(श्री श्याम जी शर्मा, बी.ए.)
प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति काम करना और स्फूर्त, चुस्त रहना चाहता है। फिर आप सुस्त क्यों रहते हैं? आपको वीर्य सम्बंधी कोई व्याधि नहीं, मूत्र सम्बंधी कोई बीमारी नहीं, आमाशय संबंधी कोई बीमारी नहीं, फिर आप थके से, निष्प्राण से क्यों रहते हैं?
क्या थकावट भी कोई व्याधि है? फिर आप पर इसका आतंक क्यों छाया रहता है? दिन भर के साधारण परिश्रम की थकावट रात की लंबी गहरी नींद द्वारा गायब हो जानी चाहिये। प्रातःकाल आपको मुस्कराती हुई कली की भाँति, शरीर को हल्का लेकर चारपाई से विदा ग्रहण करना चाहिए, किन्तु आप प्रायः रोज ही इस अवस्था का अनुभव करते हैं।
मनुष्य थकावट का अनुभव जिन कारणों से करता है, आपके भी सुस्त, भारी-भारी से बने रहने के वही कारण हैं। जब शरीर और मस्तिष्क अत्यधिक कार्य भार से एक समय तक दबता रहता है, जब मनुष्य पेट को भूल कर, सुस्वादु व्यंजनों से मूषक की भाँति ठूँस-ठूंस कर भर लेता है, शेखी में आकर शक्ति से अधिक काम और कम आराम करता है, व्यायाम अथवा खेलों की प्रतियोगिता में उर्वप्रियता प्राप्त करने के लिये जान पर खेलता है, अथवा जब किसी के शरीर के अवयव पर्याप्त परिश्रम से काफी घिसते हैं और उनके पुनर्निर्माण के लिए पर्याप्त पौष्टिक आहार नहीं मिलता उस समय शरीर में एक प्रकार की विक्षुब्धता सी उत्पन्न हो जाती है और हम थकावट का अनुभव करते हैं। यह थकान निरन्तर जारी रहने से किसी न किसी व्याधि का रूप धारण कर लेती है।
शरीर में हर समय टूटने ओर बनने की क्रिया होती रहती है। पुराने कोष्ठ टूटते और नवीन बनते रहते हैं। जब कार्याधिक्य अथवा अथक परिश्रम के कारण टूटने का काम अधिक और बनने का कम होता है, उस समय हमारे रक्त में एक प्रकार की रासायनिक गंदगी मिलकर उसके साथ परिभ्रमण करने लग जाती है। उस रासायनिक गंदे द्रव्य के न्यूनाधिक्य पर ही हमारी थकावट, सुस्ती और परेशानी निर्भर करती है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि एक थका हुआ परिश्रान्त व्यक्ति वह है जिसके रक्त में विष संचालित हो रहा है। डाक्टरों और कतिपय वैज्ञानिकों ने इस विष को लेकर स्वस्थ पशुओं के रक्त में दाखिल किया है। परिणामस्वरूप उन पशुओं में भी थकावट के वे समस्त लक्षण पैदा हो गये हैं जो उस थके हुये व्यक्ति में मौजूद थे, जिसके रक्त का विष लिया गया था।
यदि शरीर में थकावट बढ़ती रहे, रासायनिक विष की वृद्धि होती रहे, तो यह माँसपेशियों, हृदय, मस्तिष्क और रक्त को ही नहीं, समस्त शरीर को विषाक्त कर देगा। अस्तु थकावट शरीर की ओर से आने वाले खतरे की एक घण्टी है। महर्षि चरकाचार्य ने व्यायाम करने वालों को चेतावनी भी दी है कि वे सामर्थ्य से अधिक श्रम न करें, थकावट से बचें।
