कुदरती इलाज क्या चीज है?

January 1949

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प्राकृतिक चिकित्सा तथा अन्य चिकित्सा पद्धतियों में यथेष्ट अन्तर है। साधारण चिकित्सक रोगी को दवाई देकर ठीक करने का प्रयत्न करता है, अनेक दवाइयों, इंजेक्शन इत्यादि का प्रयोग कराता है, और बाह्य उपचारों का आश्रय लेता है। रोग के कारण रोगी में जो बाह्य लक्षण दिखाई देते हैं, उन्हें दूर करता है और उन लक्षणों के विलुप्त होने पर डॉक्टर का कार्य समाप्त हो जाता है। डॉक्टर रोगी के संबंध में कोई दिलचस्पी नहीं लेता। इसे चिकित्सा से कुछ दिन के लिए रोग दब जाता है, नष्ट नहीं होता। जिन कारणों से रोग उत्पन्न हुआ था, वे चिकित्सा के उपरान्त भी मौजूद रहते हैं और समय पाकर पुनः उभर आते हैं। स्थायी लाभ नहीं हो पाता।

जीवन की एक पद्धति -

कुदरती इलाज में ऐसी बात नहीं है। यहाँ केमिस्ट की बड़ी दुकान की भाँति इंजेक्शन और रंग-बिरंगी दवाइयाँ नहीं होती, चूरन चटनी, जड़ी बूटी इत्यादि रोगी को नहीं दी जाती। प्राकृतिक चिकित्सक के पास साधारण चीजें होती हैं, वह इन्हीं के प्रयोग से रोग दूर करता है। किन्तु इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वह अपने रोगी को जीवन व्यतीत करने का एक ऐसा सरल, स्वाभाविक, शास्त्रीय मार्ग सिखाता है, जिससे वह घर में या प्रकृति के साहचर्य में रहकर ऐसा जीवन दिलाता है कि भविष्य में कभी बीमार ही नहीं पड़ता। स्वास्थ्य के नियमों का पालन कराने में वह अधिक दिलचस्पी लेता है। जहाँ साधारणतः डॉक्टर लोग अपने कर्त्तव्य की इतिश्री समझते हैं वहाँ कुदरती इलाज के डॉक्टर की दिलचस्पी प्रारंभ होती है।

एक बार प्राकृतिक चिकित्सक के द्वारा चंगा होने पर रोगी के जीवन का नया पृष्ठ खुलता है। वह उस पद्धति को ग्रहण करता है जिसमें रोग और व्याधि के लिए कोई स्थान नहीं। जहाँ जीवन अपने सधे सधाये मार्ग पर बँधा चला जाता है। उसे कृत्रिम और दिखावटी बातों की परवाह नहीं रहतीं। प्राकृतिक चिकित्सा मानव जीवन की सही दिशा संकेत करती है। यह वह शिक्षण पद्धति है जो हमें दीर्घ और आनन्दमय जीवन का वास्तविक रहस्य समझाती है। “कुदरती इलाज जीवन की एक पद्धति है, रोग मिटाने के इलाजों का तरीका ही नहीं।”

कुदरती इलाज के मूल तत्व-पंच महाभूत

शरीर का निर्माण पृथ्वी, जल, आकाश, तेज और वायु नाम के पाँच तत्वों से हुआ है, जो पंचमहाभूत कहलाते हैं। इनमें सबसे आवश्यक तत्व वायु है। उसके बिना एक क्षण अस्तित्व नहीं। वायु जीवन है। तेज तत्व शरीर को शक्ति पहुँचाता है, जल से रक्त संचालन का कार्य ठीक प्रकार चलता है।

वायु का उपयोग -

प्राकृतिक जीवन के अनुयायी को हवा का अधिक से अधिक सेवन करना चाहिए। वैसे हवा तो सभी लेते हैं, किन्तु ईश्वर का प्रसाद तो स्वच्छ ताजी वायु में प्रकट होता है। घर की चहारदीवारों या गन्दी नालियों और कूड़े करकट से भरे मुहल्लों, बाजारों या कारखानों में स्वच्छ हवा मिलना कठिन है। अतः हमें चाहिए कि प्रातःकाल किसी उद्यान, जंगल या शहर से दूर टहलने जायं, और ताजी हवा से फेफड़ों को खूब भर लें। प्रातः साँय स्वच्छ हवा में दीर्घ श्वासोच्छ्वास की कसरतें करने से फेफड़े सशक्त बनते हैं। अधिक वायु लेने से रक्त साफ होता है, त्वचा का रंग निखर आता है, मुँह पर जीवन प्रकट हो जाता है। आपके मकान, खिड़कियों और रोशनदानों से युक्त हों। सोते समय कमरे में यथेष्ट वायु आये। बिस्तर पर पड़ कर आप कपड़ों से मुँह न ढ़क लें। दूसरी बुरी आदत मुँह से श्वास लेने की है। नथुनों की राह श्वास लेने से वायु को स्वच्छ होने का अवसर मिलता है और उसे जितना गर्म या ठंडा होना चाहिए वह वैसी हो जाती है।

