यह कन्ट्रोल हटने चाहिए।

November 1947

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(पं. रामगोपाल देहलिया, मथुरा)

लड़ाई के जमाने में सरकार को लड़ाई के लिए विविध वस्तुओं की एक बड़ी मात्रा में आवश्यकता होती थी। उत्पादन के साधन लड़ाई के कार्यों में लगे हुए थे, इसलिए वस्तुओं की कमी पड़ जाती थी। कमी की वजह से होने वाले कष्टों से जनता को बचाने के उद्देश्य से विविध वस्तुओं पर कन्ट्रोल लगाया गया था।

लड़ाई के जमाने में कन्ट्रोल का कुछ कार्य हो सकता था, पर अब भी जब कि लड़ाई को समाप्त हुए दो वर्ष हो गये। कन्ट्रोलों का चालू रहना समझ में नहीं आता। कहा जाता है कि वस्तुओं की कमी है, इसलिए यह जारी रखा गया है। इस कमी को पूरा करने के लिए उत्पादन बढ़ाना एवं बाहर से वस्तुएं मंगानी चाहिए। कीमतों का कन्ट्रोल और अधिकार प्रदत्त दुकानदारों से ही वस्तुओं की प्राप्ति, यह दो तरीके ऐसे हैं जिससे जनता की कठिनाइयाँ बढ़ती है और चोरबाजारी तथा रिश्वतखोरी को फलने फूलने का अच्छा मौका मिलता है। जिसे वस्तु पर कन्ट्रोल होता है वह बाजार में से गायब हो जाती है और मनमाने दाम पर बिकती है।

अच्छा तरीका यह है कि वस्तुओं को स्वतंत्रता-पूर्वक बिकने दिया जाय। व्यापारियों की आपसी प्रतिस्पर्धा के द्वारा न तो वस्तुएं बाजार से गायब होने पावेंगी और न मूल्य अत्याधिक महंगा होने पावेगा। जनता को जरा-2 सी चीज के लिए समय की बर्बादी करने और परेशानी उठाने की आवश्यकता न पड़ेगी। आज तो मिट प्रथा ने व्यापारिक प्रतिस्पर्धा को मिटा कर चंद लोगों के हाथ में अधिकार दे दिये हैं, इसी से गड़बड़ी फैलती है।

यदि यह भय हो कि कन्ट्रोल उठने से पूँजी-पति वस्तुओं को जमा करके दबा लेंगे और अकाल पैदा कर देंगे तो उसका उपाय यह हो सकता है कि जीवनोपयोगी वस्तुओं का सट्टा करना और नियत मात्रा से अधिक जमा करना कठोर कानून बनाकर रोक दिया जाय। फिर भी जो कानून तोड़ें उन्हें पकड़वाने वालों को भारी इनाम दिये जायं। इनाम के लोभ से जनता ही उन्हें पकड़वा देगी।

आज के वितरण के तरीके भी ठीक नहीं जो गेहूँ और चीनी खाने के आदी नहीं है, उन्हें जबरदस्ती वह चीजें दी जाती हैं, फलस्वरूप एक ओर अनावश्यक वस्तुएं थोपी जाती हैं और दूसरी ओर कमी पड़ने से चोरबाजारी होती है। आवश्यकतानुसार इच्छित वस्तु खरीदने की सुविधा हो तो अकारण अव्यवस्था न हो।

कन्ट्रोल के कारण प्रायः हर व्यक्ति को चोरी करनी पड़ती है। पाँच छटाँक या छः छटाँक अन्न में किसी का गुजारा नहीं हो सकता। कहीं न कहीं से लेना ही पड़ता है। कपड़ा पोन गज का आदमी को मिलता है, वह-भी हर कोई खरीदता है। न तो कोई नंगा रहता है न भूखा। सब अपनी जरूरतों के लिए ब्लैक करते हैं। यही बात अन्य वस्तुओं के बारे में भी है।

ऐसी परिस्थितियों में जनसाधारण के चरित्र एवं नैतिकता का भारी पतन हो रहा है। यह पतन उसे मनुष्यता के निम्नस्तर की ओर अग्रसर कर रहा है। अधिकारी, व्यापारी और ग्राहक तीनों ही चोरी के आदी होते जाते हैं इस व्यापक अनैतिकता को पकड़ना और रोकना भी कठिन है। महात्मा गाँधी ने इस बढ़ती हुई अनैतिकता को ध्यान में रखकर कन्ट्रोलों को उठा देने की सलाह दी है। सरकार को चाहिए कि प्रजा के चरित्र में चोरी की आदत शामिल हो जाने के खतरे को ध्यान में रखकर उचित कदम उठावे और इन कन्ट्रोलों का अविलंब समाप्त कर दे।


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