चिन्ताओं की चिता में मत जलिए

May 1951

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(प्रो. रामचरण महेन्द्र एम.ए.)

मानव बुद्धि के विचार-गुप्त, कुँठित, विकार मय रूप से उत्पन्न मैल का नाम “चिंता” है। यह मस्तिष्क की वह अवस्था है, जब मनुष्य अपने लाभ तथा उन्नति के स्थान पर भय, कुढ़न, शक्तिहीनता, परिस्थिति की विषमता, दैन्य का अनुभव करता है। चिन्ता किसी भी दिशा में मनुष्य की कमजोरी तथा परिस्थिति से संघर्ष न कर सकने का प्रमाण है।

चिन्ताऐं नाना रूपों तथा विषयों की होती हैं। मुख्य रूप से हम इन्हें निम्न विभागों में बाँटते हैं (1) शारीरिक चिंताएं (2) साँसारिक चिंताएं (3) और धार्मिक चिंताएं। स्थूल रूप में यह कहा जा सकता है कि साँसारिक चिंताएं सबसे अधिक लोगों को सताती है। उन्हीं से शारीरिक तथा धार्मिक चिंताओं की उत्पत्ति होती है अतः सर्वप्रथम उन्हीं पर विचार करें।

साँसारिक चिंताएं-

इस वर्ग में अनेक छोटी-2 बातें सम्मिलित हैं। सर्वप्रथम आर्थिक चिंताएं हैं। आज के जीवन में दो तत्व मुख्य रूप से महत्वपूर्ण बन गये हैं रुपया तथा वासना। अधिकाँश व्यक्तियों की समस्या वासना से संबंधी है। सेक्स का तात्पर्य विस्तृत वासना-जन्य सुखों से है। इसमें काम वासना, स्पर्श, गंध, सुन्दर दृश्यों को देखने की लालसा, तथा भाँति-2 के सुस्वादु पदार्थों का उपयोग सम्मिलित है।

मानव अन्ततः एक जानवर ही है। अतः साधारण स्तर पर रहने वाले निम्न कोटि के व्यक्तियों का इन्द्रिय-सुख चाहिए। हम अमुक स्त्री से विवाह करते, तो कैसा अच्छा रहता? अमुक की पुत्री कितनी सुन्दर है? अमुक अभिनेत्री कैसा मुग्धकारी श्रृंगार करती है? अमुक की पत्नि सामाजिक आचार व्यवहार में कैसी निपुण है? इस प्रकार की अनेक छोटी-मोटी चिंताएं साधारण मानवीय स्तर पर रहने वाले मनुष्यों के हृदय-सरोवर में उठा करती हैं। वे प्रत्येक स्त्री को ललचाई दृष्टि से देखते हैं और हृदय में एक प्रकार की दलित वासना के उभरने का अनुभव करते हैं। इस प्रकार की चिन्ताओं से ग्रस्त व्यक्तियों से हमें दो बातें कहना है। वासना का सुख क्षणिक है। दूर से आकर्षक और समीप आने पर यह काला-कलूटा, परम निंद्य, अनेक अनर्थ तथा गुप्त रोगों की सृष्टि करने वाला राक्षस है।

वासना-जन्य चिंताओं से सावधान! क्या तुम तरह-तरह के गुप्त रोगों से बचना चाहते हो? क्या तुम समाज में उच्च गौरवशाली प्रतिष्ठित पद, स्थिति, प्राप्ति करना चाहते हो? क्या तुम अपने लिये भावी पीढ़ी के मन पर एक उज्ज्वल भाव छोड़ना चाहते हो? यदि हाँ, तो वासना की चिन्ताओं को त्याग दो। प्रत्येक अभिनेत्री तुम्हारे सात्विक पवित्र आदर्श से नीची है, प्रत्येक पड़ौसी की पत्नि तुम्हारे लिये पूज्य है। तुमसे छोटी की आयु की बालिकाएं तुम्हारे पथ प्रदर्शन के लिए उत्सुक हैं। क्या आप उनका पथ प्रदर्शन न करेंगे?

