हम अपने बनें।

May 1945

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(ले.- श्रीयुत महेश वर्मा, हर्बर्ट कॉलेज, कोटा)

तुम व्यर्थ में दूसरों के अनर्थकारी सन्देशों को ग्रहण कर लेते हो, तुम वह सब मान बैठते हो जो दूसरे कहते हैं। तुम स्वयं अपने आपको दुःखी करते हो और कहते हो कि दूसरे लोग हमें चैन नहीं लेने देते। तुम स्वयं ही दुःख का कारण हो, स्वयं ही अपने शत्रु हो। जो किसी ने कुछ कह दिया तुमने मान लिया। यही कारण है कि उद्विग्न रहते हो।

सच्चा मनुष्य एक बार उत्तम संकल्प करने के पश्चात् यह नहीं देखता कि लोग क्या कह रहे हैं, वह अपनी धुन का पक्का होता है। सुकरात के सामने जहर का प्याला लाया गया किन्तु उसकी राय को कोई न बदल सका। बंदा बैरागी को भेड़ों की खाल पहना कर काले मुँह गली-गली फिराया गया। काजियों ने कहा कि इस्लाम ग्रहण कर लो, तुम्हें प्राण दान-दिया जायगा। इस प्रस्ताव को सुनकर उसने कहा था-मैं जिस धर्म, जिस बात में, जिस तथ्य में, विश्वास नहीं करता उसे नहीं मान सकता। आज्ञा के उल्लंघन में उसे हाथी के पाँव तले कुचलवा कर मार डाला गया किन्तु उसने दूसरों की राय न मानी।

दूसरे के इशारों पर नाचना, दूसरों के सहारे पर निर्भर रहना, दूसरों की झूठी टीका-टिप्पणी से उद्विग्न होना मानसिक दुर्बलता है। जब तक मनुष्य स्वयं अपना स्वामी नहीं बन जाता, तब तक उसका सम्पूर्ण विकास नहीं हो सकता। दूसरों का अनुकरण करने से मनुष्य अपनी मौलिकता से हाथ धो बैठता है।

स्वयं विचार करना सीखो। दूसरों के बहकाए में न आओ। कर्त्तव्य-पथ पर बढ़ते हुए तुम्हें दूसरे क्या कहते हैं-इसकी चिन्ता न करो। यदि ऐसा करने का साहस तुममें नहीं है तो जीवनभर दासत्व के बंधनों से जकड़े रहोगे।


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