(पं. हरिप्रसाद ओझा-”प्रेम”)
ब्रह्म मुहूरत शयन तजि, करिये प्रभु कौ ध्यान।
सुखद स्वास्थ्य में होयगी, इससे वृद्धि महान॥ 1॥
जल पीकर के शौच जा, टहल मील दो तीन।
निश्चय होंगी आपकी, कई व्याध्याँ छीन॥ 2॥
डाली कीकर नीम की, या पीलू की मूल।
सुदृढ़ स्वच्छ सब दाँत हो, रहै न रंजौं शूल॥ 3॥
निर्मल ताजी नीर सों, करि घर्षण असनान।
संध्या प्राणायाम करि, करिए गीता गान॥ 4॥
करिए सेवन धूप का प्रातः खुले शरीर।
वेधत हैं क्रमि रोग को, रवि किरणों के तीर॥ 5॥
भक्ष्याऽभक्ष्य पदार्थ को, करि पुनि पूर्ण विचार॥
कम खाओ चाबो अधिक, होय न उदर विकार॥ 6॥
तदपि उदर विकार का-पाओ कछु आभास।
उष्णोदक सेवन करो, अष्ट प्रहर उपवास॥ 7॥
प्राकृत वेगों की कवहुँ, गति मति रोको भूल।
वृद्धि पायेंगी देह में, विविधि रोग की मूल॥ 8॥
सुखद स्वास्थ्य के वास्ते, हँसिवो है अनिवार्य।
शुद्धि, वृद्धि हो रक्त की, अरु संचालन कार्य॥ 9॥
थक जाओ, जब तुम कभी, करते-करते काम।
लो अवश्य ही उस समय, यथा योग्य आराम॥10॥
नित्य सात घण्टे शयन, कीजै आप अवश्य।
न्यूनाधिक सोना बुरा, लाता है आलस्य॥ 11॥
*समाप्त*