वासना-जन्य चिंताएं आपकी निर्बलता की द्योतक हैं। आपको अपनी वासना के ऊपर विजय प्राप्त करनी चाहिए। सिनेमा के गन्दे फिल्मों को न देखिये, दूसरों की स्त्रियों की ओर वासना लोलुप दृष्टि न डालिये, गन्दे चित्र, बुरे गाने, कुसंगति त्याग दीजिए, आप इन महा अनर्थकारी चिंताओं से मुक्त रहेंगे।

यदि आप वासना की तुच्छता को मन में गहरा उतार सकें, तो अपनी बहुत सी शक्ति का क्षय रोक सकेंगे। रात्रि में शय्या ग्रहण करने से पूर्व मन को पवित्र संकल्पों में निरत रखना, कुसंगति से बचना, सद् ग्रन्थों की प्रेरणा ग्रहण करना वासना-मुक्ति का उपाय है।

आर्थिक चिंताऐं-

आर्थिक चिंताऐं आज के मानव की बड़ी कमजोरी है। हर एक व्यक्ति “अधिक रुपया चाहिए” चिल्ला रहा है। जिस किसी से पूछिये वही अपनी गरीबी का प्रदर्शन करता है। यथेष्ट रुपया रखने वाले धनीमानी व्यक्ति भी आर्थिक चिंताओं में डूबे हैं।

आर्थिक चिंताओं की उत्पत्ति के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-

(1) कृत्रिम आवश्यकताओं की अभिवृद्धि।

(2) अपने को दूसरों के समक्ष बढ़ा-चढ़ा कर प्रदर्शन करना।

(3) शौक की वस्तुओं-उत्तम वस्त्र, बढ़िया मकान, कीमती भोजन, मेवा, मिष्ठान, सैर सपाटा का उपयोग।

(4) नशेबाजी या वेश्या गमन, गुप्त रोग, मुकदमे बाजी।

(5) समाज में दूसरों को अधिक देना लेना, विवाह शादियों में अनाप शनाप व्यय।

(6) अधिक संतान की उत्पत्ति तथा उनकी आवश्यकताएँ जुटाने में कठिनाइयाँ।

(7) दूसरों को प्रसन्न करने की चेष्टा में व्यय।

ऊपर के प्रत्येक कारण पर विचार कर देखिये कि आप आखिर क्यों चिंतित हो रहे हैं? व्यर्थ के शौक या दिखावा छोड़ दीजिये। अपना वास्तविक रूप ही जनता के समक्ष आने दीजिये। क्या रक्खा है थोड़ी देर के उस आनन्द में जो सदा के लिये आपको ऋण के बोझ में बाँध दे। उस रात्रि सुख में क्या आनन्द है, जो इतने बच्चे उत्पन्न कर दे कि आप उनकी शिक्षा, विवाह, नौकरी लगाने में ही मर मिटे? व्यर्थ की आवश्यकताएँ वे जंजीरें हैं, जो आपको दूसरों के सामने हाथ फैलाने को विवश करती हैं। एक बीड़ी या दियासलाई की सींक के लिए आप दूसरों के सन्मुख हाथ पसारते नहीं लज्जाते! कैसा दुर्भाग्य है कि चाट-पकौड़ी, सिनेमा, मिठाई या जुए के लिए आप दूसरे की खुशामद करते हैं।

गरीबी बुरी नहीं है। यदि आप गरीब हैं, तो वैसे ही समाज के सम्मुख रहिए। आपके गुण, आपकी शिक्षा, उच्च संस्कार, व्यवहार, मुख की प्रसन्नता, सज्जनता का व्यवहार आपको समाज में उच्च पद प्रदान करेगा सज्जन व्यक्ति गरीब हो कर भी प्रतिष्ठा का अधिकारी होता है। मितव्ययिता एक कला है। उसमें पारंगत बन कर आप आर्थिक चिंताओं से मुक्त रह सकते हैं। आय को देखिये। उसी के अनुसार व्यय को कम या अधिक करते चलिए। जिस दिन आप कुछ नहीं कमाते, उस दिन भूखा रह लेना, कर्ज लेकर चिंतित रहने से श्रेयस्कर है।

