तुम किसे रिझाते रे! निर्जन वन में करके नर्तन मयूर
चिर रम्य मनोरम चंद्रराशि फैलाते मद में चूर-चूर
कोकिल! नीरव तरु डाली पर स्वर्गीय स्वरों में गाती हो
री, अरी बावली वहाँ कौन जिसको यह गान सुनाती हो
ठहरो-ठहरो ओ सरित! तनिक, क्यों यह कल-कल ध्वनि का गुँजन
गिरि पर किससे कहती फिरती- गतिमय, परिवर्तनमय जीवन
हे सूर्य! सतत रह जागरुक, सिखलाते हो कर्त्तव्य-ज्ञान
किस स्वार्थ हेतु सर्वदा किया करते जग को जीवन प्रदान
हे सुमन! तुम्हीं बतला दो ना, अपने परमल का प्रिय पराग
तुम लुटा रहे क्यों जगती को, हे चिर-सुन्दर! हे वीतराग
बोलो! हाँ शशि! बोलो बोलो! हे शीतलता के अमर स्त्रोत
करते हो क्यों जग को सदैव अमृत-वर्षा से ओत-प्रोत
सब के स्वर मिल कर गूँज उठे- ‘जीवन का केवल एक ध्येय’
निष्काम कर्म! निष्काम कर्म!! निष्काम कर्म!!! ही प्रेय श्रेय
जीवन अनादि! जीवन अनन्त! संचरण और जागृति जीवन
चेतना पूर्ण संघर्ष! प्रगति! उत्थान! विजय! सच्चा जीवन
-कर्मयोग