स्नान की कुछ वैज्ञानिक पद्धतियाँ

March 1953

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(डा. वरनर मेककटन)

व्यायाम में मेरी अधिक रुचि देखकर एक 70 बरस के वृद्ध महोदय ने मुझे फ्रिक्शन बाथ के संबंध में अपने अनुभव बतलाये। वृद्ध महाशय कहने लगे-

जब मैं बीस बरस का था तब क्षय रोग से पीड़ित था, और इससे मैं मर जाऊँगा, मुझे ऐसा ज्ञात होने लगा। प्रायः सभी कुटुम्बियों ने और मित्रों ने मेरे जीवन की आशा छोड़ दी। किन्तु मेरे जीवन की इच्छा बड़ी प्रबल थी। जब सब मुझे मरने की बात कहते थे तो मैं उनसे कहता था, नहीं मैं मर ही नहीं सकता। मैं इस रोग से मुक्त होने के उपाय ढूँढ़ने लगा। सोचते-सोचते यह विचार आया कि त्वचा शारीरिक विष निकालने का मुख्य अवयव है। ज्यों-ज्यों इसकी गहनता पर विचार करता गया, त्यों-त्यों मेरा विश्वास इस पर बढ़ता ही गया।

अतएव मैं यह निश्चय न कर सका कि इस सम्बन्ध में मैं क्या करूं। फिर भी मैं बाजार गया और घोड़े के बालों का ब्रुश खरीद लाया। घर जाने पर मैं अपना त्वचा को साफ करने लगा। इस तरह उक्त ब्रुश से प्रतिदिन कई मिनट तक अपने शरीर को घिसता। इसका अभ्यास हो जाने पर मैं रोज अपने शरीर को घिसने लगा। पहले तो कुछ कष्ट अवश्य हुआ लेकिन पीछे सुखद प्रतीत होने लगा।

उस वृद्ध ने अपने सारे शरीर की चमड़ी मुझे दिखाई। मैं देखकर आश्चर्यान्वित हो गया कि वह मखमल के समान सम्पूर्ण स्वच्छ थी और वृद्ध भी बिलकुल हृष्ट-पुष्ट और स्वस्थ था जिसे डॉक्टर लोग जवाब दे चुके थे। उसने केवल इसी उपाय द्वारा रोग से मुक्ति पाई।

उक्त महोदय का मत है कि यदि आप “शक्ति-सम्पन्न होना चाहते हैं तो त्वचा और शरीर को निर्मल बनाइये।”

जिस तरह फेफड़ों से शरीर का विष बाहर निकलता हैं उसी प्रकार त्वचा से भी साँस लिया जाता है। यह ऑक्सीजन को खींचकर अन्दर की गर्मी को बाहर निकालती है। अतएव चर्म-छिद्रों को हमेशा स्वच्छ रखने पर कोई भी बीमारी नहीं होने पाती।

इस स्नान का समय प्रातःकाल सबसे उत्तम है यदि व्यायाम करने के पीछे यह स्नान किया जावे तो और भी अच्छा है। इस क्रिया को बहुत से मनुष्य टावेल (तौलिया) से करते हैं। स्नान करने पर अपने शरीर को तौलिये से खूब रगड़ते हैं। यह पद्धति भी ठीक हैं। किन्तु यह क्रिया नियमपूर्वक नहीं होती। इसे इस तरह करना चाहिए।

(अ) सीना निकाल कर सीधे खड़े हो जाओ मुँह सामने रखो। अब एक मोटा खुरदरा टावेल लेकर शरीर को रगड़ो।

(ब) इसके पीछे टावेल का एक भाग कन्धे पर से और दूसरा दूसरी ओर के बगल से आगे निकाल कर पीठ को घिसो। इस प्रकार दोनों कन्धे को और बगल को साफ कर डालो।

(स) उपरोक्त-क्रिया से सामने वाला और पीछे वाला भाग भी साफ कर लो।

इस तरह शरीर के हर एक भाग को अलग अलग घिसो। घिस चुकने पर थोड़ा विश्राम करो, शरीर में कुछ झनझनाहट बाहर निकलती मालूम पड़ेगी। ब्रुश टावेल, अत्यन्त उपयोगी है, टार्किश टाविल सबसे उत्तम है। शुष्क स्नान के पीछे शीतल तल से स्नान करना। टावेल को पानी में भिगोकर शरीर पर रगड़ने से भी फायदा होता है।