सामाजिक चिंताऐं-

सामाजिक आचार व्यवहार में नाना प्रकार की चिंताएँ आपको व्यग्र करती हैं। आप अपने अफसर को प्रसन्न करना चाहते हैं। डरते है कि कहीं वह नाखुश न हो जाय। यदि आप दुकानदार हैं, तो ग्राहकों के रुष्ट हो जाने से डरते हैं। यदि आप अध्यापक हैं, तो विद्यार्थियों से, वकील हैं तो अपने मुवक्किलों से, उपदेशक हैं, तो श्रोताओं से डरते हैं। ये चिंताएं तब दूर हो सकती हैं, जब आप मनोविज्ञान का अध्ययन कर मनुष्यों के गुप्त रहस्यों का ज्ञान प्राप्त करें। स्त्री, पुरुष, ग्राहक, श्रोता, बच्चों, बूढ़ों, अफसरों के मन में रहने वाले “अहं” को समझ लें। लोग तभी अपने से रुष्ट होते हैं, जब आप उनके “अहं” पर आघात करते हैं। “अहं” को उकसाने या उभारने से प्रत्येक व्यक्ति प्रसन्न हो सकता है। आपके सामाजिक व्यवहार सरस-स्निग्ध हो सकते हैं।

प्रत्येक व्यक्ति एक बन्द पुस्तक के समान है। उसमें नाना अनुभूतियाँ, स्वाभाविक कमजोरियाँ, दलित वासनाएँ भरी पड़ी हैं। वह कुछ चीजों में दिलचस्पी लेता है, कुछ को ना पसन्द करता है। इन्हीं का मनोवैज्ञानिक अध्ययन हमें इस प्रकार की चिन्ताओं से मुक्ति प्रदान कर सकता है।

मानसिक चिन्ताऐं-

इनका जन्म अति-विचार शीलता से होता है। कुछ व्यक्ति इतने सुकुमार होते हैं कि तनिक सी मानसिक चोट को भी सहन नहीं कर पाते, टीका टिप्पणी, मजाक, आलोचना, या अपने विषय में अप्रिय बाते सुनकर आवेश में भर जाते हैं। कुछ निराशा का ताना बाना दिन रात बुना करते हैं। कहीं असफलता हो गई, उसी के लिए चिन्तित रहा करते हैं। भविष्य में क्या होगा? हमारी नौकरी रहेगी या छूट जायगी? बच्चों की शिक्षा कैसे चलेगी? लड़कियों का विवाह कैसे होगा? बाजार में मँहगाई है, उदरपूर्ति कैसे चलेगी?-इन चिंताओं में फंसे रहने वाले व्यक्ति को जानना चाहिए कि परमेश्वर के हाथ इतने बड़े हैं कि उन सभी कार्यों की पूर्ति के लिये उपयुक्त साधन निकाल लेंगे। हमें असफलता, निराशा, कमजोरी का अनुभव नहीं करना है, भविष्य उज्ज्वल है। हमारी शक्तियाँ भी तब तक इतनी बढ़ जायगी कि हम सभी बढ़ने वाले उत्तर दायित्वों को पूर्ण कर सकेंगे। यदि हमारे ऊपर उत्तरदायित्व बढ़ते हैं, तो हमारी शक्तियाँ, योग्यताएँ, संचित धन राशि, समाज में सम्मान हमारे संबन्ध भी तो उत्तरोत्तर विकसित हो रहे हैं। हमारी मानसिक और बौद्धिक सम्पदाएँ भी तो निरन्तर वृद्धि पर हैं। हमारे मित्र, सगे सम्बन्धी भी हमारी सहायता के लिए मौजूद है। अतः चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। फिक्र क्यों करें आने वाला समय हमारे लिये उज्ज्वल होगा। हमारे बाल बच्चे पढ़ कर उस स्थिति में पहुँच जाँयगे कि हमारा भार वहन कर सकें।

मन में चिता रखना फूँस में अग्नि को छिपाये रखने जैसा मूर्खतापूर्ण प्रयत्न है। चिंता आपके स्वास्थ्य को दग्ध कर देगी। आयु का बहुत सा हिस्सा जीने से नहीं, प्रत्युत चिंता की महा अनर्थकारी, प्रलयंकारी दुर्वह कराल अग्नि से भस्मीभूत हो जायगा।

