भोजनों का लाभप्रद तथा हानिप्रद मिश्रण

January 1949

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(श्री लक्ष्मीनारायण टंडन प्रेमी ‘सम्पादक’ खत्री-हितैषी’)

सृष्टि में सृष्टिकर्त्ता को छोड़कर शेष सभी पदार्थ परिवर्तनशील हैं। वास्तव में नाश किसी का नहीं होता- केवल रूपांतर हो जाता है। संभव है हमारी इन्द्रियाँ उसका प्रत्यक्ष अनुभव न कर सकें। दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं। सृष्टि और विनाश क्रम साथ ही साथ निरंतर लगा ही रहता है। कुछ तो हम देखते, समझते हैं और मानते हैं और कुछ को प्रत्यक्ष देखना संभव नहीं, बुद्धि द्वारा समझ भी सकते हैं और यह भी हो सकता है कि अज्ञानतावश हम न भी माने। पर सत्य तो सत्य है- उसे कोई माने या न माने। आत्मा अनश्वर है, जीव अजर-अमर है, किन्तु नास्तिक पूर्वजन्म, पुनर्जन्म, आत्मा तथा परमात्मा को नहीं भी मानते हैं। अस्तु, शरीर भी परिवर्तन करता रहता है। हम बालक को युवा होते, युवा को वृद्ध होते तथा वृद्ध को मरते देखते हैं। यह ‘दीर्घकालीन-परिवर्तन’ हम कह सकते हैं। आज मनुष्य स्वस्थ है, कल रोगी और परसों या तो फिर स्वस्थ या मृत। रोगी होना तथा स्वस्थ होना यह भी परिवर्तन है, जो प्रायः प्राणियों के शरीर के साथ लगा ही रहता है। प्रश्न हो सकता है। ‘ऐसा क्यों?’ और उत्तर भी अत्यन्त सरल है।

यह तो हम जानते ही है कि इंजन तभी चलेगा जब उसे कोयला पानी मिलेगा। पर कोयला पानी मिलने के बाद कुछ और क्रियाओं द्वारा भाप पैदा करना भी आवश्यक है और भाप पैदा हो जाने के बाद इंजन को चलाने वाले तथा खत्म होते हुए कोयला पानी को देने वाले की भी आवश्यकता है। सबका सब समुचित एकत्रीकरण और कार्यक्रम चालू होगा तभी इंजन सुचारु रूप से चलेगा। मानव शरीर की उपमा भी इंजन से दी जा सकती है।

हम खाते हैं, दफ्तर जाते हैं, आराम करते हैं, बोझा भी ढोते हैं-संक्षेप से “काम” करते हैं। काम करने में हमें शक्ति की आवश्यकता पड़ती है। यह शक्ति हमें भोजन, जल आदि से प्राप्त होती है। भोजन, जल आदि से तात्पर्य यह है कि इससे अधिक हमें उष्णता, अग्नि या सूर्य आवश्यक हैं। इससे भी अधिक वायु और वायु से भी अधिक आकाश तत्व की हमें आवश्यकता है। पंचतत्वों से हमारा शरीर बना है और इस शरीर के पोषण या भोजन के लिए हमें पंचतत्वों की आवश्यकता है और पृथ्वी (और फल, तरकारी, अनाज आदि पृथ्वी तत्व से ही उत्पन्न होते हैं।) से अधिक जल, जल से अधिक वायु का हमारे लिए उपयोगी है। उपवास विज्ञान के ज्ञाता जानते हैं 15-20 दिन के उपवास तो साधारण बात है, सौ-सौ दिनों के सफल उपवास लोगों ने किए हैं और प्राकृतिक चिकित्सकों ने कराये हैं। किन्तु जल का उपयोग होता रहा है। किन्तु यदि 10-5 दिन जल न मिले तो कदाचित मनुष्य अवश्य मर जाय। योगाभ्यासियों की बात जाने दीजिए जो समाधि लगाकर असंभव बात भी संभव दिखा सकते हैं पर साधारण प्राणी 10-5 मिनट हवा न मिलने पर भी जीवित नहीं रह सकता।