वायु के संपर्क में अधिक से अधिक रहने की आदत डालिये। अपना अधिक समय उद्यान, सरिता तट, खुले स्थानों, सैर सपाटे, जंगलों, प्रकृति के अंचल में रह कर व्यतीत कीजिए। वायु का जितना अधिक उपयोग कर सकें कीजिये। हवा लग जायगी और हम बीमार हो जायेंगे-यह निरा भ्रम ही है। शुद्ध, स्वच्छ और ताजी वायु तो प्राणदाता है। उसको अपने अन्दर कार्य करने दीजिए।

पृथ्वी की आश्चर्यजनक शक्ति -

प्रकृति की इच्छानुसार मनुष्य को पृथ्वी के साथ निकट सम्बन्ध रखना चाहिए। कमरे के फर्श, पत्थरों या हरी घास पर नंगे पाँवों चलने से शक्ति प्राप्त होती है। जमीन पर सोने से जो सुख शान्ति मिलती है, वृक्षों तथा घर की शय्या पर वैसी दुर्लभ है। रात्रि में पृथ्वी पर सोने से निद्रा और शरीर में शान्ति होने के कारण पृथ्वी का बलदायक प्रभाव सूर्य स्नान या नंगे बदन सोने की अपेक्षा अधिक चमत्कारिक होता है।

दैनिक जीवन में पृथ्वी के साथ आप निकट सम्बन्ध निम्न रीतियों से कर सकते हैं। (1) नंगे पाँव चलकर पृथ्वी तल से सीधा स्पर्श होता है। जर्मनी में तो इस प्रकार का एक आन्दोलन तक प्रारंभ किया गया था कि नंगा (Nudity) रहना स्वाभाविक और आरोग्यप्रद है। नंगे पाँवों चलने वाला पाँवों को दृढ़ करता है और पृथ्वी से प्राण शक्ति खींचता है। नंगे पाँवों चलने से रुधिरा भिसरण बराबर होकर पैरों का आकार सुन्दर और सुदृढ़ होता है। (2)कई रोगों में पृथ्वी पर सोने से चमत्कारपूर्ण लाभ होता है। सोने के लिए ऐसी भूमि पसन्द करनी चाहिए, जहाँ घास कम उगी हुई हो। स्वाभाविक जीवन प्रारंभ करने वालों को कुछ दिन हवादार पर्णकुटी में सोना चाहिए। आनन्दी और फुर्तीला रहने के लिए यथासंभव प्रकृति का अनुसरण करना चाहिए। प्रकृति के पशु कम किन्तु गहरी निद्रा लेते हैं। हमें भी यथ-शक्य आराम के लिए, नवजीवन संचार के लिए विश्राम करना चाहिए। थोड़ी और आवश्यक नींद लेने से दृढ़ता, दीर्घायु एवं नवजीवन आता है, अधिक से आलस्य बढ़ता है, आयु और समय का नाश होता है। कृत्रिम शिथिलता अधिक निद्रा का परिणाम है। पृथ्वी का कोई जानवर मादक द्रव्यों का सेवन नहीं करता। मनुष्य ही इन मादक पदार्थों का विष सेवन करता है। और प्रकृति के द्वारा सजा पाता है। पृथ्वी पर अधिक से अधिक बैठिये, सोइये, चलिये, विश्राम कीजिये। पृथ्वी की आर्द्रता या सर्दी से न डर कर घूमने फिरने या यात्रा के समय जमीन पर बैठकर या सोकर आराम करने का अभ्यास करना चाहिये। उत्तेजित मस्तिष्क वाले, हिस्टीरिया आदि वातग्रस्त मनुष्यों को शान्तिपूर्वक पृथ्वी पर बैठने और सोने से बहुत आराम मिलता है।