अपने विषय में अधिक चिंतन कर हम अपनी समस्याओं को हल नहीं कर पाते। उलटे कठिनाइयों से संघर्ष करने वाली गुप्त इच्छा शक्ति का ह्रास करते हैं। आने वाली कठिनाइयों के विषय में चिंता कर रही सभी शक्तियों को भी क्षय करने की अपेक्षा यह युक्ति संगत है कि उन पर स्थिर बुद्धि से शान्तचित्त हो उन को दूर करने की तदबीरों पर विचार किया जाय।

चिन्ता न कीजिये, ठंडे दिल से प्रत्येक समस्या पर सोचिये विचारिये। समस्या को हल करने की कोई युक्ति निकालिये। श्रम कीजिये। चिंता से क्या पायेंगे? यदि आप स्वयं नहीं सोच सकते, तो मित्रों से, पत्नि से, अध्यापक से, या किसी विशेषज्ञ से सलाह लीजिये। दूसरों को अपनी समस्याएँ सुलझाने का अवसर प्रदान कीजिये।

कोई ऐसी विषम स्थिति नहीं कि उसकी सुलझाहट न की जा सके। थोड़ी सी विचारशीलता से कुछ न कुछ उपाय अवश्य निकल आयेगा जिससे परिस्थिति की रक्षा हो सके।

शारीरिक चिंताऐं-

शारीरिक चिन्ताओं में क्रमशः होती हुई कमजोरी तथा आने वाली वृद्धावस्था प्रमुख हैं। कुछ व्यक्ति अपनी शारीरिक निर्बलता को बढ़ा-चढ़ा कर देखने के आदी होते हैं। यह एक प्रकार का संदिग्ध स्वभाव है।

साधारण व्यायाम, संयमित जीवन, जिह्वा पर कन्ट्रोल तथा आहार-विहार में सावधान रहने से अनेक शारीरिक चिंताएँ दूर हो सकती हैं। शक शुवे की आदत अनर्थकारी है। आपका जीवन सौ वर्ष तक मजबूती से चलने के लिये बनाया गया है। उस पर अत्याचार न करें, तो व मजे में अपने आप चलता जायेगा। मिथ्या भय त्याग दीजिये। साधारण बीमारियों से युद्ध करने की प्रचुर सामर्थ्य आप में विद्यमान है। व्यर्थ के भय से शरीर दुर्बल होता है।

चिंता की सृष्टि करने वाले आप स्वयं ही हैं। यह आपके विचार की आदत मात्र है। वाह्य वातावरण से चिन्ता का कोई सम्बन्ध नहीं है। चिन्ता करके वातावरण को बदला नहीं जा सकता।

यदि शरीर की चिंता है, तो कुछ क्रियात्मक कार्य कीजिये। टहलिये, कसरत कीजिये, शुद्ध वायु में रहा कीजिये या विश्राम लीजिए पर व्यर्थ फिक्र से तो कुछ होना नहीं है। योजना बनाकर चिन्ता के कारण को दूर करना ही इससे मुक्ति का उपाय है।

धार्मिक चिन्ताऐं-

ईश्वर क्या है? आत्मा तथा ईश्वर का क्या संबन्ध है? मृत्यू के पश्चात् क्या होता है? ये प्रश्न बड़े महत्वपूर्ण हैं। इनसे मन में सद् प्रकाश का उदय होता है। लेकिन यदि आप इनके ठीक उत्तर नहीं जानते, या कोई आपको संतुष्ट नहीं कर पाता, तो कोई चिन्ता न करें। ज्यों-ज्यों आपका ज्ञान बढ़ेगा, आप स्वयं इसकी उपयोगिता तथा अर्थ समझते चलेंगे। धर्म अनुभव की वस्तु है। प्रतिदिन हम धार्मिक समस्याओं के विषय में भी कुछ न कुछ ग्रहण करते हैं। अतः समय से पूर्व इन चिन्ताओं से भी परेशान नहीं होना चाहिए। यदि हम अपने अनुभव से लाभ उठावें तो प्रायः सभी प्रकार की चिन्ताओं से मुक्त हो सकते हैं।


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