मन को पवित्र बनाओ!

October 1946

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(लेखक- श्री स्वामी रामतीर्थ जी)

मन की शाँति बढ़ाओ। अपने मन को शुद्ध सात्विक विचारों से परिपूर्ण करो। याद रखो कि मन चंगा तो कठौती में गंगा, की कहावत के अनुसार मन को दृढ़ एवं पवित्र बनाओ, फिर तुम भगवान को भी प्राप्त कर सकोगे। वेदान्त की शिक्षा है कि ‘दूसरों की इच्छाओं का या अपनी ही इच्छाओं का गलत इस्तेमाल न करो।’ अगर तुम अपने मन की स्थिरता कायम रखो, तो वे सब इच्छायें, जो तुम्हारे मन में प्रकट हो रही हैं, काबू में आयेंगी। यदि तुम उनके प्रति यथार्थ भाव रखो, तो बड़े ही विचित्र ढंग से ठीक समय पर तुम्हें इसका अनुभव हो जायेगा। अपनी इच्छाओं के प्रति भ्राँत भाव रखने ही से तुम बने काम को बिगाड़ देते हो और अवाँछनीय परिस्थितियों को उत्पन्न करते हो।

मन को पवित्र बनाने के मामूली साधन यह है- सुबह सूर्य निकलने से बहुत पहले उठो प्रातः शौचादि से निवृत्ति होकर थोड़ी देर स्वच्छ वायु का अकेले सेवन करो। इससे तुम्हारा मन प्रफुल्लित होगा। शरीर में स्फूर्ति आयेगी। फिर दिन में ऐसे काम करो जिससे दूसरों को कष्ट न पहुँचे, दूसरों की स्त्रियों की ओर मत देखो, दूसरों का द्रव्य पाने की इच्छा न करो। भगवान के प्यारे भक्तों का आदर करो, उनकी बात ध्यान से सुनो व उन पर अमल करो। मन में भ्राँति न पैदा होने दो। सुख में हर्ष व दुख में क्लेश के भाव सावधानी से धीरज से न आने दो। दिन भर में कुछ समय अकेले रहो। सोचो कि तुमने दिन भर में किसी को सताया तो नहीं, पीड़ितों की सेवा की व आम तौर पर जन-हित का कौन सा काम किया? रोज ऐसा सोचने से मन में बुरे विचार पैदा होना बंद हो जाएंगे और इस तरह तुम्हारा मन पवित्र व स्वच्छ हो जाएगा।

किसी तरह की शंकाओं को मन में जगह न दो। याद रखो कि शंकायें मन को कमजोर करती हैं। हमेशा शंकित हृदय वाले अपने हर काम में असफल रहते हैं। भगवान पर भरोसा रखो। किसी काम को करने से पहले उस पर खूब विचार कर लो। उस काम के करने का सही ढंग सोच लो, फिर तर्क बुद्धि को छोड़कर दृढ़ता से उसे करने में लग जाओ। तुम्हें अवश्य ही सफलता मिलेगी।

मन को इन्द्रियों का दास हरगिज न बनाओ। ऐसा अभ्यास करो कि इंद्रियाँ ही मन की सेविका बनें। एकाग्रता का अभ्यास करो। एकान्त में मनन करने से ऐसा हो सकता है। हर चमकीली भड़कीली चीज पर मन को न चलाओ। सादा वस्त्र पहनो, सात्विक भोजन करो और कभी भी अश्लील पुस्तकें न पढ़ो, न भद्दी तस्वीरें ही देखो। प्राणायाम का अभ्यास भी उत्तम है। संसार के नाना प्रपंचों से बचो। आडम्बर से मन मोड़ों। सादा जीवन व्यतीत करो। इससे तुम्हारा मन पवित्र हो जायेगा।

अच्छी, भगवद्भक्ति विषयक पुस्तकें पढ़ा करो। वीरों के चरित्रों का अध्ययन करो। छल-छिद्र से बचो। अपने जीवन को नियमित बनाओ। मन को प्रसन्न व पुष्ट बनाओ। समय पर प्रत्येक काम करने की आदत डालो। जहाँ तक हो, बहुत कम बोलो। इन बातों से तुम्हारा मन जरूर पवित्र होगा।

दूसरों की बुराई कभी मत सोचो। मलिन-विचारों से मन दूषित हो जाता है। अतः सावधानी पूर्वक सदैव शुभ विचारों का ही मनन किया करो। ‘आप भला तो जग भला’ के अनुसार अपना मन साफ रखो, तुम्हें दुनिया का मन साफ दिखाई देगा। मन की पवित्रता पर ही मनुष्य का चरित्र निर्भर है। चरित्रवान बनो। नम्रता, शील, सत्य और साहस से मन पवित्र होता है।


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