राम नाम रटता, क्या रमता कभी राम में तेरा मन भी?
विश्व लोटता था चरणों पर,
और रमा थी जिसकी दासी,
‘राम-राज्य’ में लहराती थी,
जो नन्दन की स्वर्ण लता-सी
सुना कभी इन कानों से उस, भारत माता का क्रन्दन भी?
अपनी दशा देखकर आया,
कब तेरी आँखों में पानी!
ध्यान कहाँ निज गौरव का, तू-
पराधीनता का अभिमानी!
रे निर्लज्ज! बोल, क्या तेरे, शोणित में है संस्पन्दन भी?
दानव दल का दलन किया था
राम-तुल्य उन प्रण वीरों का-
वंशज है क्या रे कायर! तू
लव कुश से उन रण-धीरों का!
देखा है तूने रे मानव! क्या कृमि-कीटों का जीवन भी?
राम-नाम रटता, क्या रमता, कभी राम में तेरा मन भी?