प्रकृति की अमूल्य देन सूर्य-किरणें

January 1949

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डॉ. लेविस ने लिखा है कि धूप और पाचन की क्रियाओं में बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है। यदि मनुष्य या अन्य किसी प्राणी पर प्रतिदिन सूर्य किरणें नहीं पड़तीं, तो उसकी पाचन और समीकरण शक्ति क्षीण हो जाती है। स्फुरण (Solar Radiation) तथा मानव जीवन इन दोनों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। जीवन का सम्बन्ध प्रकाश-शक्ति तथा उसके वर्ण-वैभव से है, न कि प्रोटीन, श्वेत सार, हाइड्रोजन, कार्बन अथवा उष्णाँक से।

आकाश और वायु- तत्व की भाँति प्रकाश-तत्व भी अत्यन्त सूक्ष्म है। प्रकृति के हरे भरे प्रशस्त अंचल में हम जो नाना रंगों की चित्रपटी देखते हैं-यह सब सूर्य की सतरंगी किरणों की ही माया है। प्रकाश में अन्तर्निहित रंगीनी केवल नेत्रों को ही सुन्दर प्रतीत नहीं होती प्रत्युत जीवन रंजक भी है। सूर्य की किरणों का प्राणी जगत पर स्थायी प्रभाव पड़ा करता है। सूर्य किरण चिकित्सा का यही मूलाधार है। रंगीन बोतलों में पानी रखने से प्रकाश का प्रभाव भी बदलता रहता है और उसमें भाँति-2 के गुण उत्पन्न हो जाते हैं।

सूर्य की किरणों के रंग -

चर्म चक्षुओं से सूर्य की किरणें श्वेत प्रतीत होती हैं किन्तु वास्तव में ये सात रंगों की बनी हुई हैं। इन सातों रंगों का रासायनिक प्रभाव पृथक-2 होता है। विभिन्न फलों तथा तरकारियों को प्रकाश तथा रंग नाना प्रकार के गुण प्रदान करता है। इन रासायनिक गुणों के अनुसार हम पृथक भाजियों का प्रयोग करते हैं। प्रकृति की तीन रचना में सबका कुछ न कुछ गुप्त प्रयोजन है। वनस्पति जगत में प्रकाश तत्व के कारण ही नाना प्रकार के गुण, रंग, एवं रासायनिक तत्व सामने आते हैं।

रंगीन फल तथा तरकारियों का प्रभाव -

रंगों के आधार पर हम फल तथा तरकारियों को निम्न वर्गों में विभाजित कर सकते हैं-

1. पीला रंग- इस रंग वाले फलों का प्रभाव पाचन क्रिया पर बड़ा अच्छा पड़ता है, आमाशय और कोष्ठ के स्नायुओं को उत्तेजित करने में इसका विशेष महत्व है। ये फल रेचक व पाचक होते हैं। पेट की खराबियों में ये खासतौर पर काम में लाये जाते हैं। इनमें कागजी नींबू, चकोतरा, मकोय, अनानास, खरबूजा, पपीता, बथुआ, अमरूद। इनमें कार्बन, नाइट्रोजन या खनिज लवण प्रचुर मात्रा में होता है।

2. लाल रंग- इस रंग वाले फलों में लोहा और पोटेशियम की मात्रा अधिक होती है। नाइट्रोजन और ऑक्सीजन की भी पर्याप्त मात्रा होती है। इस वर्ग में चुकन्दर, लालबेर, टमाटर, पालक, लालशाक, मूली इत्यादि रखें गये हैं।

3. नारंगी रंग- इन फल तथा तरकारियों में चूना और लोहा विशेष रूप से पाया जाता है। इस श्रेणी में नारंगी, आम, गाजर इत्यादि हैं।

4. नीला रंग- इस रंग की श्रेणी में हम गहरा नीला और बैंगनी भी रखते हैं। इन तरकारियों में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, मैग्नीशियम तथा फास्फोरस अधिक होता है। इस श्रेणी में जामुन फालसा, आलू बुखारा, बेल, सेब विशेष रूप से आते हैं।

5. हरे रंग की तरकारियाँ शीतल प्रकृति की होती हैं, गुर्दों को हितकारी, पेट को साफ करने वाली और नेत्र तथा चर्म रोगों में लाभदायक सिद्ध होती है।

मनुष्य के शारीरिक अथवा मानसिक विकास में सूर्य किरणों द्वारा उत्पन्न उपरोक्त सभी रंगों के फल, शाक, भाजियों का संतुलन आवश्यक है। यदि एक ही प्रकार के रंग का भोजन अधिक दिन तक लेते रहे तो वह रंग शरीर में अधिक हो जायेगा और रोग उत्पन्न हो सकता है। अतः यथासंभव सभी रंगों का भोजन काम में लेना चाहिए। व्यक्तिगत रंग-संतुलन स्थापित कर हम सामंजस्य स्थापित कर सकते हैं।

