पूर्णाहुति यज्ञ की तैयारियाँ

January 1953

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(आगामी जेष्ठ सुदी 10ता. 22 जून सन् 53) को होने वाले पूर्णाहुति यज्ञ की तैयारियाँ आरम्भ हो गई हैं। यों इसका बाह्य रूप बहुत छोटा है। सम्मिलित होने वाले व्यक्तियों की संख्या बहुत बड़ी नहीं होगी, इसलिए उनके ठहरने, भोजन आदि के सम्बन्ध में भी कोई बहुत भारी आयोजन नहीं करना है। परन्तु ऐसे सूक्ष्म कार्यक्रम जिसके द्वारा गायत्री तीर्थ की शक्ति वस्तुतः असाधारण बनेगी बहुत ही महत्वपूर्ण है और उनकी तैयारी के लिए अगले पाँच महीनों में बहुत भारी कार्य करना पड़ेगा।

भारत भूमि में यों तो अगणित तीर्थ है, पवित्र नदियों, पुरियों, लिंगों, तीर्थों, पीठों से यह देश भरा हुआ है। पर ऐसे तीर्थ जिनकी सूक्ष्म शक्ति अब भी जागृत है अधिक नहीं हैं। प्रयत्न यह किया जा रहा है कि जागृत एवं दिव्य शक्ति सम्पन्न 2400 तीर्थों का प्रतिनिधित्व पूर्णाहुति यज्ञ में हो सके। यों प्रायः दस हजार पुण्य भूमियों की रज और प्रायः एक हजार नदी सरोवरों का जल एकत्रित किया जायगा। गायत्री माता की प्रतिमा स्थापित करने की वेदी 2400 जागृत तीर्थों की रज से तथा 240 नदी सरोवरों के जल से निर्मित की जायगी। इस वेदी की पवित्रता इस योग्य होगी कि उस पर अवस्थित होने वाली माता की प्रतिमा सच्चे अर्थों में ‘प्राण प्रतिष्ठा’ से युक्त कही जा सके। इतने तीर्थों एवं जलाशयों की देश व्यापी शृंखला को एक सूत्र में पिरोने का कार्य महान तो अवश्य है पर वह कष्ट साध्य भी कम नहीं है। हिमि आच्छादित, दुर्गम, सुदूरवर्ती एवं अविज्ञात कितने ही तीर्थ ऐसे हैं जहाँ पहुँचने के लिए असाधारण प्रयत्न करने होंगे। इसके लिए अभी से कार्य आरम्भ कर दिया गया है।

ऐसे तीर्थ की प्राण प्रतिष्ठा करने के लिए जितनी आत्मिक पवित्रता की आवश्यकता है। उसके लिए कम से कम 24 दिन का पूर्ण निराहार उपवास आवश्यक है। इसीलिए ऋषिकेश से विशेष रूप से मंगाये हुए गंगा जल पर निर्वाह करके 24 दिन तक निराहार उपवास करने का निश्चय किया गया है। हमारे कई मित्रों ने यह आशंका प्रकट की है कि इतने कठोर उपवास का परिणाम चिन्ता जनक हो सकता है। इन हितैषी सज्जनों की आत्मीयता एवं शुभाकाँक्षा के लिए हम कृतज्ञ हैं, उन्हें यह जानकर संतोष कर लेना चाहिए कि कुछ रक्त माँस एवं वजन घट जाने के अतिरिक्त और कोई दुर्घटना घटित होने वाली नहीं है। माता की कृपा एवं गुरुजनों के आशीर्वाद से यह तपश्चर्या भी सानन्द पूर्ण हो जायगी।

मंत्र लेखन यज्ञ में जिस उत्साह से साधकों ने भाग लिया है उसे देखकर बड़ा सन्तोष एवं हर्ष होता है। आरम्भ में 24 लक्ष मंत्र लिखाकर गायत्री मन्दिर में प्रतिष्ठित करने का संकल्प था। ताकि इतने सत् साधकों की मंत्र लेखन तपश्चर्या का इस तीर्थ में एकीकरण होने से यह तीर्थ अधिक शक्ति सम्पन्न हो साथ ही इस बहाने साधकों को एक विशिष्ट प्रकार की लेखन साधना करने का अवसर मिले। लेखन में जप की अपेक्षा मेहनत एवं एकाग्रता अधिक होती है इसलिए उसका फल भी अधिक माना गया है। हर्ष की बात है कि 24 लाख हस्तलिखित मंत्र पिछली गायत्री जयन्ती तक ही हमारे पास जमा हो गये थे। इस समय उनकी संख्या करीब 85 लाख है। साधकों के उत्साह को देखते हुए यह निश्चय जान पड़ता है कि 125 लाख (सवा करोड़) मंत्र आगामी गायत्री जयन्ती के पूर्णाहुति यज्ञ तक आसानी से पूरे हो जावेंगे। इतने साधकों का, इतने समय तक, इतना महत्व पूर्ण तप जिस स्थान पर एकत्रित होगा उस स्थान की पवित्रता में निश्चित रूप से अभिवृद्धि होगी।

