आसुरी प्रगति

July 1947

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(श्री स्वामी शिवानंद सरस्वती)

संसार में ऐसा कोई नहीं है, जिसमें कोई दोष न हो अथवा जिससे कभी गलती न होती हो। अतएव किसी की गलती देखकर जलो मत और न उसका बुरा चाहो।

दूसरों को सीख देना मत सीखो, अपनी सीख मानकर उसके अनुसार बन जाना सीखो। जो सिखाते है, खुद नहीं सीखते, -सीख के अनुसार नहीं चलते, वे अपने आपको और जगत को भी धोखा देते हैं।

सच्ची कमाई है- उत्तम से उत्तम सद्गुणों का संग्रह। संसार का प्रत्येक प्राणी किसी न किसी सद्गुण से सम्पन्न है। परन्तु आत्म गौरव का गुण मनुष्यों के लिये प्रभु की सबसे बड़ी देन है। इस गुण से विभूषित प्रत्येक प्राणी को संसार के समस्त जीवों को अपनी आत्मा की भाँति ही देखना चाहिये। सदैव उसकी ऐसी धारणा रहे कि उसके मन, वचन एवं कर्म किसी से भी जगत् के किसी जीव को क्लेश न हो। ऐसी प्रकृति वाला अन्त में परब्रह्म को पाता है।

परन्तु यदि कोई शत्रुता अथवा घृणा से वशीभूत होकर रामायण इत्यादि धर्मग्रंथों को नष्ट करता है अथवा दूसरों को अपने आगे झुकने को बाध्य करता है एवं दूसरे को अनेकों प्रकार से पीड़ा पहुँचाने में ही अपने को सुखी समझता है तो वह रावण का बड़ा भाई है और उसे तो बकासुर, तृणावर्त, केशी आदि निशाचरों का अवतार ही समझना चाहिये।

जो दूसरे पर अन्याय होते देख न्याय की रक्षा के लिये अथवा न्याय के स्थान के लिये अपने समय, धन अथवा जीवन तक की भेंट चढ़ाने को तैयार रहता है, वास्तव में उसका नाम सदैव अमर रहता है। परन्तु जो पारस्परिक घृणा एवं ईर्ष्या के कारण संसार में अशाँति फैलाते हैं वे स्वयं अशाँत रहते हैं और ऐसी प्रकृति वालों का शीघ्र ही नाश होता है। आसुरी प्रकृति का शीघ्र ही नाश होता है। क्योंकि इसका प्रासाद सत्य की आधारशिला पर नहीं है।

यह विचार छोड़ दो कि उसके धमकाने के बिना अथवा बिना छल कपट के तुम्हारे मित्र, साथी स्त्री-बच्चे या नौकर-चाकर बिगड़ जायेंगे। सच्ची बात तो इससे बिलकुल उल्टी है।

प्रेम, सहानुभूति, सम्मान, मधुर वचन, सक्रिय हित, त्याग और निश्छल सत्य के व्यवहार से ही तुम किसी को अपना बना सकते हो। तुम्हारा ऐसा व्यवहार होगा तो लोगों के हृदय में बड़ा मधुर और प्रिय स्थान तुम्हारे लिये सुरक्षित हो जायगा। तुम भी सुखी होओगे और तुम्हारे संपर्क में जो आ जावेंगे, उनको भी सुख शाँति मिलेगी।


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