आम्र-कल्प

July 1947

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री डॉ. विट्ठलदास मोदी, गोरखपुर)

साधारणतः सभी लोग कल्प के माने शरीर बदलना ही समझते हैं। जब शरीर बदल गया तब रोग कहाँ? पुराने रोग तो पुराने चोले के साथ ही चले जाते हैं, कल्प से मिले नये चोले में रोग का स्थान कहाँ? किसी रोग के लिए कल्प कीजिए किसी चीज का कल्प कीजिए, माने होते हैं आप अपने रोग को जड़ मूल से नष्ट करने का अनुष्ठान कर रहे हैं। इसलिए कल्प के अर्थ के साथ ही कुछ कष्ट सहने का, इंद्रियों को वश में करने का एवं कुछ विशेष संयम का भी मान होता है। दूसरे कल्पों में कष्ट की बात हो सकती है, पर आम्र कल्प में कष्ट कहाँ? वहाँ तो आनंद ही आनंद है। ठंडे पानी से भरे हुए मिट्टी के नाँद में हरे, पीले, रसीले सुमधुर, सुगंधित आम भिगो दिये गये हैं, चार आदमी उसके चारों ओर बैठ जाइये और फिर एक एक आम का रस लीजिए और छक छक कर तृप्त होकर चूसिए, और आपने आम खा लिए तो लीजिए धारोष्ण दूध आ रहा है। इसे भी पीजिए। बस, पूरा हुआ काम। यही कल्प है। इसमें कष्ट का प्रवेश कहाँ? आम का कल्प करना कुछ दिन देवताओं का भोजन ग्रहण करना है।

आम के कल्प से दुबले मोटे बनते हैं, खुरदरी त्वचा, स्वच्छ सलवण हो आती हैं, अशक्तता जाकर शरीर सुपुष्ट होता है, आँखों में तेज भरता है, दाँत साफ हो जाते हैं, एवं कपोलों पर लालिमा छा जाती है, कब्ज चला जाता है और शरीर में उत्साह एवं उमंग का संचार होता है।

पर यह सब होता क्यों हैं? इसके दो कारण हैं। पहला आम और दूध में क्षारों एवं विटामिनों का आधिक्य, दूसरे आम-दूध की सुपाच्यता। अनेक रोग किसी विटामिन अथवा क्षार की कमी के कारण होते हैं और बहुत से रोग रक्त में अम्लता बढ़ जाने से। आम्र कल्प दोनों ही प्रकार के रोग हरता है। अभावों को मिटाता है एवं रक्त में क्षारों का आधिक्य और अम्लता को दूर करता है। यदि मनुष्य का भोजन संतुलित हो, उसमें उचित मात्रा में श्वेतसार (गेहूं, चावल) प्रोटीन, (दाल दूध) चिकनाई (घी तेल) हो तो आदमी बीमार ही न पड़े। पर जब संतुलित का सवाल न कर अधिकतर रोटी, दाल, चीनी, घी, तेल चरपरे एवं तले पदार्थों पर आदमी रहने लगता है तो उसकी पाचन शक्ति बिगड़ने के साथ रक्त अम्लमय हो जाता है। फलतः कब्ज, अपच के साथ साथ अनेक रोग होते हैं। पर आम्र कल्प में आप केवल आम दूध पर रहने लगते हैं। सारे अप्राकृतिक खाद्यों से आपका पिंड छूट जाता है और आम में यथेष्ट फुजला होने के कारण कब्ज शीघ्र टूटता है और शरीर को नया बनाने, रक्त को बदलने के पथ पर लग जाते हैं।