थकावट के लक्षण शारीरिक भी हो सकते हैं और मानसिक भी, अथवा दोनों ही। हम आये दिन इनका अनुभव करते रहते हैं। खूब व्यायाम करने अथवा तैरने के पश्चात हमारी माँसपेशियाँ स्वतः थकान का अनुभव करने लग जाती हैं। शारीरिक थकावट, मानसिक थकावट का भी कारण बन जाती है। मानसिक थकावट मानसिक कारणों से भी उत्पन्न होती है। अधिक काल तक निरन्तर पढ़ते रहने, मस्तिष्क को अधिक उलझनों और चिन्ताओं के चंगुल में फंसा देने से मस्तिष्क की समतोलन शक्ति शिथिल हो जाती है। इस अवस्था में मस्तिष्क थक कर कुछ काम नहीं कर पाता।
तुमुल कोलाहल और शोर भी मानसिक थकावट का एक प्रधान कारण है। आपने देखा होगा कि शहरों के निवासियों को थकावट बहुत जल्दी घेर लेती है। वे कुछ दूर चलते ही टाँगा और बस की बाट जोहने लगते हैं। इसका कारण है शहरों का शोर, सड़कों पर आने जाने वाली मोटरों की भों-भों, टाँगों की खड़खड़ाहट, इंजनों की चीख और दुकानदारों ग्राहकों की कश्मकश। यह कोलाहल सीधा हमारे स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं डालता, किन्तु शनैः-शनैः स्नायविक क्षुब्धता उत्पन्न कर हमारी मानसिक थकावट का कारण अवश्य बनता है शब्द लहरों द्वारा हमारे मस्तिष्क तक पहुँचता है। शरीर के सभी केन्द्र शब्द लहरों से प्रभावित होते हैं। यही कारण है कि किसी निर्जन पथ पर जाते हुए जब आप भयानक शब्द सुनते हैं तो शरीर के केन्द्र प्रभावित होते हैं, हम चौंक पड़ते हैं और शरीर थर-थर काँपने लगता है। नगर निवासियों के अशाँत, नाजुक, निर्बल रहने का एक कारण यह भी है। जर्मन महासमर के समय विस्फोट पदार्थों की धमक और शोर से कितने ही व्यक्ति मौत का शिकार बन गये थे।
अस्तु, शारीरिक और मानसिक थकावट का यत्किंचित् अनुभव करते ही कार्य बन्द कर आराम करना चाहिए। कभी-कभी स्वप्न दोष, हृदयस्पन्दन, ब्लडप्रेशर, उन्माद आदि के भयंकर रोग इसी थकावट के वरदान स्वरूप लोगों को मिल जाते हैं। मानसिक और शारीरिक थकावट ही है जो लोगों को प्रायः गंगातट पर निवास करने, एकान्त वास करने, कश्मीर, और शैल-शिखरों पर जाने, नगर निवासियों को गाँवों की ओर आकर्षित करने और लोगों को संसार विरक्त तक बनने के लिए प्रेरित करती है।
व्यायाम करने वालों को चाहिए कि शरीर में शैथिल्य का अनुभव करते ही वे इसे बन्द कर दें। 15 मिनट तक खुली हवा में टहलें। फिर दूध लस्सी या शरबत, बादाम अथवा अन्य किसी तरल पौष्टिक का सेवन करें।
मजदूरों और अन्य परिश्रम करने वालों को भी थकने पर सुस्ताना और परस्पर हंसना बोलना बहुत आवश्यक है।
विद्यार्थियों को मानसिक थकावट का अनुभव करते ही पुस्तक छोड़कर पार्क में टहलना और कुछ गाना थकावट को दूर करने के लिए आवश्यक है।
बहुत से नागरिक मानसिक थकावट को दूर करने के लिए थियेटर, परिस्तान पार्क अथवा सिनेमा घरों में पहुँचते हैं किन्तु यह तरीका उसे घटाने के बजाय बढ़ाता है। उन्हें काम से अवकाश पाने के पश्चात टहलते हुए शहर के बाहर किसी निर्जन स्थान या नदी के तट पर जाकर घूमना, बैठना अधिक स्वास्थ्यकर और उपयोगी है।