अध्ययन तथा मनन

May 1945

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(ले.- श्रीमती प्रीतम देवी महेन्द्र, साहित्य रत्न)

अध्ययन तथा अनुभव इन दो साधनों से ज्ञान प्राप्त होता है। इसमें से अध्ययन से जितना ज्ञान एक वर्ष में प्राप्त हो सकता है, उतना अनुभव से बीस बाईस वर्ष में प्राप्त हो सकता है। जो अनुभव से ज्ञान प्राप्त करता है उसे बड़ा कष्ट उठाना पड़ता है, घोर तकलीफों का सामना करना पड़ता है तब कहीं दो चार सत्य के कण (Particles Truth) प्राप्त होते हैं। इसके विपरीत अध्ययन से सहज में ही यथेष्ट ज्ञान संग्रह किया जा सकता है।

अध्ययन में महत्व गंभीरता का है। आप घंटों बैठे पढ़ते रहें और हाथ कुछ न लगे या थोड़ी देर पढ़े और जो कुछ पढ़े उसे दृढ़ता से अंतर्मन में दृढ़ कर लें। जो व्यक्ति अध्ययन के साथ मनन का उपयोग करता है वह शक्ति का उचित उपयोग करता है। लंबा चौड़ा बेमतलब का अध्ययन वैसा ही है जैसा खाया तो बहुत जाय, पर पचे दो चार रत्ती भर। ऐसा अध्ययन व्यर्थ है।

आप जो पढ़े उस पर विचार करें। सोचें कि बात कहाँ तक उचित है। आप स्वयं उस विषय पर क्या सोचते हैं कहाँ आपकी राय नहीं मिलती? इत्यादि। अध्ययन में प्रज्ञा, बुद्धि स्वातंत्र्य प्रतिभा बढ़नी चाहिए और यह तब ही संभव है जब आप अपने पढ़े लिखे को मनन द्वारा हजम करें, अपनी सम्पत्ति बनाएँ, उस पर कार्य करें।

मनन के सहयोग से नई कल्पना उत्पन्न होती है। नया उत्साह आता है तथा प्रतिभा प्राप्त होती है। जिस अध्ययन से प्रेरणा (Inspiration) प्राप्त न हुआ वह अध्ययन कैसा? बहुत सा पढ़ते ही पढ़ते रटने से कुछ भी हाथ नहीं लगता। पढ़ो कम, उस पर सोचो अधिक। “अल्पमात्रा, चिंतन, मनन तथा उस पर क्रिया” यही वास्तविक अध्ययन है।


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