दाम्पत्ति जीवन में मधुर भाषण का स्थान

March 1953

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(श्री निरन्जनलाल गौतम)

सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए स्त्री-पुरुष दोनों का स्वभाव कोमल, सुमधुर एवं शान्त वृत्ति वाला होना चाहिए। परन्तु यदि यह सम्भव न हो और भिन्न-भिन्न स्वभाव के स्त्री-पुरुषों को ही अपनी संसार नैया खेनी पड़े तो परस्पर मिलकर रहने के अचूक मंत्र का पाठ उन्हें कंठस्थ करना होगा। यदि अपने उग्र स्वभाव के कारण कलह जीवन का अनिवार्य अंग बन जाय तो फिर उसे मिटाने के लिए भी कभी-कभी विचार करना ही चाहिए।

स्वभाव की उग्रता के कारण वाक् दोष हो जाता है और वही वाक् दोष व्यंग वचनों की जननी है। जो घाव तलवार का होता है उससे कहीं अधिक गहरा और दुःखदायी घाव व्यंग्य का होता है, जो चिरकाल तक हृदय में अपने विषैले जख्म को बनाये रखता है। स्वभाव की उग्रता से ही मस्तिष्क में चिड़चिड़ापन पैदा होता है। दूषित स्वभाव के फलस्वरूप व्यंग, कटुवचन और चिड़चिड़ापन गृहकलह के हेतु हैं। इन दोषों के कारण थोड़ी सी असावधानी से कैसा अनर्थ होता है इसका सूक्ष्म परिचय निम्न पंक्तियों से मिलेगा।

उग्र स्वभाव के पुरुष की उग्रता के उदाहरण

स्त्री- आज तेल समाप्त हो गया हैं और मसाला भी आयेगा।

झगड़े के कारण वचन

पुरुष- क्या मैं तेरा नौकर हूँ जो हर समय ला-ला लगी रहती है? कभी अपनी आवश्यकता का रजिस्टर बन्द नहीं रखती। क्या बाप के यहाँ से कमाई आ रही है? एक बार सब सामान मँगवाने में क्या मुख दुखता है?

प्रेम पूर्ण उत्तर

-यदि सब सामान एक साथ मँगवा लिया करें तो ठीक है। इस प्रकार अधिक व्यय का भी भय है और समय भी अधिक लगता हैं।

(2) स्त्री ने बच्चे को पीट दिया। पतिदेव बिगड़ पड़े।

पुरुष- क्या इसे मार डालोगी। ईश्वर कैसा अन्यायी है, ऐसी बेरहम को क्यों बच्चा दिया? उसे मार डालों! यह तुम्हारा दुश्मन है न!!

प्रेम पूर्ण उत्तर

अरे दया करो। बच्चा है लग गई। बच्चा ही तो हैं प्यार से इसे समझा दो। मारने से तो वह बिगड़ता है।

(3) स्त्री- बाबू जी आप को आजकल देर बहुत जो जाती है। क्या काम अधिक रहता है, भोजन के लिये इतनी देर हो गई।

पुरुष- जैसे तुम ठलवा हो न, उसी प्रकार सबको समझती हो। मैं कही खेल तमाशे में नहीं गया हूँ। सब बातों का लेखा लिया जाता है। खबरदार मेरे बीच में न पड़ा करो। नहीं तो अच्छा न होगा।

प्रेम पूर्ण उत्तर

-हाँ काम अधिक आ गया है। देर हो जाती है। जल्दी आने की इच्छा रहते हुए भी न आ सका। तुम्हें भी इतनी देर प्रतीक्षा में बैठना पड़ा। भोजन उठाकर रख देतीं। क्यों लिए बैठी रहीं?

(4) स्त्री- देखा कोट की जेब फट गई है क्या हुआ इसे?

पुरुष- मेरी देही में काँटे हैं न! पूछती है कैसे फट गई है। क्या कमा कर लाई थी जो लेखा लेती हैं?

प्रेम पूर्ण उत्तर

-अब कपड़ा पुराना हो गया हैं। हाथ ढालते ही फट गई। जरा इसे ठीक कर देना।

(5) स्त्री- कमीज का बटन लगा लीजिये। गला खुल रहा है।

पुरुष- चुप रह। चली है तमीज सिखाने।

प्रेम पूर्ण उत्तर

-अरे मैंने ध्यान नहीं दिया था। धन्यवाद!

(6) स्त्री- देखो घर में मेहमान आये हैं इनके भोजनादि का प्रबन्ध होगा न?

पुरुष- मेरे से क्या कहती हैं क्या सब काम मेरे से पूछ कर होता है?

