सुमन क्यों इतरा रहे हो

March 1949

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यह क्षणिक सौंदर्य, क्यों फूले न आज समा रहे हो,

सुमन क्यों इतरा रहे हो?

मत करो अभिमान यदि तुमको मिला है रूप अनुपम।

यह तुम्हारा रूप यह सौंदर्य है केवल अमित भ्रम॥

है न कुछ स्थिर जगत में वह बुरा हो या कि उत्तम।

मृत्यु है पाना सभी को देर में हो निकटतम॥

इस अनित्य स्वरूप में क्यों विश्व को भरमा रहे हो? सुमन0।

यह न समझो भ्रमर गण के हेतु रस की खान को तुम।

और सुख सम्पन्न उपवन की सुहाती शान हो तुम॥

एक बुँद-बुँद के सरिस मिटते हुए अरमान हो तुम।

टूट कर जो फिर न जुड़ता तुच्छ वह सामान हो तुम॥

विश्व का कण-कण बदलता तुम बदलते जा रहे हो। सुमन0।

रस बनेगा विष, समीरण भी तुम्हें प्रतिकूल होगी।

आज की कोमल तुम्हारी पंखंडी कल शूल होगी॥

रंग करके भंग सुन्दरता तुम्हारी धूल होगी।

अस्तु इस सौंदर्य पर यह गर्व करना भूल होगी॥

देह है नश्वर तुम्हारी व्यर्थ ही इठला रहे हो। सुमन0?

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