सदा उज्ज्वल भविष्य की आशा कीजिए।

March 1953

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(प्रो. रामचरणमहेन्द्र एम. ए.)

स्मृति और आशा दोनों मानव जीवन के लिए बड़े प्रेरक शब्द हैं। वर्तमान जीवन से असंतुष्ट होकर, जीवन के संघर्ष से ऊबकर हम कभी विगत मधुर स्मृतियों में डूबने उतरने लगते हैं, तो कभी भविष्य को आशा का चश्मा लगाकर देखते हैं। इन दोनों के वश में होने का तात्पर्य यह है कि हम अपने वर्तमान से असंतुष्ट हैं। वर्तमान जीवन के सुख, संतोष, प्रगति से हमें-विशेष लाभ नहीं हो रहा है। हम वर्तमान से भागकर या तो अपने अतीत में छिपना चाहते हैं, अथवा भविष्य में कूद कर सुख-स्वप्नों में लीन हो जाना चाहते हैं।

मनुष्य के मानसिक पलायन के यही दो छोर हैं। जिस प्रकार जुलाहे की तागे की रील दिन भर इधर से उधर चक्कर काटती रहती है, क्षण भर शान्त नहीं होती, उसी प्रकार हमारा मन-मयूर निरन्तर अतीत की स्मृतियों तथा भविष्य की समुज्ज्वल आशाओं के मध्य में उछल-कूद किया करता है। मन चंचल है, एक क्षण स्थायी नहीं रहता उसे कुछ सोचने-विचारने, मनन, चिन्तन के लिए चाहिए। चिन्तन करना उसकी मूल प्रकृति है। यदि आप न भी चाहेंगे, तब भी वह अपने चिन्तन के निमित्त कोई न कोई विषय स्वयं ढूँढ़ लेगा। जब बिना चिन्तन किये छुटकारा नहीं है, तो क्यों न मन को चिन्तन करने के हेतु कुछ शुभ भाव, उत्कृष्ट कल्पनाएँ सात्विक प्रेरक विचारधारा प्रदान की जाय।

हमारी स्मृतियों के अटल भण्डार में नानाप्रकार की सुख दुःख भरी अनुभूतियाँ संग्रहीत रहती हैं। बहुत सी मानसिक, अनैतिक भावनाओं सम्बन्धी प्रारम्भिक जीवन की मूर्खताएँ, अनजान में किए हुए पाप दोष, दुर्व्यवहार, दूसरों का अहित, मनमुटाव, अव्यक्त मन में स्मृतियों के रूप में दबी पड़ी रहती हैं। अनेक वासनाओं को हमें दबाना पड़ता है। मन को मारकर समाज के बन्धनों का ध्यान रखना पड़ता है। ये दबे हुए कष्ट, दुःखद प्रसंग अभद्र व्यवहार, दुष्टता के कार्य यदि भुलाये जाएं तभी श्रेष्ठ हैं। उनकी ओर ध्यान न देना, कभी न सोचना ही उत्तम है। यदि हम स्मृतियों के रूप में उन्हीं में उलझे रहेंगे, तो ये वासनाएँ परिवर्तित, संक्षिप्तता और प्रतिभासित, रूपांतरित होकर हमारे मौजूदा जीवन को कड़ुवा बना देंगी। हमारा मौजूदा जीवन भी मिट्टी में मिल कर धूल हो जायगा। ऐसे व्यक्ति के काम, क्रोध, ईर्ष्या, लोभ सम्बन्धी अटल मानसिक भावना-ग्रन्थियाँ अन्यक्त मन में निवास करती है। अनेक व्यक्तियों के दुःखी होने का प्रधान कारण यही है कि वे स्मृति की निकृष्ट भूमिका में निवास करते हैं। वे उन्हीं स्मृतियों को खोदते हैं, जहाँ अन्धकार है, दुःख है, वेदना है, जहाँ परिताप का प्रज्वलन हो रहा है, यह भारी अज्ञान है।

