अखण्ड ज्योति की दशाब्दी

November 1947

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संवत् 1964 वि. की दीपावली के दिन अखण्ड ज्योति की स्थापना हुई थी। उसी दिन से इन संगठन के द्वारा सद्ज्ञान प्रसार का कार्य एक व्यवस्थित योजना के अनुसार आरंभ किया गया था। अखण्ड ज्योति पत्रिका उसके कुछ समय बाद निकाली गई थी। पर कार्यारंभ पहले हो गया था। उस स्थापना को इस दीपावली पर पूरे दस वर्ष हो जायेंगे।

इस अवसर पर अखण्ड ज्योति अपने परिवार के समस्त सदस्यों का एक विशाल सम्मेलन बुलाने की आयोजन कर रही थी, ताकि अब तक के कार्यों की आलोचना, आगामी योजनाओं का निर्माण, वर्तमानकाल की सामाजिक समस्याओं पर विचार वर्तमान काल की सामयिक समस्याओं पर विचार विनिमय, सैद्धान्तिक मतभेदों का सुलझाव, एवं व्यक्तिगत प्रेम-परामर्श का सुअवसर मिले। पर आज तो स्थिति ही दूसरी है। पंजाब की सीमा से मथुरा जिले की सीमाएं लगी हुई हैं। पंजाब की प्रतिक्रिया यहाँ हुई। अनेक भयंकर काण्ड यहाँ हुए, फलस्वरूप यह जिला अशांति क्षेत्र घोषित हुआ। कर्फ्यू आर्डर एवं दफा 144 के प्रतिबंध लगे हुए हैं, रेल की यात्रा करने एवं कितने ही स्टेशनों पर गाड़ियां खड़े न होने पर प्रतिबन्ध है। करीब बीस हजार शरणार्थी इधर आ जाने के कारण वस्तुओं की एवं स्थान की कमी तथा महंगाई बढ़ गई हैं और भी अनेकों ऐसी कठिनाइयाँ हैं जिनके कारण आज वह सम्मेलन नहीं बुलाया जा सकता। उस कमी की आँशिक पूर्ति पाठकों से व्यक्तिगत पत्र व्यवहार द्वारा पूरी की जा रही है। ईश्वर ने अवसर दिया तो निकट भविष्य में फिर कभी ऐसा एक सम्मेलन बुलावेंगे।

अखण्ड ज्योति परिवार के सदस्यों ने हमारे प्रश्नों का उत्तर देते हुए अनेक समस्याओं के संबंध में बड़े मूल्यवान विचार भेजे हैं। यह बौद्धिक दृष्टि से एक अमूल्य संपत्ति है। इन विचारों का महत्वपूर्ण अंश निचोड़ कर हम पाठकों के सामने अपनी भाषा में उपस्थित करते रहेंगे। इस प्रकार हमारे परिवार के सदस्यों के विचार आपस में एक दूसरे के पास पहुँचेंगे और सम्मेलन का आँशिक लाभ मिल जायगा।

हमारी संस्कृति, जाति और मातृभूमि को आज एक संस्कृति काल में होकर गुजरना पड़ रहा है। जिसमें बड़ी सतर्कता, जागरुकता और विवेक शीलता की आवश्यकता है। थोड़ी सी भूल का भयंकर परिणाम हो सकता है। रेल की पटरी की दिशा परिवर्तन केंची को बदलने में यदि थोड़ी सी भूल हो जाय तो रेलगाड़ी थोड़ी ही देर में अपने निर्दिष्ट स्थान की अपेक्षा सैकड़ों मील इधर-उधर चली जायगी। प्रसूति काल में थोड़ी भी असावधानी हो तो जननी और शिशु का जीवन खतरे में पड़ सकता है। आज वैसी ही स्थिति है। आग लगने पर खाना-पीना छोड़ कर लोग पानी लेकर उसे बुझाने दौड़ते हैं। आज भी वैसा ही अवसर है कि साधारण जीवन क्रम की, साधारण बातों की अपेक्षा सामूहिक समस्याओं पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है, उसे सुलझाने की अधिक आवश्यकता है। अन्यथा सामूहिक विकृति उत्पन्न होने पर हमारा व्यक्तिगत व्यवस्था क्रम भी नष्ट भ्रष्ट हुए बिना न रहेगा। इस प्रकार पर हमने अखण्ड ज्योति के पाठकों का ध्यान उपरोक्त तथ्य की ओर भी आकर्षित किया है। पाठकों के विचार हमने पूछे हैं और उनसे सामाजिक कर्त्तव्यों का निश्चय करने में सहायता ली है और इस विचार विनिमय के पश्चात् जिस निष्कर्ष पर हम पहुँचे हैं उसे पाठकों के सामने रखा है। हम लोगों को विशेष तत्परता के साथ हिन्दुत्व को दृढ़ बनाने के लिए इस समय जुटना है, ताकि क्षितिज पर दिखाई पड़ने वाली काली घटाओं के खतरे से बचा जा सके और जिन बुरी परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़ा है उनसे आगे न गुजरना पड़े। यह सर्वविदित है कि अखण्ड ज्योति कागज छापकर बेचने वाली कम्पनी नहीं है। यह एक धार्मिक संस्थान है, जहाँ मनुष्यों की मनोभूमि को सात्विकता के ढांचे में ढाला जाता है कारखानों में सड़े गले लोहे को भी तपा, गला कर ठोक पीट कर, रेत-रगड़कर एक उपयोगी औजार बनाया जाता है, अखण्ड ज्योति के अध्यात्मिक कारखाने में सड़े-गले, टूटे-फूटे, काई और जंग लगे हुए हृदय एवं मस्तिष्कों को इस प्रकार सुधारा, बनाया एवं बदला जाता है कि वे कुछ से कुछ हो जायं, दुख दारिद्र की कालिमा छोड़ कर सुख सौभाग्य के प्रकाश से चमकें। इस प्रयोगशाला द्वारा अपने परिवार का हर सदस्य यथोचित लाभ उठावे इसके लिए उनसे व्यक्ति गत संबंध भी स्थापित किये गये हैं। अपनी दशाब्दी के अवसर सम्मेलन बुलाने की अभिलाषा अखण्ड ज्योति पूर्ण न कर सकी, पर इन तीन मार्गों से आगे तीन उद्देश्यों को किसी हद तक पूरा करने का प्रयत्न किया है। इस शुभ अवसर पर वह, मानव जाति की सच्ची सेवा, धर्म भावना की दिशा में और भी अधिक तपश्चर्या एवं तेजी के साथ कार्य करने की प्रतिज्ञा करती है। साथ ही वह पाठकों से भी यह आशा करती है कि अपनी आत्मिक तथा भौतिक शक्तियों से इस पुनीत मार्ग में हमारा सहयोग करे। सहयोग ही शक्ति है और करने से ही सेवा होती है। अधिक फल प्राप्त करने के लिए अधिक कार्य करना होता है। आइए, हम और आप मिलकर अधिक काम करने के लिए आगे बढ़ें। यदि आप दूसरों को सुधारना चाहते हैं तो पहले स्वयं सुधरने का प्रयत्न करिये।


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