विजयी आध्यात्मिक रथ

October 1946

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(प्रो.- श्री गुणवन्तसिंह जी गूँदर खेडा)

राम रावण युद्ध के समय-रावण को सुन्दर सुदृढ़ रथ पर चढ़े हुए देख तथा श्री रामचन्द्र जी को नंगे पैर जमीन पर खड़े देखकर विभीषण के मन में संदेह हुआ कि इस प्रकार पदाति-राम जी रावण को कैसे जीतेंगे। वह श्री राम जी से बोला आप रथ हीन हैं सुदृढ़ रथारुढ़ रावण को कैसे जीतेंगे? तब श्री रामजी ने स्थूल काष्ठमय रथ की अपेक्षा आध्यात्मिक रथ को बताते हुए समझाया कि तात्! प्रिय! ऐसा आध्यात्मिक रथ जिसके पास होता है उसी की निश्चित विजय होती है।

रावण रथी विरथ रघुवीरा।

देखि विभीषण भयउ अधीरा॥

सौरज धीरज तेहि रथ चाका।

सत्यशील दृढ़ ध्वजा पताका॥

बल विवेक दम परिहित घोरे।

क्षमा कृपा समता रजु जोरे॥

ईश भजन सारथी सुजाना।

बिरती चर्म सन्तोष कृपाना॥

दान पर सुबुद्धि सक्ति प्रचंडा।

वर विग्यान कठिन को दण्डा॥

अमल अचल मन त्रोण समाना।

सम जम नियम सिलीमुख नाना॥

अवच अभेद विप्र गुरु पूजा।

एहि सम विजय उपाय न दूजा॥

सखा धर्म मय असरथ जाकें।

जीतन कहँन कतहुँ रिपु ताकें॥

अर्थ- उस आध्यात्मिक रथ के पहिए, 1. शौर्य 2. धैर्य हैं, सत्य और शील मजबूत ध्वजा और पताका हैं। बल, विवेक, दम-इन्द्रियों का वश में होना और परोपकार ये चार घोड़े हैं। क्षमा, दया, समता रूपी डोरियों से जुड़े हुए हैं। ईश्वर भजन ही चतुर सारथी है। वैराग्य ढाल है, सन्तोष तलवार है। दान-फरसा है, बुद्धि प्रचण्ड शक्ति है। श्रेष्ठ विज्ञान कठिन धनुष है। निर्मल और अचल शाँत मन तरकस के समान है। यम नियम ही अनेक तीर हैं, इसके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं है।


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