यह तो ठीक है पर आकाश तत्व को खाने की बात सुनने पर आश्चर्य होगा ही। पर बात है कुछ ऐसी ही। उपवास चिकित्सकों तथा हिमालय के निर्जन भागों और अगम्य कंदराओं के निवासी महात्माओं से पूछा जाय तो वह बतायेंगे कि अन्न फल आदि भोजन के बिना भी मनुष्य जीवित रह सकता है। (पार्थिव भोजन) यदि आकाश-तत्व उसे मिलता रहे। विद्वानों को यह बात समझाने की नहीं है। वह तो सर्वविदित है।

पर साधारण प्राणी तो समझते हैं भोजन ही जीव का आधार है। और एक दृष्टिकोण से वे ठीक ही समझते हैं। भोजन के बिना निस्तार नहीं। हम जानते हैं प्रत्येक क्षण माँस, त्वचा, हड्डी, कोषाणु (Cells) आदि शरीर की सभी वस्तुओं का एक ओर धीरे-धीरे नाश होता रहता है और दूसरी ओर नई-नई हड्डियों, कोषाणुओं आदि का जन्म होता रहता है। यदि इस सृजन और संहार का कार्य ठीक अनुपात से शरीर में होता रहता है, तो हम स्वस्थ रहते हैं, किन्तु जब उसके क्रम में कोई व्यतिक्रम उपस्थित हो जाता है तो हम अपनी स्वाभाविक दशा में नहीं रहते। कुछ परिवर्तन सा हम अनुभव करते हैं और कभी उस परिवर्तन का अनुभव हम नहीं भी, उस समय तो कम से कम कर पाते। यही रोग या अस्वास्थ्य है।

किन्तु प्रश्न का उत्तर स्पष्ट नहीं हुआ। ठीक है कोयला पानी रूपी अन्न, जल आदि जब मशीन रूपी शरीर को हम देते रहते हैं तब फिर गड़बड़ी क्यों? यदि इस लेन-देन के कार्य में कोई रुकावट नहीं आती तब फिर अस्वाभाविक दशा, जिसे हम रोग कह सकते हैं शरीर की क्यों होती है? मान लीजिए हम जला, अधजला गीला, सूखा, आग का पत्थर, का विभिन्न प्रकार का कोयला, मशीन में डालते हैं तो मशीन पर जो प्रतिक्रिया होती है, उसमें भी असमानता रहेगी। उसी प्रकार जैसा हम भोजन करेंगे, उसी के अनुसार तो शरीर का पोषण तथा शरीर का कार्य होगा।

हमारे भोजन में प्रोटीन, कारबोहाइड्रेट, चर्बी, शर्करा, विटामिंस अनेक प्रकार के तथा जल इत्यादि की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि यही वे सब तात्विक वस्तुएँ हैं जिनके द्वारा हमारा यह शरीर बना है। तो इससे यह सिद्ध हुआ कि हमें सब वस्तुएं ग्रहण करनी चाहिए। ठीक भी है परन्तु कौन, किस समय, किस अवस्था में और किस प्रकार तथा कितनी आदि पचासों ऐसे प्रश्न हैं जिन्हें जानना हमें आवश्यक है। प्रोटीन का क्या कार्य है और चर्बी का क्या है आदि तथा कारबोहाइड्रेट की भोजन में कमी ज्यादती से क्या हानि लाभ होता है। आदि बातें आवश्यक होते हुए भी इस छोटे लेख में उन पर लिखना संभव भी नहीं है और प्रस्तुत शीर्षक के बाहर की भी बातें हैं। हमें तो केवल इतना निचोड़ निकाल लेना है कि भोजन ही स्वास्थ्य देता है और भोजन ही रोग।

किस भोजन से रोग होता है या किन-किन भोजनों के मिश्रण से रोग होता है और किन-किन मिश्रणों से स्वास्थ्य बनता है अर्थात् रोग नहीं होता, यही हमारा इस लेख का विषय है। इस विषय में 99 प्रतिशत जनता अनभिज्ञ हैं। हम अभाग्यवश यही समझते हैं कि तरमाल खाने से फल, तरकारी, दाल, रोटी, पकौड़ी, मिठाई आदि चाहे सभी एक साथ क्यों न खायें जायं लाभ ही पहुँचावेगा। अनपढ़ों की बात तो जाने दीजिए हमारे डिग्रीधारी विद्वान भी इन बातों में कोरे हैं और उससे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि यदि उनसे इस सम्बन्ध में कुछ कहा जाता है तो वह सुनने और समझने को ही तैयार नहीं होते। इतने लाभप्रद विषय के प्रति इतनी अधिक उपेक्षा और उदासीनता का प्रदर्शन यह हमारे सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। हम अज्ञानी हैं और अज्ञानी ही रहना चाहते हैं और सबसे अधिक हम जिह्वा अर्थात् स्वाद के वशीभूत हैं। हम जिंदा रहने के लिए खाना नहीं चाहते हम खाने के लिए जिन्दा रहना चाहते हैं।

