धर्म हो चाहे राजनीति, दोनों में साहस की आवश्यकता होती है। मन की दृढ़ता के बिना साहस नहीं आता।
पेट भर लेना ही मनुष्य का उद्देश्य नहीं है और न कुटुम्ब का भरण पोषण करना ही मनुष्य जीवन का चरम लक्ष्य है। एक कुत्ता भी तो अपना जीवन निर्वाह कर लेता है। -लोकमान्य तिलक
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भक्ति तीन प्रकार ही होती है- (1) पत्थर जैसी- जो डूब तो जाती है और बाहर से गीली भी हो जाती है परन्तु भीतर से सुखी ही रहती है। (2) कपड़े जैसी- जो सब तरफ से गीली हो जाती है और डूब भी जाती है। परन्तु फिर भी पानी से अलग ही रहती है। (3) शक्कर जैसी- जो पानी के साथ घुल−मिल कर एक हो जाती है। यही भक्ति सर्वश्रेष्ठ है।
-स्वामी रामतीर्थ