जल-स्नान

जल-चिकित्सा में जल-स्नान की बहुत सी क्रियाएँ हैं। जिनमें टब बाथ टब में से स्नान करना अत्यन्त लाभदायक माना गया है। किन्तु टब-बाथ रोग की अवस्था में ही लाभप्रद है प्रतिदिन नहाने के लिये नहीं। प्रतिदिन शुद्ध शीतल जल से स्नान किया जावे, स्नान करने का समय 6 से 7 के बीच में प्रातःकाल ही उत्तम है। इसके पहले थोड़ा सा व्यायाम कर लेना अति उत्तम और लाभप्रद है। स्नान, घर में या सरोवर, तालाब या कहीं भी किया जा सकता है। आज कल लोग स्नान को एक धार्मिक नियम समझकर लोटे दो लोटे जल से ही नहा लेते हैं। इससे उनको वास्तविक लाभ नहीं होता। स्नान में कम से कम 40 मिनट लगना आवश्यक है।

20 मिनट शुष्क स्नान, (सूखी तौलिये से शरीर को रगड़ना)।

20 मिनट जल-स्नान, धीरे-धीरे नहाना और भीगी हुई तौलिये से शरीर को रगड़ना।

20 मिनट में सुखी तौलिये से शरीर को पोंछकर धोती पहनना, सिर से रगड़ कर पोंछना, तेल डालना और कंघी करना।

यही पद्धति दैनिक स्नान की सर्वोत्तम और सर्व सिद्ध है। इससे हमेशा स्वास्थ्य में उन्नति होती रहेगी।

वायु स्नान

वैज्ञानिक आधार पर स्नान तीन तरह के होते हैं। जल, वायु और धूप। अमेरिकन डाक्टरों ने इन स्थानों को बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्ध किया है। वायु पर प्रत्येक प्राणी का जीवन निर्भर है। बिना पानी के मनुष्य कुछ दिनों तक जीवित रह सकता है। किन्तु बिना हवा के एक क्षण भी रहना कठिन है। डाक्टरों और वैद्य का सिद्धान्त भी वही है कि अशुद्ध वायु ही अनेक रोगों का कारण है प्राचीन समय में वह एक नियम था कि वायु की शुद्धि के लिये हर एक गृहस्थ अपना घर बनवाते समय एक-एक नीम का पेड़ जरूर लगाते थे। अब भी प्रायः ऐसा ही नियम कहीं-कहीं देखने में आता है।

वायु स्नान, जल और धूप स्नान से भी अधिक लाभदायक है। अनेक मनुष्यों ने इससे आरोग्य लाभ किया है। जिस व्यक्ति ने इसका अनुभव नहीं किया वह इसके वास्तविक गुणों को नहीं जान सकता। शरीर के भीतरी अवयवों को अत्यन्त शुद्ध वायु की आवश्यकता हमेशा रहती है। इसी तरह बाहरी शरीर को भी शुद्ध वायु की (आक्सीजन) की हमेशा आवश्यकता रहती है।

सबसे पहले शान्त और एकान्त स्थान ढूंढ़ना चाहिए जहाँ शुद्ध वायु अधिकता से प्राप्त हो सके। यदि घर में ही शुद्ध वायु मिल सके तो घर ही में इस प्रयोग को कर लेना चाहिए। स्नान के समय बिल्कुल नग्न हो जाओ, यदि सब वस्त्र न उतार सको तो लंगोट आदि का उपयोग कर सकते हो। वायु स्नान करते समय उष्ण और ठण्डी हवा का ख्याल रखो। जहाँ तक हो सके ठण्डी हवा का ही प्रयोग करो, पहले व्यायाम कर लेना चाहिये, फिर पीछे वायु सेवन करना चाहिये। प्रातःकाल इस क्रिया को कर लेने से अद्भुत लाभ होता है। इससे शरीर में फुर्ती और चंचलता बढ़ेगी।

गाँव के बाहर अथवा मैदान की वायु अधिक शुद्ध और लाभदायक होती है। कसरत करने के बाद जब (विषैला पसीना बाहर निकल आवे) तब शुद्ध वायु ग्रहण करना चाहिए। इससे एक विशेष लाभ यह है कि सर्दी और जुकाम का कभी भय नहीं रहता। यह स्नान शरीर की निर्बलता को रामबाण है, वायु से शरीर की सम्पूर्ण नसें नवीन और उत्तेजित हो जाती है। प्रातःकाल अवश्य ही बाहर घूमने की आदत डालो।


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