वैज्ञानिकों का कहना है कि श्वेतसार आठ घंटे में पचकर शर्करा बनता है। इसके बाद ही उसका उपयोग हमारा शरीर कर पाता है। वह शर्करा पके आम में स्वाभाविक रूप से रहती है, अतः आम के शरीर में पहुँचते ही शरीर उसका उपयोग करना आरंभ कर देता है एवं उसे शक्ति मिलने लगती है। वह पाचन शक्ति जो भारी गरिष्ठ चीजें पचाते-2 थक गई थी, नाकाबिल हो गई थी, पाचन के भारी काम से छुट्टी पा जाती है और आराम मिलने से धीर-धीरे सशक्त होकर अपनी पूर्व शक्ति सुधरने का यही सही रहस्य है। और आम के साथ दूध भी तो रहता है। बिना दूध के आम्र यज्ञ की पूर्णाहुति हो ही नहीं सकती। हमारे वैद्य मित्रों की राय है कि बिना दूध के आम का कल्प चल नहीं सकता, पर मेरी वैसी राय नहीं है। मैं अपने रोगियों को पहिले कुछ दिन आम ही खिलाता हूँ, फिर उसके बाद दूध शुरू होता है। और दूध तो पूर्ण भोजन है, क्यों प्रकृति उसे उस शिशु के लिए पैदा करती है जो दूध के सिवा अन्य कोई चीज ग्रहण नहीं कर सकता। अतः वह दूध में शरीर के लिए आवश्यक सभी सामान भरती है। असल में दूध भोजन का मापदंड है। उस भोजन में जिसमें वे सबके सब तत्व नहीं हैं जो दूध में होते हैं उसे संतुलित कह ही नहीं सकते। अतः संतुलन को ठीक करने के लिए दूध की जरूरत हुआ करती है। दूध की शर्करा एवं चिकनाई सी दूसरी शर्करा एवं चिकनाई मिलना कठिन है। दूध का प्रोटीन भी सर्वश्रेष्ठ एवं हलका माना जाता है। आम में प्रोटीन होता है और चिकनाई नाम मात्र की होती है, अतः आम्र कल्प में आम के साथ दूध का मेल मिलाया गया है।

यही कारण है कि आम्र कल्प से प्रायः सभी रोग, विशेषतः पाचन की गड़बड़ी व रक्त में अम्लता से पैदा होने वाले रोग शीघ्रता से जाते हैं उनमें से कुछ के नाम जिन पर मुझे स्वयं आरोग्य मंदिर गोरखपुर में अनुभव हुआ है- दुर्बलता, रक्ताभाव, स्नायुदौर्बल्य, धातुदौर्बल्य नपुँसकता, पुराना कब्ज, अग्निमाँद्य, आरंभिक अवस्था में वाय, अनिद्रा, रक्तचाप की कमी या अधिकता, गठिया, दमा, हृदय की कमजोरी आदि।

आम्र कल्प करें कैसे?

यदि आप दुर्बल हैं, तो तीन चार दिन, और मोटे हैं तो मोटापे के हिसाब से पाँच, सात दिन केवल पानी पीकर रह जायं और रोज सेर डेढ़ सेर गुनगुने पानी का एनिमा लेते रहें, ताकि पाचन प्रणाली को थोड़ा आराम मिल जाए एवं आंतों से पुराना सड़ा मल निकल जाय। आगे यदि कल्प काल में कब्ज रहे तो आध सेर पानी का एनिमा नित्य लेने में भी कोई हर्ज नहीं है। फिर यदि आपने तीन दिन का उपवास किया है तो पहले दिन खूब पतले रस वाले छोटे छोटे चार चार आम सबेरे, दोपहर और शाम को चूसिए, यदि तीन दिन से अधिक का उपवास किया है तो उपवास की लंबाई के अनुसार पहले दिन में तीन बार, एक से चार आमों तक का रस पाव भर पानी में निचोड़ कर एवं छानकर पीजिए। जो भी आम आप काम में लाइये उन्हें चार घंटे तक पानी में जरूर भिगो दीजिए। दूसरे दिन आम चूसना शुरू कर दीजिए और धीर धीरे भूख के अनुसार आमों की संख्या बढ़ा लीजिए। तीन चार दिन केवल आम चूसकर ही रहिए, फिर प्रत्येक आहार के साथ पाव पाव भर गाय का दूध लेना शुरू कीजिए। सबेरे शाम कच्चा दूध लेना चाहिए और दोपहर को सवेरे का गरम करके रखा हुआ दूध। इस दूध को भी आम की ही तरह चूसिए, दूध और भी सुपाच्य हो जायगा। धीरे धीरे दूध की मात्रा आध सेर तक बढ़ाई जा सकती है और भूख अधिक लगने पर आम - दूध के दो आहारों के बीच में भी दूध पिया जा सकता है। प्यास लगने पर पानी जरूर पीना ही चाहिए। इतनी ही है आम्र कल्प की विधि।

