आशावादी बनो!

October 1946

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(ले.- श्री चम्पालाल कर्णावट भोपालगढ़)

जिस पुरुष के सदृश होने की आप इच्छा करते हैं, उसको आदर्श बना लें और दिल में यह विचार कर लें कि ‘हम में कार्य करने की विलक्षण शक्ति है। उस आदर्श के प्रति हम दृढ़ श्रद्धा बना लें तथा इस विचार पर कायम रहें कि हमें अपनी मनोवाँछित वस्तु अवश्य ही प्राप्त होगी।’

आप अपने मन में दुर्बलता के विचार न आने दें। कायरता का साम्राज्य न जमने दें। असफलता एवं पराजय के विचार अपने इस स्वच्छ सलिल हृदय में न घुसने दें। आप यह निश्चय रखें कि जिस सिद्धि के लिए हम वसुँधरा पर आये हैं, वह प्राप्त करके ही जावेंगे। इससे इतर विचार यदि दिल में प्रवेश करें तो शीघ्र ही बाहर निकाल फेंके। हमेशा वे ही विचार आने दें जिससे अपना हित हो। अहितकर भावों को देश निकाला दे दें।

आह! आशा में अद्भुत शक्ति है। यही

हमें सफलता प्राप्त करने के लिए उकसाती रहती है। आशा ही सुख एवं शाँति की खान है। कभी अपने मन में निराशाजनक भावों को स्थान न दो। निराशा मन को मलीन करती हुई कार्य करने की शक्ति को नष्ट करती है। अतः हमेशा ऐसा ही समझो कि हमारा कार्य अवश्य सफल होगा।

इसीलिए आशावादी बनो। इससे हमारे भावों में काफी परिवर्तन हो जायेगा। हमारे जीवन की उन्नति में अपूर्व वृद्धि होगी। यदि हमारा मन साफ है और अपने उद्देश्य की ओर जा रहा है तो निश्चय समझो कि वह हजारों शत्रुओं पर भी अकेला विजय प्राप्त कर सकता है।


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