दैनिक जीवन में सूर्य किरणों का उपयोग -

मनुष्य के लिए सूर्य का प्रकाश सर्वश्रेष्ठ एवं अकथनीय गुणकारी है। हमारी आत्मा पर इसका प्रभाव इतना विकासपूर्ण होता है कि प्रायः हम अनुभव किया करते हैं कि अंधेरे में जैसे दम घुट रहा हो। उजाले में रहने से आँतरिक द्वेष दूर होते और हृदय की खिन्नता मिटकर चित्त प्रसन्न होता है। प्रकाश उत्साह, साहस और उत्सुकता का द्योतक है।

सूर्य स्नान- सूर्य में कीटाणुनाशक शक्तियाँ हैं अतः अधिक से अधिक धूप में रहने का अभ्यास करना चाहिए। सूर्य की प्राण पोषक शक्तियों को ग्रहण करने के लिए अमेरिका और इंग्लैण्ड में सूर्य स्नान का रिवाज है। समुद्र तट पर जब लोग सूर्य स्नान के लिए जाते हैं तो केवल जाँघिया के, अन्य पोशाक बिल्कुल उतार देते हैं, सूर्य की तेज किरणों में रेत पर लेट जाते हैं। सूर्य स्नान के एक दृश्य का वर्णन श्रीयुत मन्नारायण अग्रवाल ने इस प्रकार किया है।

“थोड़ा आराम करके हम लोगों ने समुद्र में स्नान करने का विचार किया। अपने-अपने नहाने के कपड़े लेकर पैदल चल दिये। धूप काफी तेज थी और दूर से समुद्र का पानी चमक रहा था। यद्यपि हमारा स्थान ईस्टवोर्न से दूर था, तो भी वहाँ समुद्र स्नान के प्रेमियों की भीड़ थी। सागर की लहरें किनारे के कंकड़ों पर जोर-2 से गिर रही थीं। कुछ दूर पर छोटे-2 जहाज इधर-उधर जा रहे थे। किनारे पर बहुत से स्त्री पुरुष अपनी नहाने की पोशाक पहने सूर्य स्नान कर रहे थे। कोई छाती के बल लेटा था, कोई पीठ के बल। स्त्रियाँ अपने पतले छातों के नीचे पड़ी थीं। पहले पहले यह दृश्य बहुत विचित्र लगा। स्त्री पुरुष जिनकी देह का अधिकाँश भाग खुला था, बिल्कुल पास लेटे थे। लन्दन में तो बिना मोजे पहने निकलना पाप समझा जाता है। घरों में भी ड्रेसिंग गाउन पहनना बहुत जरूरी समझा जाता है लेकिन वे सब बातें धूप-स्नान करते हुए समुद्र के किनारे लागू नहीं। वहाँ तो शरीर का जितना अधिक भाग खुला रहे, उतना ही अच्छा है।”

अनिद्रा में उपयोग -

अनिद्रा में एनीमिया अर्थात् रक्त की कमी में सूर्य का प्रकाश अमृत-तुल्य है। अनिद्रा क्षय तक उत्पन्न कर सकती है। सूर्य-प्रकाश लेने से रुधिर की प्राणपोषक वायु बढ़ जाती है, गति में भी तीव्रता आ जाती है। प्रकाश में श्वास क्रिया गहरी और धीमी हो जाती है। इसके फलस्वरूप रात्रि में अच्छी नींद आती है।

रक्त की कमी (एनीमिया) में रोगी सरदर्द से बड़ा परेशान रहता है। ऐसी दशा में सूर्य किरणें देने से लाभ होता है।

रक्तचाप- सूर्य किरणों का बढ़े हुए रक्त चाप में उपयोग करने से रक्तचाप में कमी आ जाती है। सर्व साधारण के लिए भी यह उपयुक्त है कि वह 10-15 मिनट के लिए अवश्य धूप में बैठे। सूर्य किरण के सेवन से वजन बढ़ जाता है। रक्तचाप की सभी अवस्थाओं में किसी योग्य चिकित्सक के आदेशानुसार ही सूर्य-प्रकाश का सेवन करना चाहिए।

घाव-घावों को चंगा करने में सूर्य का प्रकाश बड़ा आश्चर्यजनक सिद्ध हुआ है क्योंकि रक्त में गति आ जाती है। सूर्य की किरणों से दूषित कीटाणु नष्ट होते हैं। सूर्य किरण शरीर को पार कर जाती हैं और रुधिर में जीवाणुओं की अभिवृद्धि करती हैं। इससे सब प्रकार की कमियाँ नष्ट होकर घाव अच्छा हो जाता है। रोगी को थोड़ी देर तक रोज सर्वांग सूर्य-स्नान लेना चाहिए।

