विशेषतः ईश्वर दो प्रकार से मनुष्यों के धर्म-अधर्म और न्यायी-अन्यायी होने की परीक्षा करता है। पहला साँसारिक विशेषाधिकार और विशेष सुखों की सामग्री देकर दूसरा अधिक से अधिक कष्टों को देकर।
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