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August 1947

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थोड़े पाप की भी उपेक्षा न करो। एक-एक बूँद पानी से घड़ा भरा जाता है। इसी प्रकार थोड़ा-थोड़ा पाप करते रहने से भी मनुष्य कुछ समय में पाप पंक में डूब जाता है।

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जो निर्दोष पुरुष को दोष लगाता है, उस मूर्ख को उसका पाप लौट कर लगता है। जैसे वायु के रुख फैंकी हुई धूल सहज ही अपने ऊपर आ पड़ती है।

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जिसने अपने आपको जीत लिया उसकी विजय किसी भी बड़े सेनापति की विजय से कम नहीं।

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विजय से बैर पैदा होता है। पराजय से दुख उत्पन्न होता है। जो जय और पराजय से ऊपर है वही सुखी रहता है।


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