स्वामी दयानन्द गायत्री के प्रति अनन्य श्रद्धा रखते थे। उनके गुरु श्री विरजानंद गायत्री के अनन्य भक्त थे और नियमित रूप से गायत्री का जप करते थे। “श्रीमद्दयानंद प्रकाश” श्री स्वामी दयानन्द के जीवन चरित्र की प्रमाणिक पुस्तक है। उसमें से कुछ ऐसे उद्धरण नीचे दिये जाते हैं जिनसे श्री स्वामी जी के गायत्री प्रेम का पता चल सकता है।
“ग्वालियर महाराज को स्वामी जी ने सलाह दी की भागवत सप्ताह की बजाय गायत्री पुरश्चरण किया जाय।”
“मुलतान में उपदेश के समय स्वामी जी ने गायत्री मंत्र का उच्चारण किया और कहा कि यह मन्त्र सर्वश्रेष्ठ है। चारों वेदों का यही मूल गुरु मन्त्र है। सब ऋषि मुनि इसी का जप किया करते थे।”
“फर्रुखावाद के पण्डितों के प्रश्नों का उत्तर देते हुए स्वामी जी ने कहा- गायत्री जप जो वेदोक्त रीति से करें तो बड़ा अच्छा फल होता है”
“रियासत जयपुर के इलाके के हीरालाल, कायस्थ से माँस मदिरा छुड़ाकर उसे गायत्री याद कराई। उन दिनों स्वामी जी उपासना की विधि लोगों को संध्या और गायत्री बताते थे।”
“स्वामी जी की आज्ञानुसार अनूप शहर, दानपुर, कर्णवास, अहमदगढ़, रामघाट, जहाँ गीराबाद से अनुमानतः चालीस के लगभग विद्वान ब्राह्मण गायत्री का जप करने के लिए बुलाये गय और जप अर्ध शुक्ल पक्ष में पूरा हुआ। तत्पश्चात स्वामी जी की कुटिया पर हवनकुंड बनाया गया, कर्मकाण्डी वेदपाठी ब्राह्मणों को ब्रह्मा होता आदि बनाकर यज्ञ हुआ।”
“घोड़ल सिंह आदि के यज्ञोपवीत कराये, हवन एक दिन हुआ परन्तु गायत्री का जप दस दिन हुआ।”