अति सर्वत्र वर्जयेत्।

August 1947

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शास्त्रकारों ने सब कामों में अति का विरोध किया है। कुछ विशिष्ठ आत्माएं असाधारण तेज अपने साथ लेकर आती हैं, उनकी गति विधि आरम्भ से ही असाधारण होती हैं, उनके कार्य भी लोकेत्तर होते हैं। ऐसी विशिष्ठ आत्माओं की बात छोड़कर सर्वसाधारण के लिए मध्यम मार्ग ही उचित तथा उपयुक्त बैठता है।

भगवान बुद्ध ने ‘मंझम भग्ग‘ का- मध्यम मार्ग का- आचरण करने के लिए सर्वसाधारण को उपदेश किया है। बहुत तेज दौड़ने वाले जल्दी थक जाते हैं। और बहुत धीरे चलने वाले अभीष्ट लक्ष तक पहुँचने में पिछड़ जाते हैं। जो मध्यम गति से चलता है वह बिना थके, बिना पिछड़े उचित समय पर अपने गन्तव्य स्थान तक पहुँच जाता हैं।

हाथी जब किसी नदी को पार करता है तो अपना हर एक कदम बड़ी सावधानी से रखता है। आगे की जमीन को टटोल कर उस पर एक पैर जमाता है-जब देख लेता है। कि कोई खतरा नहीं तो उस पर बोझ रखकर पिछले पैरों को हटाता है। इस गति विधि से वह उस भारी काम को पूरा कर लेता है। यदि वह जल्दबाजी करे तो वह गहरे पानी में डूब सकता है, किसी दलदल में फंस सकता है या किसी गड्ढ़े में औंधे मुँह पटक खाकर प्राण गंवा सकता है। साथ ही यदि वह कदम बढ़ाने का साहस न करे, पानी की विस्तृत धारा को देखकर डर जाये तो नदी पार नहीं कर सकता। हाथी बुद्धिमान प्राणी है। वह अपने शरीर के भारी भरकम डीलडौल का ध्यान रखता है। नदी पार करने की आवश्यकता अनुभव करता है, पानी को विस्तृत फैलाव को समझता है और पार करते समय आने वाले खतरों को समझता है। इन सब बातों का ध्यान रखते हुए वह अपना कार्य गंभीरतापूर्वक आरम्भ करता है। जहाँ खतरा दीखता है वहाँ से पैर पीछे हटा लेता है और फिर दूसरी जगह होकर रास्ता ढूँढ़ता है। इस प्रकार वह अपना कार्य पूरा कर लेता है।

मनुष्य को भी हाथी की सी बुद्धिमानी सीखनी चाहिए और अपने कार्यों में मध्यम गति से पूरा करना चाहिए विद्यार्थी कितनी ही उतावली करे एक दो महीने में अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर सकता, कर भी लेगा तो उसे जल्दी ही भूल जायेगा। क्रम क्रम से, नियतकाल में पूरी की हुई शिक्षा ही मस्तिष्क में सुस्थिर रहती है। पेड़, पौधे, वृक्ष, पशु-पक्षी सभी अपनी नियत अवधि में परिपक्व, फल देने लायक तथा वृद्ध होते हैं। यदि उस नियत गति विधि में जल्दबाजी की जाय तो परिणाम बुरा होता है। हमें अपनी शक्ति, सामर्थ्य, योग्यता, मनोभूमि, परिस्थिति आदि को ध्यान में रखकर निर्धारित कार्यों को पूरा करना चाहिए।

बहुत खाना, भूख से ज्यादा खाना बुरा है- इसी प्रकार बिल्कुल न खाना भूखे रहना बुरा है। अति का भोग बुरा है पर अमर्यादित तप भी बुरा है अधिक विषयी क्षीण होकर असमय में ही मर जाते हैं, पर जो अमर्यादित अतिशय तप करते हैं, शरीर को अत्याधिक कस डालते हैं वे भी दीर्घ जीवी नहीं होते। अति का कंजूस होना ठीक नहीं, पर इतना दानी होना भी किस काम का कि कल ही खुद को दाने दाने का मुहताज बनना पड़े। आलस्य में पड़े रहना हानिकारक है पर सामर्थ्य से अधिक श्रम करते रहकर जीवनी शक्ति को समाप्त कर डालना भी लाभदायक नहीं। कुबेर बनने की तृष्णा में पागल बन जाना या कंगाली में दिन काटना दोनों ही स्थितियां अवाँछनीय हैं।

नित्य मिठाई ही खाने को मिले तो उससे अरुचि के साथ-साथ दस्त भी शुरू हो जायेंगे। भोजन में मीठे की मात्रा बिल्कुल न हो तो चमड़ी पीली पड़ जायेगी। बहुत घी खाने से मंदाग्नि हो जाती है पर यदि बिल्कुल घी न मिले तो खून खराब हो जायगा। बिल्कुल कपड़े न हों तो सर्दी में निमोनिया हो जाने का और गर्मी में लू लग जाने का खतरा है पर जो कपड़ों के परतों से बेतरह लिपटे रहते हैं उनका शरीर पके आम की तरह पीला पड़ जाता है। बिल्कुल ना पढ़ने से मस्तिष्क का विकास नहीं होता पर दिन रात पढ़ने की धुन में व्यस्त रहने से दिमाग खराब हो जाता है आंखें कमजोर पड़ जाती हैं।

घोर, कट्टर, असहिष्णु सिद्धान्तवादी, बनने से काम नहीं चलता। दूसरों की भावनाओं का भी आदर करके सहिष्णुता का परिचय देना पड़ता है। अन्ध भक्त बनना या अविश्वासी होना दोनों ही बातें बुरी हैं। विवेकपूर्वक हंस की भाँति नीर क्षीर का अन्वेषण करते हुए ग्राह्य और अग्राह्य को पृथक करना ही बुद्धिमानी है। देश, काल और पात्र के भेद से नीति, व्यवहार और अग्राह्य को पृथक करना ही बुद्धिमानी है। देश, काल और पात्र के भेद से नीति, व्यवहार और क्रियापद्धति में भेद करना पड़ता है यदि न करें तो हम अतिवादी कहे जायेंगे। अतिवादी-आदर्श तो उपस्थित कर सकते हैं, पर नेतृत्व नहीं कर सकते।

आदर्शवाद हमारा लक्ष होना चाहिए, हमारी प्रगति उसी ओर होनी चाहिए, पर सावधान! कहीं अपरिपक्व अवस्था में ऐसी बड़ी छलाँग न लगाई जाय, जिसके परिणाम स्वरूप टाँग टूटने की यातना सहनी पड़े। कड़े कार्यों को पूरा करने के लिए मजबूत व्यक्तित्व की आवश्यकता है। मजबूत व्यक्तित्व धैर्यवानों का होता है। उतावली करने वाले छिछोरे या रेंगने वाले आलसी नहीं, महत्वपूर्ण सफलताएं वे प्राप्त करते हैं जो धैर्यवान होते हैं, जो विवेक पूर्वक मजबूत कदम उठाते हैं, और जो अतिवाद के आवेश से बचकर मध्यम मार्ग पर चलने की नीति को अपनाते हैं। नियमितता, दृढ़ता एवं स्थिरता के साथ समगति से कार्य करते रहने वाले व्यक्तियों के द्वारा ही महान कार्यों का सम्पादन होता है।


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