हाँ-हाँ जो कुछ मँगाना हो कहो। देखो आदर सत्कार में कमी न रहे।

(7) स्त्री- आज हमें अपनी सहेली के यहाँ जाना है। घर की चाबी लेते जाइए।

पुरुष- हाँ जी, क्यों नहीं। अब तो आपका पैर निकल गया है न? जब देखो सहेली के। यों क्यों न कहो कि मैं घर की रखवाली करता रहूँ।

प्रेम पूर्ण उत्तर

-अच्छा अधिक देर न करना। घर अकेला रहेगा। यदि चाहो तो चली जाओ, अधिक आना जाना भी ठीक नहीं होता।

(8) स्त्री- घी समाप्त हो गया है। कल से सूखी खानी पड़ेगी।

पुरुष- अच्छा! घी आये देर न हुई समाप्त हो गया? पहले फिजूल खर्ची से उठाया जाता है। कमाकर लाओ तो मालूम हो।

-हाथ साध कर उठाया करो। ऐसा प्रबन्ध कर लो जो एक समान रूप से काम चलता रहे।

(9) स्त्री- हमारी धोती फट चली, जम्फर भी फट गया, आप कपड़ा कब लायेंगे?

पुरुष- मैं क्या करूं? देह में काँटे हैं। एक जोड़ा तीन महीने भी नहीं चलता। कपड़े की मरम्मत तुम क्यों करो। जब खूब फट जाये तो खोता दिखाई देता है।

प्रेम पूर्ण उत्तर

-आपसे कपड़ा कुछ अधिक ही फटता है कपड़े में अगर खोता लग जाय तो बड़ा सूराख बनने से पूर्व ही उसे ठीक कर लेना चाहिये नहीं तो बढ़कर कपड़े को व्यर्थ कर देता है।

उग्र स्वभाव स्त्री की उग्रता के उदाहरण-

(1)पुरुष- जल्दी से एक गिलास पानी तो देना। तनिक जल्दी करो। मुझे बाहर जाना है।

स्त्री- तुम तो हथेली पर सरसों जमाते हो। मैं कोई लौंड़ी बाँदी हूँ! देते-देते आसमान सिर पर उठा लेते हो, क्या मैं ठलवा बैठी हूँ।

प्रेम पूर्ण उत्तर

-अभी लाई, तनिक बैठ लीजिए। मेरे हाथ मैले हैं।

(2) पुरुष- देखो तो तल्लू के बाल कितने मैले हो गए हैं। बाल भी बिखरे हैं। नाखूनों में मैल लगा है। फुरसत के समय इसकी भी देख भाल कर लिया करो

स्त्री- जब देखो कोई न कोई नुक्स निकालते रहते हैं। क्या हर वक्त भौंकने की आदत पड़ गई हैं? इसकी देख भाल मैं नहीं करती तो क्या आप करते हैं?

प्रेम पूर्ण उत्तर

अजी बच्चा है। खेल-कूद में कपड़े गन्दे कर लेता है। अब फिर साफ कपड़े बदल दूँगी।

(3) पुरुष- देखो यहाँ मेरा चाकू रखा था। क्या तुमने ले लिया है?

स्त्री- मैंने क्या बटुए में रख लिया? यहीं रखा होगा।

प्रेम पूर्ण उत्तर

-अभी तो यही रखा था मैं अभी ढूँढ़ कर देती हूँ।

(4) पुरुष- देखना मुझे दो रुपए ही जरूरत है दोगी क्या?

स्त्री- क्या मुझे हुण्डी सौंप गये थे? क्या माँगते शर्म नहीं आती, कभी देकर भूल गये थे?

प्रेम पूर्ण उत्तर

आपको तो पता ही है मेरे पास नहीं है अगर होते तो अवश्य दे देती। क्या मेरा और आपका अलग-अलग है।

(5) पुरुष- क्या धोबी मेरे कपड़े दे गया है? सब कपड़े मैले हो गये हैं।

स्त्री- क्या मैं धोबी के यहाँ से जाकर ले आऊँ? रास्ते में आते हुये लेते क्यों नहीं आये?