महात्मा गाँधी ने सत्य कहा है कि केवल जिह्वा की इन्द्रिय को अपने बस में कर लो। शेष इन्द्रियाँ अपने आप बस में हो जायेंगी। अस्तु-यदि हम निम्नलिखित मिश्रण भोजन में न रखें भोजन करते समय, तो हमें लाभ होगा अन्यथा हानि -

(1) प्रोटीन और स्टार्च (माड़ी) वाले भोजनों को मिश्रण जैसे आलू (स्टा.) और गोश्त (प्रो.), रोटी (स्टा.), (प्रो.) और आलू, (प्रो.) और टोस्ट आदि।

याद रखिये स्टार्च अपने गलाने या हाजमे के लिए क्षार पदार्थ (Alkaline) चाहते हैं और प्रोटीन गलाने या धोने को आलू पदार्थ (Acid) अतः दोनों का एक साथ हजम होना असंभव है।

(2) स्टार्च और एसिड-(आलू) फलों का मिश्रित भोजन जैसे अनाज (स्टा.) और नींबू, नारंगी, टमाटर आदि (एसिड फ्रूट्स)। अभाग्यवश हमारे यहाँ दाल या तरकारी में नींबू डालकर रोटी और चावल के साथ खाया जाता है। चावल और रोटी (स्टा.) के साथ दाल (प्रो.) खाना भी अधिक लाभप्रद नहीं। रोटी तरकारी या चावल तरकारी खाई जाय तो अच्छा हो। यह ठीक है कि देश, ऋतु, अभ्यास, व्यक्तिगत शरीर, काल आदि का प्रभाव भी भोजन पर पड़ता है- अतः कोई सबके लिए एक सी भोजन सामग्रियाँ निर्धारित नहीं की जा सकती। तभी तो कहा गया है जो एक के लिए भोजन है वह दूसरे के लिए विष है।

मनुष्य यदि तगड़ा है, उम्र कम है, पेट ठीक है तो केवल वही इन मिश्रणों को खा सकता है। वह निभा ले जायगा। उसकी विशेष हानि न होगी। यदि वह खाये भी तो हर समय नहीं वरन् कभी-कभी। तथा हरी उबाली तरकारी साथ में काफी मात्रा में ले। शक्कर का प्रयोग भी केवल उन्हें ही लाभप्रद है जो शारीरिक परिश्रम अधिक करते हैं। सर्व साधारण को, दिमागी काम करने वालों तथा घर पर रहने वालों को शक्कर का प्रयोग नहीं करना चाहिए, या बहुत कम या कभी-कभी। 35 वर्ष की आयु के बाद प्रोटीन (दाल का प्रयोग सप्ताह में एक बार से अधिक नहीं करना चाहिए) का प्रयोग बहुत कम करना चाहिए। शहद खा सकते हैं। गुड़ तक गनीमत है और यदि शक्कर ही खाना है तो कच्ची शक्कर ही खायें। सफेद चीनी तो विष तुल्य होती है।

निम्नलिखित चीजें भी नहीं खानी चाहिए-

(1) दूध वर्ग तथा फल वर्ग, अन्न वर्ग के साथ (गेहूं, जौ, चावल, बाजरा, ज्वार आदि) और गन्ने का रस, गुड़, चीनी, शहद के साथ न खाये।

(2) मीठे फल (आम, खजूर, मुनक्का, किशमिश, अंजीर, अंगूर आदि) के साथ खट्टे फल न खायें।

(3) प्रोटीन के साथ दूध, मीठे फल, गुड़ शहद आदि न खायें। (4) शहद और घी सम मात्रा में (जहरीला हो जाता है।)

(5) शहद और मूली, शहद और मट्ठा, शहद और खिचड़ी, गरम चीज के साथ दही केला और दही (ये मिश्रण पाचन विकार पैदा करते हैं।)

(6) गरम पानी और दूध (शरीर को क्षीण करते हैं।) (7) दूध और मछली (कोढ़ पैदा करते हैं।)

(8) घी और बेल सम मात्रा में (पित्त बिगाड़ता है। (9) दूध के साथ खटाई, नमक, कुल्थी, मूली, लहसुन, उर्द के साथ मूली, बड़हल, कटहल (पाचन बिगाड़ते और रक्त विकार पैदा करते)

(10) दही को गरम रोटी या कोई कोई गरम पदार्थ के साथ।

(11) पानी मिला दूध और घी। (12) खीरा और खिचड़ी। (13) छाछ, दही, बेलगिरी में से किसी के साथ केला।

(14) दूध के साथ काँजी, सिरका, अंजीर, माँस, मछली, इमली, शराब, अखरोट, नींबू, जामुन।

(15) पानी और शहद सम मात्रा में। (16) शर्बत या ठंडे पानी के पीछे चाय या चाय के पीछे शर्बत, ठंडा पानी, खीरा, ककड़ी, तरबूज।

(17) काँजी सिरके साथ के साथ तिल। (18) तेल तथा घी की बनी चीजें साथ-साथ।

(19) मछली गन्ना और मसूर की दाल। (20) मछली और शहद। (21) दूध और तेल की बनी चीजें साथ-साथ।

(22) मूली या खरबूजे के साथ शहद। (23) दूध में गुड़। (24) खरबूजा और दही। (25) चावल और सिरका।

(26) माँस के साथ तिल दूध, पनीर सिरका या शहद। (27) घी, चिकनाई, मिठाई, खीरा, फ्रूट, ककड़ी, तरबूजा, खरबूजा, नाशपाती आदि के ऊपर पानी, शरबत या दूध-दही की लस्सी।

(28) तेल में बना कबूतर का माँस।

अब निम्नलिखित मिश्रण आदर्श हैं। अतः इनका प्रयोग लाभप्रद है।

(1) स्टार्च और फैट (रोटी, मक्खन, अनाज मलाई, केला-मलाई आदि)

(2) स्टार्च और हरे शाक (रोटी या अन्य अनाज-सलाद, आलू-हरी तरकारी, अनाज खीरा, ककड़ी आदि)

(3) स्टार्च, फैट और हरी तरकारी (रोटी मक्खन-हरे शाक, केला-मक्खन-हरी तरकारी सलाद आदि)

(4)स्टार्च और शर्करा (शहद-रोटी, शहद-अन्न आदि)

(5) स्टार्च और सूखे फल (रोटी-मुनक्का, खजूर-अंजीर आदि कोई अनाज और कोई सूखे फल आदि)

(6) स्टार्च, सूखे फल और शर्करा (रोटी-शहद-मुनक्का आदि)

(7) स्टार्च, फैट, हरी तरकारियाँ और सूखे फल (सलाद-किशमिश-घी या तेल मक्खन-रोटी या कोई अन्न)

(8) प्रोटीन और एसिड (अम्ल) फल (दूध ताजे फल, आदि)

(9) प्रोटीन और हरी तरकारियाँ (दूध दाल के साथ सलाद या कोई हरी तरकारियाँ या शाक)

(10) प्रोटीन और फैट (आदि तथा घी, दूध मक्खन आदि)

(11) प्रोटीन फैट और हरे शाक (हरी तरकारी आदि और घी, दूध आदि)

(12) प्रोटीन, फैट और एसिड (खट्टे) फल दाल, आदि घी, मक्खन, दूध आदि-नींबू टमाटर आदि। (13) प्रोटीन और शर्करा (सूखे मेवे-गिरी आदि, सूखे मेवे मलाई आदि-शहद आदि)

(14) फैट और शर्करा (सूखे फल दूध, शहद-दूध आदि)

(15) फैट और एसिड फल (कोई ताजे एसिड फल जैसे टमाटर, नींबू, संतरा, सेब आदि तथा मक्खन-मलाई-दूध आदि)

(16) दूध वर्ग (दूध दही, मक्खन, मलाई, मट्ठा, क्रीम आदि) तथा सभी साग-तरकारियां (पालक, परमल, गाजर, हरी मटर, और घीया तोरई, खीरा-ककड़ी टमाटर, प्याज आदि)

(17) अन्न वर्ग के साथ, शाक-तरकारियाँ तथा शहद या गुड़ और सूखे मेवों में कोई एक (अंजीर, मुनक्का, खजूर आदि) खा सकते हैं। अन्न वर्ग में से कोई भी एक या अधिक से अधिक दो पदार्थ दो एक भोजन में खाना पर्याप्त होगा जैसे रोटी-दाल के साथ गुड़ या शहद, दाल-चावल, तरकारी और गुड़ या शहद, रोटी-तरकारी और उसके साथ एक कोई मीठी चीज ले सकते है, प्रत्येक समय के भोजन में कुछ कच्ची सलाद और शाक होना आवश्यक है ही।

(नोट- काँसा, ताँबा या पीतल के पात्र में कई दिन का रखा हुआ घी, तेल या कुछ समय का रखा खटाई, दही, छाछ, मक्खन हानिप्रद है, अतः वर्जित है।)

भोजन सम्बन्धी यदि हम कुछ नीचे लिखे साधारण नियमों का पालन करें तो हम यदि रोगी हैं तो कुछ समय में निरोग हो सकते हैं और यदि स्वस्थ हों तो और भी अधिक स्वस्थ तथा सशक्त हो सकते हैं-

(1) नाश्ता करना एक दम छोड़ दें। यदि करे ही तो केवल फलों और दही दूध का ही।

(2) भोजन केवल दो बार करे-9 तथा दोपहर 12 बजे के बीच में तथा 5 और 8 रात के बीच में। बीच में कुछ न खाएं। हाँ 2 और 4 के बीच में फल खा सकता है और सोने के समय एक दो घंटे पहले दूध ले सकता है। नौकरी−पेशा, व्यापारी तथा मजदूर आदि मनुष्य पूरा भोजन रात को ही करें। दोपहर का भोजन तो बहुत हल्का होना चाहिए। क्योंकि खाने के बाद काम करना पड़ेगा तो पाचन की इन्द्रियाँ अपना काम ठीक से न कर सकेंगी।

(3) भोजन आधा पेट करें। एक चौथाई पानी तथा एक चौथाई हवा के लिए छोड़ दें।

(4) प्रत्येक भोजन के साथ हरी तरकारी, कच्चे शाक तथा फल का आवश्यक प्रयोग हो। यथा शक्ति पर्याप्त मात्रा में।

(5) बहुत परिश्रम के बाद, थके होने पर, क्रोध, शोक या चिंता आदि मानसिक उद्वेग होने के समय भोजन स्थगित कर दें।

(6) भोजन के बाद आधा घंटे नहीं तो 15 मिनट तो अवश्य ही विश्राम करें। पहले बाँयी करवट फिर दाँयी करवट फिर बाँयी करवट बैठें।

(7) आदर्श तो यह है कि एक समय में एक ही प्रकार की वस्तु खाएं। नहीं तो कम से कम तीन प्रकार से अधिक पदार्थ कभी न खायें अन्यथा उनके मेल से पाचन यंत्रों में कुछ ऐसे रासायनिक परिवर्तन होते हैं, जिनसे भोजन ठीक से नहीं पचते। रोटी-तरकारी एक प्रकार का भोजन समझा जाय।

(8) तले व्यंजन, मिर्च-मसाले मिले पदार्थ (पकवान आदि) चाय, काफी, नशीली वस्तुएँ न खायें।

(9) भोजन शाँत चित्त तथा प्रफुल्लित होकर करें।

(10) पानी या दूध गट-गट करके न पियें। कहा गया है पानी दूध आदि खायें तथा भोजन को पिये। इसका अर्थ है पेय पदार्थ घूँट-घूँट लेकर पियें, जिससे खूब लार उसमें मिल जाय। ठोस पदार्थों को इतना चबाये कि वह पानी सा हो जाय और तब उनको पी जायं। हमें याद रखना चाहिये कि पेट के दाँत नहीं होते अतः यदि बिना कुचले और चबाये ही भोजन पेट में पहुँच गया है तो बिना ठीक से पचे और बिना भोजन से समुचित रस बने ही, वह बहुत कुछ वैसे ही गुदा मार्ग से निकल जायगा। खूब चबाना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि भोजन में (अन्न, फल, तरकारी आदि में) प्राणतत्व के सूक्ष्म कण होते हैं। बहुत चबाने से वह अलग-अलग हो जाते हैं। भोजन के समय यह भावना करें कि भोजन के पोषक तत्व मेरे पेट के अंदर जा रहे हैं, जिनके द्वारा शुद्ध और समुचित रस, माँस मज्जा, वीर्य बन रहा है। इसके अतिरिक्त स्टार्च केवल लार द्वारा ही चबाते समय शर्करा के रूप में परिवर्तन होता है, पेट में कोई रस इसे शर्करा के रूप नहीं बदल सकता और शर्करा की आवश्यकता रुधिर की शुद्धि के लिए अत्यधिक है। दाँत, जीभ और मुँह का उपयोग करें।

(11) भोजन न बहुत गर्म हो न ठंडा। बासी, बदबूदार, खुला हुआ भी न हो। तामसिक भोजन वर्जित है। सात्विक भोजन करें। जैसा भोजन होगा वैसी ही बुद्धि बनेगी।

(12) माँस अंडा, गोश्त आदि भोजन वर्जित है क्योंकि इनमें लाभ कम और हानि अधिक होती है। जो लाभ इनसे होते हैं वह, और उससे भी अधिक हम दूध और फल-शाक द्वारा पहुँचा सकते हैं। माँस खाने वाले जानवर के मरे हुए कोषाणुओं (Cells) तथा उसके उपस्थित रोगों को भी उदरस्थ करते हैं।

(13) पानी भोजन के साथ न पियें। कम से कम भोजन के एक घंटे बाद पियें। (14) सोने के 3 घंटे पहले ही भोजन कर लें। (15) भोजन नियमित समय पर तथा परिमित करें। (16) सोकर उठने के पूर्व रात का ताँबे के बर्तन में रखा पानी पियें तथा सोने के पहले एक गिलास पानी पियें।

इस लेख में स्टार्च, प्रोटीन, फैट आदि का नाम बार-बार आया है अतः बहुत संक्षेप में इस पर प्रकाश डालना आवश्यक होगा ताकि पाठक इस लेख को भली भाँति समझ सकें।

(1) कोषाणुओं की उत्पत्ति, वृद्धि, रक्षा तथा मरम्मत आदि के लिए प्रोटीन भोजनों की आवश्यकता होती है। इसके दो प्रकार हैं। एक तो पशु प्रोटीन जैसे दूध, गोश्त, मछली, अंडा और दूसरे वनस्पति प्रोटीन जैसी नारियल, द्विदल अनाज (चना, दालें, लोबिया, मटर आदि)

(2) उन कोषाणुओं की रक्षा के लिए जो अपने कार्य में लगी रहती हैं तथा शरीर में गर्मी पहुँचाने वाले पदार्थ “फैट” के अंतर्गत हैं। इसके भी दो भेद होते हैं। पहला पशु-फैट जैसे गोश्त, मक्खन, मलाई, घी आदि तथा दूसरा वनस्पति-फैट जैसे- जैतून, बादाम, गिरी आदि के तेल, नारियल आदि।

(3) शरीर में ईंधन का काम करने वाले पदार्थ स्टार्च और शर्करा भोजन (कारबोहाइड्रेट) कहलाते हैं। इनके भी दो भेद हैं। पहला-शर्करा-शहद, मावा, सूखे फल, चुकंदर, गुड़, चीनी, खाँड़ आदि दूसरा-स्टार्च। एक तो अनाज में मिलने वाला स्टार्च जैसे- गेहूं, जौ, मक्का, चावल आदि तथा दूसरा वनस्पति से पाया जाने वाला जैसे- आलू, घुइयाँ केला आदि।

(4) खनिज लवणों का काम रुधिर को शुद्ध करना आदि है। ताजे फलों और हरे शाकों में वह बहुत पाये जाते हैं। ये कैल्शियम, फास्फोरस क्लोरीन, पोटेशियम, सोडियम, मैग्नीशियम, आयोडीन आदि हैं। जिनका कार्य भिन्न-भिन्न है तथा जो भिन्न-भिन्न मात्राओं में भिन्न-भिन्न पदार्थों में मिलते हैं। फलों को हम दो भागों में बाँट सकते हैं-(1) अम्लीय (Acid) फल जैसे- टमाटर नींबू, नारंगी आदि तथा (2) क्षारमय (Alkaline) फल जैसे- अंगूर, सेब, सब प्रकार के सूखे फल आदि। इसके अतिरिक्त सब प्रकार की तरकारियाँ भी क्षार होती हैं।

(5) जल भी भोजन का ही एक अंग है और इसका महत्व सर्व विदित है।


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