(प्रोफेसर श्री रामचरण महेन्द्र एम. ए.)
यदि आप प्रसन्न मुख एवं अह्वादित रहते हैं, अलमस्त और आनन्दी स्वभाव के हैं, तो प्रतिघात और प्रतिकूलताओं को आप हंसते-हंसते चुटकियों में उड़ा सकेंगे। आपके इष्ट मित्र आपको देख कर एक अजीब आकर्षण का अनुभव करेंगे। उत्साही मुद्रा आपके व्यक्तित्व का विशिष्ट अंग है। इसके विपरीत यदि आप प्रसन्न रहने के आदी नहीं है, खिन्न तथा उदास रहते हैं, तो इसका अभिप्राय यह है कि आप संसार की घटनाओं तथा अड़चनों से परास्त हो गए हैं। जीवन को भार स्वरूप समझ बैठे हैं, किसी प्रकार जीवन की गाड़ी खींच रहे हैं। इस परिस्थिति से निकलने के लिए एक बार दिन भर की घटनाओं पर दृष्टि डालिये। आपको किस-किस बात की फिक्र है? कौन-कौन कार्य करने हैं? आपके क्या-क्या कर्त्तव्य हैं? साथ ही प्रतिकूलताओं से युद्ध करने के लिए आपके पास कौन-कौन से साधन हैं। आपके कष्टों को अतिश्योक्ति पूर्ण दृष्टि से न देखिए साथ ही अपनी शक्तियों का मूल्य नीचा न आँकिये। यदि आपके पास जिम्मेदारी का बोझ है, तो साथ ही उसे उठाने की ताकत भी आपके हाथ पाँवों में मौजूद है। अपने उत्तरदायित्वों को बढ़ा-बढ़ा कर न देखो। जो वास्तविक वस्तु स्थिति है, उसी पर दृष्टि एकाग्र करो।
यदि आप गंभीर चिन्तनशील प्रकृति के हैं, बात को समझ बूझ कर ही स्वीकार करते हैं, तो आपके इर्द-गिर्द आने वाले सभी व्यक्ति आपसे सलाह मशवरा लेंगे। चिन्तनशील व्यक्ति श्रद्धा एवं आदर के पात्र होते हैं। लेकिन गंभीरता की अति करना मूर्खता है। वृद्धि होकर गम्भीरता एवं चिंतन शुष्क निराशावादिता, दार्शनिकता या (Melancholia) उदासी, विवाद तथा चिंताकुलता जैसे मानसिक रोगों में परिणीत हो जाता है। मस्तिष्क के तन्तुओं का अत्यधिक तनाव बड़ा घातक है। इससे कभी-कभी प्रमाद तक हो सकता है।
यदि आप किसी भी वस्तु को गम्भीरता से नहीं देखते, यों ही हंसी हंसी में टाल देते हैं या बचा जाते हैं, तो आप में अभी तक बाल स्वभाव का आधिक्य है। आपका स्वभाव मजेदारी में लगा है। उसमें तितली जैसी चंचलता वर्तमान है। विकास का समय आते ही जहाँ जरा सा जोर पड़ा कि स्वभाव मचलने लगता है। यदि आप क्षुद्र चीजों पर मोहित हो जाते हैं, बाजार में रंग-बिरंगी वस्तुओं को देखकर उन पर लट्टू हो जाते हैं, तो अभी दीखने में बुड्ढे होते हुए भी अभी आप बच्चे ही हैं। जीवन को गम्भीरता से देखिये और अपने स्वभाव का परिष्कार कीजिए।
यदि आप में उत्साह की गर्मी है अपने नित्य प्रति के व्यवहार में उत्साह से कार्य करते हैं, अपने पेशे में दिलचस्पी लेते हैं, तो समझ लीजिए कि आप उन्नति के पथ पर चल रहे हैं किन्तु यह स्मरण रखें कि कहीं यह जिन्दगी समाप्त न हो जाय। यदि आप में उत्साह नहीं है तो इसका अभिप्राय यह है कि आपका दिल उस कार्य को करना नहीं चाहता है। आत्मबल तथा इच्छा शक्तियाँ उत्साह के साथ-साथ चलती हैं। वह कारण मालूम कीजिए जिसके कारण आप अपने कार्य में अरुचि दिखा रहे हैं दृढ़ता से मन को वश में कीजिए।
यदि आप में हास्य की वृत्ति है तो उसे बाहर निकालिये। हंसी का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। हास्य आकर्षक व्यक्तित्व का प्रमुख लक्षण है। अनेक जीवन-उलझनें हास्य की वृत्ति से हल हो जाती हैं। यदि आप में हास्य-वृत्ति नहीं तो उसे उत्पन्न कीजिए। हास्य न होने का एक कारण आन्तरिक भय है। इस हीनता की भावना का उन्मूलन कीजिए। यदि आप मजाक करते हैं तो गंदे मजाक से सावधान रहिए। दूसरे का मजाक करने से पूर्व उनके मजाक का बुरा न मानने का प्रण कीजिए।
यदि आप आशावादी और आस्तिक हैं, तो आप सही मार्ग पर चलते रहेंगे। लेकिन आपका आशावाद भक्ति, प्रेम तथा सत्य के आधार पर निर्भर होना चाहिए।
यदि आप निराशावादी या नास्तिक हैं, तो बड़ी भूल कर रहे हैं। चिंता आपको जीते जी चिता में धकेल सकती है। यदि आप जो कुछ आप कर सकते हैं, करते जा रहे हैं तो फिर निराश होने की क्या आवश्यकता है? भविष्य पर निर्भर रहिए।