प्रेम पूर्ण उत्तर

-धोबी अभी तक लाया नहीं। आप लौटते उससे अवश्य कहते जाइये कि वह आज कपड़े पहुँचा दे।

(6) पुरुष- देखो तो घर में कितने जाले लगे हैं। अचार के बर्तनों पर कितनी गर्द जम गई है, तेल से तमाम अलमारी का तख्ता खराब हो गया है।

स्त्री- रोज तो सफाई करती हूँ। इस पर भी हरेक काम में नाक मारते रहते हो। कोई काम पसंद ही नहीं आता। किसी सुते मन से शादी की होती, काहे को मुझ फूहड़ को लाये थे।

प्रेम पूर्ण उत्तर

कार्य से कई दिन से छुट्टी ही न मिल सकी, फिर कुछ ध्यान भी नहीं गया। आज सब वस्तुओं को साफ करके रख दूँगी।

(7) पुरुष- देखना यह पुस्तक ठीक तरह मेज पर रख देना। कोई बच्चा फाड़ देगा।

स्त्री- लो रख लो अपनी पुस्तक! जरा देखने को ली थी। क्या इसका कुछ घिस जायगा?

प्रेम पूर्ण उत्तर

-ठीक है, पढ़कर रख दूँगी।

(8) पुरुष- आपका सामान तितर बितर हो रहा है इसे करीने से करो। घर की सुन्दरता करीने में ही है।

स्त्री- अहो! जब देखो लक्षण ही सिखाते रहते हैं। क्या इन चीजों को पेट में रख लूँ? घर ही बहुत बड़ा है न।

प्रेम पूर्ण उत्तर

-अभी ठीक हो जायगा। कुछ स्थान की भी हमारे यहाँ कमी हैं और सामान बढ़ता जा रहा है।

(9) पुरुष- आपने सुना नहीं? कोई आवाज दे रहा है।

स्त्री- क्या में बहरी हूँ? जिसे आना होगा आप आ जाएगा।

प्रेम पूर्ण उत्तर

-सुन तो लिया है। द्वार खुला हुआ है, मैं अभी जाकर देखती हूँ।

(10) पुरुष- आपकी साड़ी बहुत मैली हो गई है। बदल क्यों न लो।

स्त्री- सुनते नहीं हो, कितनी बार कहा कि साबुन नहीं है।

प्रेम पूर्ण उत्तर

- हाँ बहुत मैली हो गई है। आज साबुन अवश्य लाना।

उग्र प्रश्नों के उग्र उत्तर

(1) पुरुष- क्या दीखता नहीं? पुस्तक में ठोकर मार दी?

स्त्री- क्या तुम्हें नहीं सूझता कि यह रास्ता है।

प्रेम पूर्ण उत्तर

-अरे, देखा नहीं रास्ते से उठाकर एक ओर रख दीजिए।

(2) पुरुष- कौन कहता है कि मैं नहीं गया?

स्त्री- बस ज्यादा सफाई की जरूरत नहीं! यह बात किसी से छिपी नहीं।

प्रेम पूर्ण उत्तर

-हो सकता है आप गए हों। परन्तु सब ही लोगों का विचार इसके विरुद्ध है।

(3) पुरुष- एक तरफ क्यों न बैठो। छाती पर क्यों चढ़ती हो।

स्त्री- लो बैठे रहो, एकदम खोटे हो। किसी के पास बैठना भाता ही नहीं।

प्रेम पूर्ण उत्तर

-मेरे यहाँ बैठने से कोई बाधा पड़ती है तो चली जाती हूँ।

(4) पुरुष- कहाँ है वह रामू? वह आज भी स्कूल नहीं गया। क्यों नहीं रोज स्कूल भेजती?

स्त्री- मैंने क्या गोद में बैठा रखा है? पहले तो सिर पर चढ़ा लिया अब रौब गाँठते हैं।

प्रेम पूर्ण उत्तर

-कहीं चला गया है। वह सिर पर चढ़ता जाता है। कल से उसका ध्यान रखा जायगा।

(5) पुरुष- देखना या तो मान जा, नहीं तो सिर तोड़ दूँगा।

स्त्री- क्यों, क्या खिला दिया है? आये सिर तोड़ने वाले।

प्रेम पूर्ण उत्तर

-मेरा क्या दोष है। सिर तोड़कर भी तो आपको ही दवा करनी पड़ेगी।

(6) पुरुष- निकल जा यहाँ से। मैं तेरी सूरत नहीं देखना चाहता।

स्त्री- नहीं जाती। अगर मेरी सूरत नहीं भाती तो मुँह फेर लो।

प्रेम पूर्ण उत्तर

-कहाँ जाऊँ? यहाँ से मेरा और कहाँ ठिकाना है। क्षमा करो अब तो।

(7) पुरुष- दीपक क्यों नहीं जलाया? क्या समय नहीं हुआ?

स्त्री- क्या अपने सिर से जलाती? तेल भी हो? तुम सुनते भी हो?

प्रेम पूर्ण उत्तर

-आज तेल नहीं रहा। क्या आप ले आये? अभी जलाती हूँ।


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