विडम्बना

July 1949

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राम नाम रटता, क्या रमता कभी राम में तेरा मन भी?

विश्व लोटता था चरणों पर,

और रमा थी जिसकी दासी,

‘राम-राज्य’ में लहराती थी,

जो नन्दन की स्वर्ण लता-सी

सुना कभी इन कानों से उस, भारत माता का क्रन्दन भी?

अपनी दशा देखकर आया,

कब तेरी आँखों में पानी!

ध्यान कहाँ निज गौरव का, तू-

पराधीनता का अभिमानी!

रे निर्लज्ज! बोल, क्या तेरे, शोणित में है संस्पन्दन भी?

दानव दल का दलन किया था

राम-तुल्य उन प्रण वीरों का-

वंशज है क्या रे कायर! तू

लव कुश से उन रण-धीरों का!

देखा है तूने रे मानव! क्या कृमि-कीटों का जीवन भी?

राम-नाम रटता, क्या रमता, कभी राम में तेरा मन भी?


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