जब तक हृदय में स्वार्थपरता रहती है तब तक भगवान से प्रेम नहीं हो सकता।
-स्वामी विवेकानन्द
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प्रार्थना करना याचना करना नहीं है, वह तो आत्मा की पुकार है।
-महात्मा गाँधी