क्षय में सूर्य का चमत्कार- क्षय रोग में सूर्य किरणों से अत्यधिक लाभ होता है। रुधिर में प्राण शक्ति का आविर्भाव होता है। क्षय के रोगी को धूप में 10 से 20 मिनट तक बैठना चाहिये। शरीर पर जितने कम कपड़े रहें उतना अच्छा है। शरीर नंगा रहे तो सर्वोत्तम है। आधुनिक चिकित्सक सूर्य किरण को क्षय के लिये महौषधि मानते हैं। क्षय में सूर्य किरण का उपयोग करते हुए किसी योग्य चिकित्सक का आदेश लेना चाहिये।

साधारण जीवन में-सूर्य-स्नान महान उपयोगी है, प्रकृति की अमूल्य तथा अनुपम देन है। छोटे-छोटे बच्चों का नित्य प्रति कुछ देर के लिए धूप में ही सेवन कराना चाहिये। शीतकाल में उन्हें धूप में ही खेलने देना चाहिये। गोद के शिशुओं को सूर्य किरणों में कुछ देर के लिए लिटाना चाहिए। रोगियों के लिये सूर्य प्रकाश महौषधि है।

सूर्य स्नान से शरीर के रक्त में लोहे की मात्रा 2 प्रतिशत बढ़ जायेगी। इसके लिए आप को लोह-प्रधान पदार्थ या लोह-तत्व बढ़ाने वाले भोजनों की आवश्यकता न पड़ेगी। धूप-स्नान से शरीर में इतना प्रभावोत्पादक गुण उत्पन्न होता है, जो कि औषधि-प्रणाली के लिए सर्वदा अज्ञात ही है, उसकी किसी भी दवा में इतना प्रभावोत्पादक गुण कभी नहीं पाया जाता। त्वचा के नीचे जो तत्व पहले से ही विद्यमान हैं, उसे सूर्य की किरणें तत्काल ही विटामिन डी. में परिणत कर देती हैं। शरीर में चूने की कमी के कारण होने वाले रोगों का इलाज बड़ा सहज हैं। वह है सूर्य-रश्मियों का उपयोग।

असंख्य रोगों की दवाई-दूध

भोजन सम्बन्धी विशेषज्ञों के अनुसार दूध आज तक की सबसे उत्तम वस्तु है। इसके सब प्रयोग-दूध, दही, मक्खन, मट्ठा, रबड़ी, खोया, मलाई-अच्छे हैं। सर्वोत्तम उपयोग इसे धारोष्ण अवस्था में लेना है। दूध से प्राप्त स्वास्थ्य स्थायी होता है। जिस रोगी ने दुग्धकल्प कर लिया है, तो समझ लीजिए उसे वह रोग कदापि न होगा। दुग्ध कल्प से जिन रोगों की चिकित्सा सफलतापूर्वक की जा चुकी है, उनमें से कुछ ये हैं-

स्नायु दौर्बल्य, सिर दर्द, आँतों का शैथिल्य, आमाशय के घाव, मूत्राशय अथवा गर्भ का स्थान च्युत हो जाना, पुराना कब्ज, रक्त का अभाव, अतिसार, आँव, संग्रहणी, श्वास नली के रोग, दमा, धमनियों की धड़कन, गठिया, नपुँसकता, यकृत की खराबी, पथरी, मधुमेह, आरम्भिक यक्ष्मा, दुबलापन, जलोदर, रक्तचाप। सूजाक तथा गर्मी का विष दूर करने के लिए दूध सर्वोत्तम है। स्नायुओं को सशक्त करने के लिए दूध ही मुख्य तत्व है। संग्रहणी में मट्ठा लाभ दायक है। मट्ठे की खटाई के कारण लैक्टिक एसिड वैसिली नामक कृमि नष्ट होकर निरोग हो जाती है।

छोटे बड़े बच्चे बूढ़े-सभी के लिए हर अवस्था में दूध से लाभ होता है। कुछ ही रोग ऐसे हैं, जिनमें दूध नहीं दिया जाता। बच्चों को दुग्ध कल्प से विशेष लाभ होता है। दूध मुनियों, महात्माओं का पवित्र सात्विक एवं पौष्टिक भोजन है। प्राकृतिक चिकित्सा के अंतर्गत इसका बहुत महत्व है। सभी रोगों में गाय का दूध, विशेषतः काली गाय का दूध गुणकारी माना गया है। तपेदिक के रोगों में बकरी का दूध देना चाहिए। यह हल्का है। भैंस का दूध पौष्टिक तो है किन्तु कुछ देर से पचता है और आलस्य उत्पन्न करता है। दूध के विषय में विस्तृत जानकारी के लिए हमारी लिखी हुई पुस्तक “दूध की चमत्कारी शक्ति” “अखण्ड-ज्योति” कार्यालय से मँगाकर पढ़िए।


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