सर्दी से डरिये नहीं, वह हमारा मित्र है।

January 1949

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प्रकृति के सभी मौसम अपने-अपने स्थान पर महत्व रखते हैं किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि सर्दी या ठण्ड जीवधारियों के लिए विशेष आवश्यक है। बाह्य दृष्टि से देखें तो लोग ठण्ड के खिलाफ दिखाई देते हैं किन्तु यह केवल वहम ही है। वे सर्दी को प्राणघातक समझकर उससे बचने का यत्न करते हैं, चारों ओर से बन्द अंधेरे कमरों में रहते हैं, हाथ, मुँह, कान इत्यादि खूब ढ़क लेते हैं, पाँवों में मोजे और मोटे जूते डाल लेते हैं, घूमने से डरते हैं, समझते हैं कि सर्दी लगी कि सरदर्द, निमोनिया, खाँसी, जुकाम हो जायगा। सर्दी के लिए ऐसी भ्रमात्मक धारणाएँ बेबुनियाद हैं। उन्हें मनोजगत से निकाल देना चाहिए।

प्रकृति चाहती है कि मानव शरीर सर्दी, गर्मी, बरसात का पानी-सभी को सहने का आदी बने। ठण्डी हवा से मनुष्य का शरीर तरोताजा बनता है। जाड़ों की प्रातःकालीन मंद समीर मानव शरीर के लिए संजीवनी बूटी सदृश है। शरीर को उससे दूर रखना मानों उसे निर्जीव बनाना है। जाड़ों की इस हवा से शरीर का रंग निखर आता है। कमजोर फेफड़े सबल हो उठते हैं। काम में जी लगता है। गर्मी में मनुष्य को जो आलस्य की, केंचुल घेरे रहती है, वह उतर जाती है। वह इस सर्दी के प्रताप से दुगुना तिगुना काम अच्छी तरह कर सकता है। बड़े-बड़े लेखक तथा ग्रन्थकारों ने जाड़ों के प्रभाव में अपनी अनमोल कृतियों की रचना में कल्पनाएँ अधिक आती है। सूर्य एक विचित्र आभा से भर जाता है, मन में नव प्रेरणा जागृत होती है और प्रकृति हमें लिखने के लिए दावत देती है।

स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्दी सबसे उत्तम मौसम है। जाड़ों में व्यायाम करने में जितना आनन्द आता है, उतना शायद कभी नहीं आता थकान जल्दी नहीं होती। सर्दी से शरीर की रग-रग में मजबूत होती है, बल और जीवन मिलता है, जठराग्नि प्रबल होती है और पुराने रोग तक थोड़ी सी देखभाल से आसानी से चले जाते हैं। ठण्ड के दिनों में मनुष्य की पाचन शक्तियाँ बढ़ जाती है। वह खूब कसरत कर अच्छी तरह भोजन पचा सकता है। गर्मियों में जो घृणित बीमारियाँ हो जाती हैं-हैजा, बदहजमी, जी मचलाना, सिरदर्द, पेट में भारीपन-इस मौसम में बिल्कुल नहीं देखे जाते। अक्सर लोग ताकत की दवाइयों से शक्तिवर्द्धन करने का प्रयत्न करते देखे जाते हैं। यदि सर्दियों में घी, मक्खन, दूध, सब्जियाँ अच्छी मात्रा में ले और कसरत करें तो खूब मजबूत और बलशाली बन सकते हैं। स्वास्थ्य शक्ति तो प्रकृति में यत्र तत्र बिखरी पड़ी है। सर्दियों में उसका वर्षभर के लिए संचय किया जा सकता है।

सर्दियों में मनुष्य बुरी तरह अपने आपको कपड़ों से लाद लेते हैं। शरीर को पर्याप्त हवा नहीं लगने देते, यह सर्वथा अनुचित है। शरीर को पूरी तरह खुला हुआ रखा जाय और शरीर को सर्दी बरदाश्त करने की आदत डाली जाय। प्रकृति के विरुद्ध अहार-विहार से अनेक घृणित रोग उत्पन्न होते हैं। सर्दी की धूप का रासायनिक महत्व है। उसमें अनेक विटामिन प्रस्तुत हैं। धूप-स्नान बच्चे, वृद्ध और युवकों के लिए समान रूप से उपयोगी है। अतः प्रातः काल की असहाय सर्दी को छोड़कर शेष समय में हमें चाहिए कि भारी जूते और मोटे कपड़े फेंककर पतले और हल्के वस्त्र पहनें। ईश्वर करे सर्दी का भय लोगों के हृदय में से निकल जाये और वे उसकी महत्ता को समझें।


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