शक्ति अपनी ही तुझे कब ज्ञात (kavita)

March 1951

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देख, पद रख, नाप लेगा सिंधु की तू थाह,

हाथ ऊपर कर निकट ही बादलों की छाँह,

सुन जरा तू सुन सकेगा तारकों की बात!

शक्ति अपनी ही तुझे कब ज्ञात!

छू लिया जिसको पिघल ही वह गया पाषाण,

कामना तेरी गई कर शाप को वरदान,

तू तृषित मरु भूमि में रस का सुरम्य प्रभात,

शक्ति अपनी ही तुझे कब ज्ञात!

तिमिर मय जग में भरा तूने पुनीत प्रकाश,

शिथिल पद में ध्येय पाने का अटल विश्वास,

बन गई ऊषा, तुझे पाकर विरह की रात,

शक्ति अपनी ही तुझे कब ज्ञात,

शक्ति अपनी तू भली विधि आज ले पहिचान,

आज तेरे हाथ में है विश्व का कल्याण,

कह रही है बिजलियों की शपथ खा बरसात!

शक्ति अपनी ही तुझे कब ज्ञात।

(श्रीमती विद्यावती मिश्र)



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