अपने को पहचान (Kavita)

March 1953

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बहुत दिनों तू भूला भटका, क्षीण हुई गति पथ पर अटका,,

लक्ष्य रहा अनजान! अपने को पहचान!!

तू मिट्टी को सोना समझा, पर, पाने को खोना समझा,,

शापों को वरदान! अपने को पहचान!!

प्रभु का मन्दिर, तेरी काया, माया तेरे तन की छाया,,

निज सत्ता को जान! अपने को पहचान!!

तुझमें निहित सत्य, शिव, सुन्दर, पावनतम् से बन पावन तर,,

बन जा तू भगवान! अपने को पहचान!!

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