अपने स्थान पर सब का महत्व है।

July 1949

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(श्री लक्ष्मी नारायण टंडन ‘प्रेम’, संपादक ‘खत्री-द्वितैषी’)

प्रायः हम जिन चीजों को साधारण समझ कर उनकी उपेक्षा करते हैं, अनुभव बताता है कि वह ही अधिक महत्व की होती हैं। संसार में कोई भी वस्तु हीन तथा नगण्य नहीं है। अपने-अपने स्थान पर सभी का महत्व होता है। भोजन करना, जल पीना आदि साधारण बात हैं किन्तु इन्हीं के उचित तथा अनुचित प्रयोग पर हमारा स्वास्थ्य तथा अस्वास्थ्य किस प्रकार निर्भर है यह बात ‘अखण्ड-ज्योति’ इस वर्ष के पिछले अंकों में छाप चुकी है। आज हम आपको पैखाने तथा पेशाब के संबंध में कुछ बतायेंगे। इन चीजों को घिनौनी कहकर हमें उपेक्षा न करनी चाहिए। स्वास्थ्य-विज्ञान की दृष्टि से इनके विषय में जानना लाभप्रद होगा।

यह एक विचित्र बात है कि ज्यों-ज्यों हम सभ्यता की सीढ़ी को पार करते जाते हैं, त्यों-त्यों हम प्रकृति माता से दूर होते जाते हैं। हमारे जीवन में अस्वाभाविकता तथा कृत्रिमता बढ़ती जाती है। प्रत्यक्ष-तथा परोक्ष रूप से अनेक बार अनजाने ही हम प्रकृति के नियमों की अवहेलना करते हैं। उनके नियम तोड़ते हैं। प्रकृति के नियम बड़े कठोर हैं। प्रकृति का न्याय इसी में है कि जैसे हमारे अच्छे या बुरे कर्म हो वैसा ही हमें अच्छे और बुरे फल मिलें और मिलते भी हैं। प्रकृति को हम किसी भी प्रकार धोखा नहीं दे सकते।

प्रायः झूठी लज्जा तथा व्यर्थ के संकोच में पैखाना पेशाब मार लेते हैं। चार आदमियों में बैठे हैं, संकोचवश हम उठते नहीं। रात के समय हम लेटे हैं आलस्यवश हम पैखाने पेशाब को उठते नहीं। स्त्रियों में यह दोष विशेष रूप से पाया जाता है। अक्सर मैंने स्त्रियों को कहते सुना है कि जाड़े में कौन पैखाने जाय, नहाना पड़ेगा, धर्म की भावना ही उनके स्नान में प्रधान है, स्वास्थ्य की भावना नहीं। अन्यथा वह सोचती कि पैखाने न जाने से जो स्वास्थ्य बिगड़ेगा तो! यह ठीक है कि स्नान की भावना धर्म के नाम पर स्वास्थ्य के भाव की ही द्योतक है किन्तु अशिक्षित, प्राचीन, रूढ़िवादिनी स्त्रियाँ स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से प्रायः स्नान आदि नहीं करतीं। यदि स्वास्थ्य की भावना ही ऐसी स्त्रियाँ रखतीं तो पैखाने अवश्य जातीं-नहाना पड़ेगा इस डर से उसे मार न लेती। आप सुनकर हंसेंगे कि ऐसी भी स्त्रियाँ हैं जो कहती हैं कि आज एकादशी का व्रत है, दूसरी बार मालूम पड़ने पर दिशा कौन जाय अन्यथा भूख सतायेगी। यह है हमारा दुर्भाग्य।

हम जानते हैं कि बड़ी आँतों की नसें रस सोखा करती हैं। जब उनमें सड़ा मल भरा रहता है तो उस दूषित तथा विषैले पदार्थ के रस को घसीट कर हमारा रक्त दूषित करती हैं। अफखरात हृदय तथा मस्तिष्क की ओर चढ़ने लगते हैं। इससे तुरंत दिल सा बैठने लगता है, मिचली आती है, सर चक्कर खाता है, आँखों के सामने अंधेरा होता है। अनेक छोटे-मोटे रोग ऐसे मनुष्यों को अपना शिकार बनाते हैं। इसी प्रकार पेशाब आपको लगा पर आप पेशाब मार रहे हैं-गर्मी से वाष्प बनकर वह दिमाग की ओर बढ़ेगा। हमें पथरी होने की संभावना होती है क्योंकि गुर्दों में पेशाब के अंदर के ठोस कण जमा हो होकर कड़े हो सकते हैं। अस्तु, पेशाब-पैखाने रोकने के भयंकर परिणामों को समझ कर आइए हम समझें कि हमें पेशाब कब करना चाहिए, कब नहीं तथा पैखाना कब जाना चाहिए कब नहीं।

लघु शंका के लिए हमें कब जाना चाहिए और क्या ध्यान रखना चाहिए यह नीचे लिखा है-

(1) साधारण तथा जब भी लगे तब। यहाँ पहले ही लिख चुका हूँ कि पेशाब के वेग को रोकने से उसके दूषित मल फिर खून में लौटने लगते हैं और अफखरात मस्तिष्क की ओर बढ़ने लगते हैं, मसानों पर जोर पड़ता है और वह कमजोर हो जाते हैं, पथरी का डर रहता है।

(2) स्त्री-संग तथा स्वप्न-दोष के बाद यदि स्नान न करे देह भी न अंगोछे तो कम से कम पेशाब तो कर ही डाले। (तथा कुछ रुक कर इन्द्रिय स्नान भी करा लें।) इससे ठंडक पहुँचती है गंदगी दूर होती है। पेशाब की नली में यदि एक आध बूँद वीर्य रुकी होती है तो वह दूर होती है। (पर गर्भधारण करने की इच्छुक स्त्री पति-संग के बाद तुरन्त कभी पेशाब न करें) (3) सोने के पहले पेशाब करें। इससे स्वप्न दोष का भय नहीं होता। नींद भी अच्छी आती है। (4) भोजन कर चुकने के तुरंत बाद। इससे मसाने में आये विष निकल जाते हैं। उस समय बाँयी ओर झुका रहे तथा बाँया श्वास चले। दाँत कसकर बंद कर लेना चाहिए तथा मुँह भी (5) सोकर उठते ही यदि तुरंत पैखाना नहीं जाता है तो कम से कम पेशाब तो कर ही लें।

बहुत से लोगों में बड़ी गंदी आदत होती है कि वह पेशाब के बाद इन्द्रिय नहीं धोते। विशेष कर पढ़े-लिखे व्यक्ति तथा दफ्तरों आदि में काम करने वाले। इस बात में हम मुस्लिमों से शिक्षा लें। यदि उनके पास जल नहीं होता तो वह मिट्टी या ईंट के टुकड़े से पोंछ लेते हैं।

केवल पानी पीने के तुरंत पूर्व ही पेशाब नहीं करनी चाहिए न पानी पीकर तुरन्त पेशाब करना चाहिए। इससे मसाने कमजोर होते हैं।

अब हम देखें कि पैखाने कब जाना चाहिए और क्या ध्यान रखना चाहिए-

(1) साधारणतया जब भी पैखाना लगे तब। पैखाना मारने से बहुत कुछ वहीं रोग या कष्ट हो सकते हैं जो पेशाब मारने से अर्थात् बड़ी आँतों की नसें दूषित द्रव्य चूसकर खून में पहुँचाकर उसे दूषित करने लगती हैं। कहा जा चुका है कि शर्म, डर, आलस्य आदि वश पैखाना, पेशाब मारना रोगों को न्यौता देना है। (2) कहते हैं पैखाना जाता है ‘एक बार योगी, दो बार भोगी, बार-बार रोगी’। योगी चौबीस घंटे में एक ही बार भोजन करता है- वह भी सूक्ष्म तथा सात्विक अतः उसका एक बार दिशा को जाना पर्याप्त है।

पर गृहस्थ दो बार भोजन करता है। कम से कम करना तो दो ही बार चाहिए। अभाग्यवश आजकल प्रायः लोगों का मुँह दिन रात बकरी की भाँति चलता है अतः वैसे ही अनियमित तथा बे हिसाब उन्हें पैखाना भी जाना पड़ता है। पर नियमित रूप से दो बार भोजन करने वाले गृहस्थ को उसी हिसाब से नियमित समय पर दो बार पैखाना जाना चाहिए। (3) प्रातः उठते ही ऊषापान तथा करवट आदि लेने के बाद, लगे या न लगे तुरंत पैखाना जाना चाहिए। सायंकाल को 4 और 6 के बीच में। हमें दो प्रकार के साधारणतया मनुष्य मिलते हैं- एक तो वह लोग जिन्हें दस्त बहुत आते हैं। खान-पान के नियम तोड़ने पर कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनका कोठा बहुत कड़ा होता है। उन्हें कब्ज बहुत रहता है। एक दिन के किये हुए भोजन का फुजला थोड़ा-थोड़ा करके तीन-तीन चार-चार दिन बाद निकलता है। चौबीस घंटे के अंदर ही सब नहीं निकल जाता। ऐसे लोगों को पेट की कसरतें, टब में (बाथ) पेडू मलना, गेहूँ की दलिया, छाछ, दही, फल, हरी तरकारियाँ, शाक, दूध आदि का प्रयोग अधिक करना चाहिए। कब्ज की संसार में कोई दवा है ही नहीं। घूमने से अधिक और कोई चीज कब्ज दूर करने में सहायक नहीं होती। ऐसे लोगों को चार-मील रोज सुबह शाम टहलना चाहिए। गाँव वाले मील दो मील चलकर खेतों में पैखाने जाते हैं। ऐसा करने से प्रायः उन्हें कब्ज नहीं रहता। (4) उपवास-काल में भोजन नहीं किया जाता, इससे पैखाना नहीं लगता, पर रुधिर में घूम−घूम कर मल-विकार और विष अड्डा जमा लेते हैं। अतः प्रतिदिन एनिमा लेकर उन्हें निकाल दें अन्यथा बड़ी आँतों की नसें सोखकर खून में विष को वापस पहुँचा देगी। (5) उपवास तोड़ने पर यदि दो घंटे तक पैखाना न लगे तो अवश्य एनीमा लेकर पैखाना जायं। (6) पैखाने के समय दाहिनी ओर झुक बैठे तथा दाहिना श्वास चले। दाँत कस कर बंद रखे तथा मुँह भी, ताकि गंदी हवा फेफड़ों में न पहुँचे। (7) कब्ज अधिक रहता है तो जुलाब लेना उचित नहीं। कभी-कभी एनीमा द्वारा सफाई कर लें। पैखाने, पेशाब के बाद मल-मूत्र द्वार तथा हाथ-पैर ठीक प्रकार से धोकर स्वच्छ कर लें।

खाना खाने के तुरंत बाद पैखाना जाना गंदी आदत है। यद्यपि कुछ पश्चिमी लेखक इसे उचित समझते हैं, पर भारतीय नहीं। ऐसी आदत न पड़ने दें पर यदि कभी मालूम ही पड़े तो मारे नहीं। यदि हम पैखाने और पेशाब के संबंध के नियमों का पालन ठीक से करें तो हम अनेक छोटे-मोटे रोगों को भगाकर स्वस्थ हो सकते हैं।


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