ने मानवता सीखी, उसका सार भगवान कृष्ण ने निकाल कर अपने श्रीमुख से परम पवित्र गीता कही। माता गायत्री गीता की अपेक्षा भी सूक्ष्म रूप से वेदों का सार है। माता गायत्री सारे संसार की बीज रूप है। जो कोई गायत्री के परम शक्ति पुँज मंत्र का जप करेगा, उसे किसी भी लाभ के होने में सन्देह नहीं है।