कामुकता के तुच्छ विचारों से ऊँचे उठिए।

July 1949

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(प्रो. रामचरण महेन्द्र एम. ए.)

क्या गृहस्थ, क्या कुमार, यदि वह अत्यधिक वीर्यपात का शिकार होकर रोग ग्रस्त हो चुका है तो भी सद्संकल्प से पुनः आत्म सुधार के मार्ग का पथिक बन सकता है। ‘विश्वासः फलदायकाः।’ आत्मोन्नति में विश्वास तथा दृढ़ संकल्प पुनरुत्थान के प्रधान तत्व हैं। आप आन्तरिक मन से संकल्प कीजिए कि विषयभोग, वीर्यनाश, कामोद्वेग वासना की पूर्ति यह स्वास्थ्य, सदाचार, प्रकृति के विरुद्ध है। अति स्त्रीप्रसंग करना कफ़न की तैयारी करना है। व्यभिचार, हस्त मैथुन, गुदा मैथुन, कुसंग क्षण-क्षण निर्बल, निस्तेज, दुखी तथा अल्पायु बनाने वाले हैं। वीर्य के एक बिन्दु का नष्ट करना मानो अपनी जीवन शक्ति को गंदे नाले में फेंकना है। सभी अप्राकृतिक वीर्यनाश के मार्ग शरीर की कोमल नसों को निर्बल करने वाले शरीर की चमक-दमक कान्ति का नाश करने वाले हैं। अतः प्रत्येक तर्क से आप आन्तरिक मन को समझाइए कि वह कामोपभोग में प्रवृत्त न हो, न वैसी बातें करे, न सोचे। पवित्र संकल्प कीजिए कि आप पुण्यात्मा, सदाचारी, वीर्यवान बनेंगे, जीवन की सर्वांगीण उन्नति करेंगे, बुद्धि तथा मन को शिव संकल्प, शुद्ध विचार, कल्याणकारी कर्मों में लगायेंगे और मन, वचन, कर्म द्वारा अद्भुत दैवी शक्ति प्रकट करेंगे।

शुभ संकल्प उन पुष्ट विचारों का नाम है जिनमें कूट-कूट कर विश्वास भरा हो। यदि आप हृदय से चाहते हैं कि निम्न जीवन की भूमिका से उठकर उच्च आध्यात्मिक जीवन पर चलें तो उसके लिए दृढ़ संकल्प कर लीजिए। अपने संकल्प तथा विचारों से हम नष्ट या श्रेष्ठ बनते हैं। यदि गुप्त रूप से मन में-आन्तरिक गुप्त मन में कोई दबी हुई वासना या कुकल्पना छिपी रहे, तो वह भी साधक का पतन करने के लिए यथेष्ट है। संकल्प विचारों को जन्म देते हैं, मनुष्य के चारों ओर उसी प्रकार का वातावरण निर्माण करते हैं। मन में सद्संकल्प को सजाना, आन्तरिक मन में दृढ़ता से जमाना वीर्यरक्षा का प्रथम सोपान है।

पुण्य संकल्पों में पाप संकल्पों से कहीं अधिक शक्ति है। पाप स्वयं निर्बल है, वह असत्य है, खोखला और निर्जीव है। उसमें स्थायित्व नहीं, ठहराव नहीं। अतः पुण्य संकल्प स्वभावतः ही बुरे विचार कुकल्पना दुश्चिन्ताओं को परास्त करेंगे। पापमय भावना पुण्य संकल्प के समक्ष ठहर नहीं सकती! भगवान ने स्वयं कहा है- तुम्हारी यह चेष्टा कभी निष्फल न होगी। तुम्हारा अवश्य उद्धार होगा। आपके पुण्य संकल्प निश्चय ही पापमय वासना को दग्ध कर देंगे। कुबुद्धि, अज्ञान और कुविचारों को परास्त करेंगे। दुःस्वप्नों का नाश करेंगे। आपके हृदय में एक अन्तर्ज्योति है, ईश्वर का एक मंदिर है, अन्तरात्मा की एक आवाज है उसे विकसित कीजिए। उस दैवी ज्योति को जाग्रत कीजिए, यह विवेक जागृति ही उन्नति का राजमार्ग है। इस अन्तर्ज्योति के जागृत होने से कामवासना रतिप्रसंग विषयोपभोग से स्वयं वैराग्य हो जाएगा। यह अन्तर्ज्योति चैतन्य शक्ति है, अंतर्बल है। आज से ही दृढ़तापूर्वक संकल्प कीजिए- ‘मैं कभी निंद्य वासना से सने हुए अपवित्र विचारों, गन्दी कल्पनाओं की तरंगों को हृदय में ग्रहण नहीं करता। मैं प्रत्येक स्त्री को माता या भगिनी के रूप में देखता हूँ। इन्द्रियाँ मेरे वश में हैं। मैं पूर्ण ब्रह्मचारी हूँ। वीर्य की रक्षा करता हूँ। शुभ सोचता हूँ, शुभ कर्म करता हूँ। अतः मैंने कामवासना को जड़ मूल से उखाड़ फेंकने का निश्चय किया है।


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