केवल आम पर तीन चार दिन रह जाने से लाभ यह होगा कि आँतों में पुराने मल की सड़न से पैदा हुए शत्रु कृमियों का नाश हो जायगा एवं मित्र कृमियों की संख्या बढ़ेगी, जिससे पाचन एवं निष्कासन क्रिया दुरुस्त होगी एवं यदि वायु होती होगी तो वह शाँत होगी। दूध शुरू हो जाने पर यह कार्य उतनी तेजी से नहीं हो पाता। थोड़े दूध में कृमिनाशक शक्ति नहीं है। दूसरे दूध का उपयोग भली प्रकार हो सके उसके लिए भी उसे कृमिरहित पाचन प्रणाली चाहिए।

कल्प के लिए आम- कल्प के लिए कोई भी आम हो सकता है। नाम गिनाऊं तो संख्या सैकड़ों तक पहुँचेगी, पर एक ही बात याद रखिए - आम मीठे और पतले रसवाले होने चाहिए। ये गुण बीजू आम में ही मिलेंगे। आम डाल के हों तो अच्छा है पाल के आमों से भी काम चलता है। आप कलमी आम का भी कल्प कर सकते हैं, मुझे उसमें कोई एतराज नहीं है, पर आप यह देख लें कि आप कलमी आम के गूदे को इतना चबावें, मुँह में इतना घुलालें कि उसका गूदा आपके मुँह में पतले रस में परिणत होने के बाद ही गले के नीचे उतरे। कलमी आम का खतरा कलमी आम में नहीं, हमारी जल्दी जल्दी खाने की प्रवृत्ति में है।

एक खतरा- आम के अमृतमय स्वाद की प्रशंसा करना व्यर्थ है। उसके विशिष्ट स्वाद के कारण ही लोगों का इसे भूख से अधिक खाने की ओर झुकाव रहता है। यह अनुचित है। आम खाते समय यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि दूध भी पीना है। बीच बीच में दूध की घूँटे भरते रहा जाय हमेशा इतनी ही मात्रा में आम लिये जायें कि दूसरे आहार के समय भूख कसकर लगे। आम दूध के दिन में तीन आहारों की बच्चों और जवानों को ही जरूरत होती है, अधेड़ और बूढ़ों के लिए दो आहार काफी हैं। हाँ, आम्र कल्प के आरंभ में जब दूध न लिया जाय, तब आम चूसने के बाद दूध की जगह पानी पीना चाहिए। आम के पचने में जो सहायता मिलती है, वह इसके जलाधिक्य का फल है, वह जल आम चूसने के बाद पीना चाहिए। यों तो लोग कल्प की अवधि चालीस दिन मानते हैं, पर आम्र कल्प तो लम्बा चलना चाहिए जितने दिन चल सके दो ढाई महीने भी। इससे लाभ ही लाभ है किसी प्रकार की हानि की तो संभावना ही नहीं है। जब कल्प समाप्त करना हो, तो पहले दिन दोपहर को दूध आम की जगह चोकर समेत आटे की एक हलकी सी रोटी, कुछ हरी तरकारियाँ और कुछ आम भी लिये जायं। दो तीन दिन में दोपहर को भूख के अनुसार रोटी सब्जी खाने लग जाना चाहिए। सुविधा हो तो दोपहर को या शाम को रोटी सब्जी और दिन में आम दूध का भोजन महीनों चल सकता है। जो दो तीन सप्ताह से अधिक समय तक आम्र का कल्प न कर पावें वे इस मिश्रित भोजन पर दो तीन सप्ताह जरूर बितावें। एक बाद रोटी सब्जी और दूसरी बार आम दूध शुरू कर देने के बाद। आप जब चाहें स्वास्थ्य मय साधारण भोजन पर आ जायं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: