कहीं आप भी तो ‘पठित मूर्ख’ नहीं हैं?

March 1953

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(स्वामी मनोहरदास जी, ज्ञानतीर्थ)

अपठित मूर्ख तो प्रायः बहुतायत से होते ही हैं किन्तु पठित एवं अक्षर बोध वाले मूर्खों की भी कमी नहीं है। आज मैं आपके सामने धर्मशास्त्र के आधार पर पठित मूर्खों ही के कुछ लक्षण वर्णन करूंगा, यदि आप में भी यह लक्षण हों तो अपना परिमार्जन कर निर्मल हो जाइए।

-जो बढ़ चढ़कर ब्रह्मज्ञान की बातें करें परन्तु झूँठे मिथ्या अभियान का त्याग न करे ऐसे को पठित मूर्ख जानना चाहिए।

-औरों को शास्त्रीय एवं महापुरुषों के चरित्रों की कथाएँ कहकर शिक्षा देता हो स्वयं शिक्षा के अनुसार चलता हो, पर दोष दर्शन में महान चतुर और अपने दोषों को छिपाता हो, परम्परागत धर्म को तुच्छ दृष्टि से देखता हो तथा औरों को उनके आचरण से च्युत करता हो उसे पढ़ा हुआ मूर्ख मानो।

-अपने ज्ञाता पन के अभियान से सर्व प्राणी मात्र में छिद्रान्वेषण किया करता हो, अपने बाहरी एवं घर वालों से प्रेमपूर्वक बर्ताव न करता हो, जिसके बोलने से दूसरों का दिल दुखता हो अर्थात् कटु भाषी हो, ऐसे शिक्षित को पठित मूर्ख मानो।

-मैं ज्ञानी हूँ, मैं सर्वज्ञ हूँ ऐसा मानकर ऐसे कार्य में हाथ डाल देता है, जो उसकी समझ और बूते से बाहर है, परन्तु कार्य सिद्ध न होने पर क्रोध कर उस पर अविश्वास प्रकट करता है, लोगों के अधिकार का विचार किए बिना उनसे बोलने का साहस करता है वह पठित मूर्ख है।

-मुख पर भिष्ट और पीछे दुष्ट ऐसी जिसकी आदत हो, कहने की बात अलग और करने की अलग संसार सक्त होकर परमार्थ को धिक्कार करे।

-जो स्वधर्म नित्य नैमित्तिक कर्मों से विमुख रहे। ऊँचे कुल में जन्म धारण करने पर भी नीच कर्मों में प्रवृत्त होने वाला विद्वान भी मूर्ख हैं।

-गृह त्याग, वैराग्य धारण करके ईश्वर भजन नहीं करता, संत-महन्ताई के अभियान में चूर होकर नाम स्मरण को छोड़ देता है और साँसारियों की तरह उदर पूर्ति के साधन व्यापार करने में अपने जीवन को खपा देता है वह पठित होने पर भी मूर्ख ही है।

-रात दिन उत्तम-2 ग्रन्थों का पठन और श्रवण करते हुए भी अपने अवगुणों को त्यागे नहीं, अच्छे तत्वज्ञ पुरुषों की मसखरी करता हो, अपने पारलौकिक हित को भूलकर मनमाना पापा चरण करता हो वह पठित मूख है।

-अपना पुत्र, शिष्य और सेवक अनाधिकारी होकर अपमान करने लगे तब भी उसकी आशा न छोड़े। अपनी स्त्री एवं पुत्र के मुख पर उनकी प्रशंसा करे, उनके दुराचार को लोभ के वशीभूत होकर सहन करें, वह पठित होकर के मूर्ख है।

-बात-बात में संशय और तर्क करे, अपनी गलती को मजूर न करे। भौतिक वस्तुओं को ही सब कुछ जाने प्रत्यक्ष के सिवाय किसी की बात पर विश्वास न करे, ऐसे विद्वान अक्षर बोधी को पठित मूर्ख मानो।

-फैशन परस्ती की कुटेब में फंसकर अपने आपको रोगी बनाले, माँ-बाप का बात-बात पर अपमान करे, सिर्फ स्त्री एवं पुत्र मात्र का ही अपना कुटुम्ब मानकर लालन पालन करें, अन्य आत्माओं स्वजनों से घृणा करे, अभक्ष्य-माँसादि को भक्षण करे, गरीब का अहित और अनादर करे, वह विद्वान होते हुए भी मूर्ख है।

-विद्वान होते हुए अपनी विचारधारा संकुचित रखे, अपना प्रेम अपने कुटुम्ब तक ही सीमित रखे और अपनी पढ़ी और समझी हुई विद्या अपने लिए ही दबा कर रखे वह पठित मूर्ख है।

-काम, क्रोध, मद, लोभ की जब लग घट में खान।

क्या मूरख क्या पण्डिता दोनों एक समान॥

गायत्री चर्चा-


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