सब कुछ ब्रह्ममय है।

July 1947

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(श्री स्वामी विवेकानंदजी)

ब्रह्म की उपासना करने से आपको किसी का भय न रहेगा। सिर पर आकाश फट पड़े या बिजली गिर पड़े तो भी आपके आनंद में कमी न होगी। साँप और शेरों से लोग भले ही डरें आप निर्भय रहेंगे, क्योंकि उन क्रूर जन्तुओं में भी आपका शान्तिमय स्वरूप आपको दीख पड़ेगा। जो ब्रह्म से एक रूप हुआ, वही वीर-वही सच्चा निर्भय है। भगवान् ईसामसीह का विश्वासघात से जिन लोगों ने वध किया, उन्हें भी उसने आशीर्वाद ही दिया। सच्चे, निर्भय अंतःकरण के बिना यह बात नहीं हो सकती ‘मैं और मेरा पिता एक हूँ’ ऐसी जहाँ भावना हो वहाँ भय की क्या मजाल है कि वह पास में आने का साहस करे? सब विश्व को जो अपने में देखता है- उसमें तल्लीन होता है वही सच्चा उपासक है, उसी ने जीवन का सच्चा कर्त्तव्य पालन किया है। हमारे विचार, शरीर और मन जितने निकट हैं, उससे भी निकट परमात्मा है, उसके अस्तित्व पर ही मन, विचार और शरीर का अस्तित्व निर्भर है। हर एक वस्तु का यथार्थ ज्ञान होने के लिये ब्रह्म ज्ञान होना चाहिये। हमारे हृदय के अत्यन्त गूढ़ भाग में उसका वास है। सुख, दुःख, शरीर और युगों के बाद युग आते हैं और निकल जाते हैं, परंतु वह रूप अमर है। उसी के सत्य होने से संसार भी सत्य है। उसी के सहारे हम देखते, सुनते और विचार करते हैं। वह तत्व जैसा हमारे अंतःकरणों में वैसा ही क्षुद्र कीटों में भी है।

यह बात नहीं कि सत्पुरुषों के हृदय में उसका वास है और चोरों के में नहीं, जिस दिन हमें इस बात का अनुभव होगा, उसी दिन सब संदेह मिट जायेंगे। जगत् का विकट प्रश्न हमारे आगे उपस्थित है, इसका उत्तर ‘सर्व खल्विंद ब्रह्म’ इस भावना के अतिरिक्त क्या हो सकता है? भौतिक शास्त्रों ने जो ज्ञान सम्पादन किया है, वह सच्चा ज्ञान नहीं, सत्य ज्ञान उनसे दूर है। उनका ज्ञान विशुद्ध ज्ञान मंदिर का सोपान भर है। ‘सब कुछ ब्रह्ममय है’ यह अनुभव होना ही सच्चा ज्ञान है। यही धर्म का रहस्य है, विवेचक बुद्धि के आगे इसी धर्म ज्ञान की विजय होगी।


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