सहस्राँशु गायत्री ब्रह्म यज्ञ अपने ढंग का अनोखा यज्ञ है। एक स्थान पर कुछ व्यक्तियों द्वारा कुछ समय के लिए तो अनेक यज्ञ होते है पर इस यज्ञ की विशेषता यह है कि देश के कोने कोने में सहस्र ऋत्विजों द्वारा एक सम्मिलित संकल्प के अंतर्गत एवं सम्मिलित यज्ञ पूरा किया गया है। 125 करोड़ों गायत्री जप, 125 लाख आहुतियों का हवन, 125 हजार उपवास, पूरे करने का काम बहुत भारी था। गतवर्ष देवोत्थानी एकादशी से यह यज्ञ प्रारम्भ किया गया था तब अनुमान था कि इतने विशाल आयोजन को पूरा करने में संभवतः तीन वर्ष लगेंगे पर कितने सन्तोष की बात है कि अब यह डेढ़ वर्ष में ही पूरा होने जा रहा है। इस संकल्प का तीन चौथाई शेष है उसका भी पूर्णाहुति के अवसर तक पूरा हो जाना निश्चित है।

अखण्ड साधनाओं का महत्व साधारण साधना की अपेक्षा अनेक अधिक गुना अधिक होता है। दो दो घण्टे रोज 12 दिन तक कीर्तन करने की अपेक्षा 24 घण्टे का एक अखण्ड कीर्तन अधिक फल प्रद है। इसी प्रकार अखण्ड दीपक, अखण्ड जप, अखण्ड पाठ आदि का महत्व बहुत अधिक है। प्राचीन काल में अग्नि को घर में अखण्ड प्रज्वलित रखने की प्रथा थी पारसियों ने अब भी बड़ी श्रद्धा सावधानी एवं पवित्रता के साथ अखण्ड अग्नि स्थापित रखी जाती है ऐसी अग्नि में एक विशेष प्रभाव उत्पन्न हो जाता है जो मनुष्य के लिए अनेक दृष्टियों से लाभ दायक सिद्ध होता है। उसकी समीपता से शरीर तथा मन को तेज, बल, उत्साह एवं पोषण प्राप्त होता है, अनेक प्रकार के विकारों को जलाने की भी ऐसी अखण्ड अग्नि में विशेष क्षमता होती है।

प्रसन्नता की बात है कि गायत्री मन्दिर में स्थापना के लिए एक ऐसी धूनी की अग्नि प्राप्त हो रही है जो विगत 700 वर्षों से अखण्ड रूप से जलती आ रही है। इस पर अनेकों महात्मा एवं सिद्ध पुरुष तप करके अपना लक्ष पूरा कर चुके है। अब यह अग्नि अपनी दिव्य शक्ति से इस गायत्री तीर्थ को प्रकाशवान् करेगी।

इमारत की दृष्टि से गायत्री मन्दिर बहुत मामूली होगा, लाखों करोड़ों रुपये की लागत से बनने वाले विशाल मन्दिरों की तुलना में कुछ ही हजार रुपयों से बनने वाला यह स्थान नगण्य सा दृष्टि गोचर होगा परन्तु इसकी सूक्ष्म शक्ति असाधारण होगी। ईंट पत्थरों का बड़ा सा पहाड़ खड़ा कर देने से कोई लाभ भी नहीं। ऐसे स्थानों के निर्माण का जो उद्देश्य होता है उसे पूर्ण करने के निमित्त ही यह तपोभूमि बनाई जा रही है और विश्वास है कि इसके निर्माण का लक्ष असफल न रहेगा।

हमारे 24-24 लक्ष के 24 गायत्री पुरश्चरणों की पूर्णाहुति का आयोजन भी इसी अवसर हो रहा है। इस अवसर पर परम आदरणीय गुरुजनों के आशीर्वाद एवं स्वजनों की सद्भावना प्राप्त होना भी हमारे लिए कम सौभाग्य की बात नहीं है। अपने पुरश्चरणों की साधारण पूर्णाहुति करने की अपेक्षा इतने आयोजनों के साथ उसकी समाप्ति होना और भी अधिक प्रसन्नता की बात है। इतने अच्छे रूप में उसकी समाप्ति होने में माता की कृपा ही प्रधान कारण है।

स्थूल दृष्टि से यह सारा आयोजन एक सामान्य सी बात है। परन्तु इसकी पृष्ठ भूमि में एक असाधारण योजना काम कर रही है। भविष्य ही बतावेगा कि इस छोटी दीखने वाली योजना में कितने महान परिणाम सन्निहित हैं।


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