इसकी उपेक्षा भविष्य की आशाओं पर मन को केन्द्रित करने से मनुष्य में नव-प्रकाश, नवस्फूर्ति, नई नई कल्पनाएँ जागृत होती हैं। उसकी कार्य शक्ति में अद्भुत प्रभाव पड़ता है। उसकी कार्य सम्पादिका शक्तियाँ आशा द्वारा संकलित होकर मनुष्य को आगे बढ़ाते हैं।

आगे हमारे लिए सुख और स्मृति का समय आ रहा है। हमारे आनन्द के दिन अब आ गये हैं। हमारे दुख क्लेश परस्पर विरोधी इच्छाएँ, अहितकर कृतियाँ समाप्त हो चुकी हैं। अब तो चहुँ ओर आनन्द ही आनन्द है, प्रसन्नता ही प्रसन्नता का अखण्ड प्रवाह बह रहा है। हमारे आगे आनन्द का स्त्रोत खुल गया है। सम्पूर्ण आनन्द का स्त्रोत हमारे भीतर है। आनन्द ही भरा सच्चा स्वरूप है। मैं परब्रह्म के आनन्द में मग्न हो गया हूँ। मेरा भविष्य मेरी चतुर्दिक् उन्नति के लिए शान से चला आ रहा हैं- इस प्रकार की भावी आशाएँ रखकर चलने वाला व्यक्ति अपने अन्दर एक प्रकार की शक्ति का अनुभव करता है। वह जितना अपनी शक्तियों से माँगता है, उससे बहुत अधिक मिलता है। आशा जितनी ऊँची होती है, उसी के अनुसार धीरे-2 मनुष्य की शक्तियाँ भी बन जाती हैं।

भविष्य की आशा एक ऐसा जादू भरा संदेश हमें सुनाती है, जो हमारे मन में, शरीर के अंगों में, अणु में, रक्त में स्फूर्ति और नवशक्ति भर देती है। हमारा चेहरा मानवीय विद्युत के प्रकाश से चकाचौंध कर उठता है, ईश्वरीय क्षेत्र चमक उठता है।

आशा से प्रदीप्त व्यक्ति जहाँ जाता है आनन्द शक्ति, प्रोत्साहन, प्रेरणा का ही प्रवाह बहाता है, उसके दर्शन कर हम में उत्साह का, और नवजीवन का संचार हो उठता है। आनन्द, शान्ति, प्रसन्नता और स्वास्थ्य की किरणों को वह अपने चहुँ ओर बरसाता है। उसका व्यक्तित्व जादू जैसा प्रभाव करता है।

उस व्यक्ति को धन्य है, जो पुराने अनुभवों के बल पर विवेक बुद्धि निज शक्ति को देखकर आशाओं का निर्माण करता है, भविष्य की आशा जरूर कीजिए किन्तु ऐसी ऊँची-ऊँची कल्पनाओं में मत डूबें जाइए जो कभी पूर्ण न हों। जिस तक आपकी शक्तियाँ न उठ सकें। यदि कोई फकीर राजा होने की आशा बाँधे तो कहाँ तक उचित होगा? अपने वर्ग, स्तर, योग्यता प्रयत्नों के अनुसार आप भविष्य की उज्ज्वल तर बनाने के स्वप्न जरूर देखें। अपनी शक्ति के अनुसार ही आशा का महल निर्मित करें।

हमारी आशा की, सुख की, आनन्द की भावना को कोई नहीं छीन सकता। असली बात भावना की है। भविष्य में उन्नति करने की भावनाएं जीती जागती शक्तियाँ हैं जो विकारमय अतीत को शान्त कर भविष्य के अलौकिक विलक्षण आनन्द को प्रदान करती है-

प्रसादे सर्वदुःखानाँ हानि रस्योपजायते। प्रसन्न चेतसाँ ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते॥ गीता॥

चित्त के परम प्रसन्न होने पर सब दुःखों का नाश हो जाता है और अखण्ड प्रसन्नता युक्त चित्त की स्थिति बनी रहने से बुद्धि सुस्थिर हो जाती है।


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