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Akhand Jyoti
Year 1947
Version 2
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July 1947
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विचारवान वे हैं जो नाशवान भौतिक वस्तुओं को बटोरने की अपेक्षा, आत्मिक समृद्धि का संचय करते हैं।
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Page Titles
सत्य की अकूत शक्ति पर विश्वास कीजिए।
सद्ज्ञान का संचय करो।
देवता, मनुष्य और राक्षस
आसुरी प्रगति
मनुष्यता ही धर्म है।
लक्ष के लिए बढ़ो! जीवन को सफल बनाओ।
दुनिया में एकता पैदा करो।
प्रसन्न रहने से सब दुख दूर हो जाते हैं।
सब कुछ ब्रह्ममय है।
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मानसिक व्यभिचार से बचिए।
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पाप कर्म क्या क्या हैं?
उदार दृष्टिकोण की आवश्यकता
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स्वामी दयानंद का गायत्री प्रेम
आत्म-विकास का प्रथम सोपान
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आप भी समाधि लगा सकते हैं।
सम्मिलित कुटुम्ब के लाभ
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आम्र-कल्प
प्रत्यक्ष फलदायिनी योग की गुप्त शिक्षाएं
अवसर को मत चूकिए।
मनुष्य का शरीर है परोपकार के लिये
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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