रात्रि के समय प्रकृति में एक नया जीवन प्रवाह निकला करता है। उस समय जंगल में घूमने से बड़ा लाभ पहुँचता है। रात्रि के समय पृथ्वी की शक्ति अति प्रबल हो जाती है।

आकाश तत्व -

कई वैज्ञानिकों ने जमीन पर स्वच्छ बालू को 5 इंच स्तर के रूप में बिछाकर उसे बिस्तर के रूप में प्रयोग किया। उन्हें अत्यन्त लाभ हुआ। ऐसे बिछौने पर खुले आकाश के नीचे सोना श्रेयस्कर है क्योंकि आकाश में अद्भुत जीवन है। आकाश तत्व को ग्रहण करने के लिए खुले मैदान में अधिक से अधिक समय व्यतीत करना चाहिए। पृथ्वी की शक्ति के साथ उसका भी संयोग हो जाने से नवजीवन प्राप्त होता है।

जल तत्व -

ईश्वर प्रदत्त सर्वोत्तम पेय पदार्थ स्वच्छ निर्मल, शीतल (बिना स्वाद का)जल है। अंग्रेजी में इसे god's water अर्थात् ईश्वर का जल कहते हैं। उसी को पीकर प्रकृति के सब प्राणी जीवन धारण करते हैं। हमें बनावटी द्रव्यों का पान छोड़ देना चाहियें। चाय, शराब, इत्यादि का प्रयोग तो साक्षात विष खाना है।

प्राणियों का जीवन धारण जल पर भी निर्भर है। वायु के पश्चात् यही प्रमुख तत्व है। जल प्राणियों का प्राण है। सम्पूर्ण संसार ही जलमय है। जल सर्व प्रधान औषधि है। इसके सेवन से जीवन सुन्दर बनता है और शरीर के लिए एक सर्वांग पूर्ण शक्ति है। यह रक्त, स्नायु, मांसपेशी तथा प्रत्येक कोष को सतेज और सशक्त करता है। शरीर की समस्त प्रणाली जैसे-भोजन, श्वास, रक्त संचालन के लिए अनिवार्य है। यह मन को शाँति, स्फूर्ति और प्रफुल्लता प्रदान करता है।

प्रकृति से दोस्ती -

शुद्ध वायु कुछ देर मिले, इससे स्थायी लाभ की आशा नहीं करनी चाहिए। शहरों में रहकर प्रातः साँय आप शरीर शोधन कार्य ही कर सकेंगे। इससे उत्तम तो यह है कि ग्रामों में निवास किया जाय। प्राकृतिक चिकित्सा का उचित स्थान ग्राम ही है। वहाँ कि स्थिति में प्राकृतिक जीवन को खूब अपनाया जा सकता है। ग्राम में शुद्ध वायु पाकर सदा स्वस्थ और शान्तिपूर्वक रहा जा सकता है। जो वातावरण प्राकृतिक चिकित्सक कठिनता से शहर में उपलब्ध कर सकता है, वह स्वस्थ वातावरण ग्राम में आसानी से हो जाता है।

हमें पुनः ग्रामों की और जाना होगा। आधुनिक जीवन की कृत्रिम किन्तु विषैली वस्तुओं अप्राकृतिक चीजों, आदतों, आहार-विहारों को छोड़ना होगा। सिनेमा, थियेटर, देर तक रात भर नाच रंग में मस्त रहना, मादक द्रव्यों, पान सिगरेट, बीड़ी, चाय, कहवा, शराब, कबाब, गोश्त ऐश के जीवन को सदा के लिए छोड़ देना होगा। सब प्रकार की मानसिक उत्तेजनाओं- काम क्रोध, भय, घृणा, कुढ़न से अपने मानसिक संतुलन की रक्षा करनी होगी। ग्रामीण जीवन में प्राप्त होने वाली शाँति, निश्चिंतता, प्रकृति का सामीप्य-वे देवी वस्तुएँ हैं जो हमें वास्तविक आनन्द प्रदान कर सकती हैं। ग्राम में श्रम करते हुए लज्जा न आयेगी और थककर विश्राम करने में जो आनन्द आवेगा, उसका वर्णन कौन कभी कर सकता है? सुविधानुमा हमें अपने शरीर को धूप, हवा, जल, मिटी के संपर्क में रखना पड़ेगा, फल, दूध, तरकारियाँ, छाछ, मक्खन, हमारा भोजन होंगे, हृदय में हमारे शान्ति और मन में उत्साह होगा। यह प्राकृतिक जीवन है जिसकी और हम बढ़ना चाहते हैं।


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