साधु की खोज

May 1945

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(श्री स्वामी सत्य भक्त जी वर्धा)

(1)

-भाई, तुम इन जानवरों की पूजा क्यों करते हो?

-साहब मैं साधुओं का पुजारी हूँ। एक बड़े भारी मुनिराज मुझे मिल गये थे, उनने कहा- बिना नग्नता के साधुता नहीं रहती बल्कि नग्नता हो तो साधु के सब गुण आ जाते हैं, इसलिए नग्न दिगम्बर को छोड़कर तुम किसी की पूजा न किया करो। तब से मैं नग्न दिगम्बरों की ही पूजा किया करता हूँ और इस कसौटी में पशु की सबसे बड़े दिगम्बर हैं।

-अरे क्या मूर्ख हुये हो। नंगा होने से क्या कोई साधु बन सकता है? तुम साधु की पहचान नहीं जानते?

-तो साधु की पहिचान क्या है?

-जो मुँहपत्ती लगाता है-वह साधु है, मुँह बन्द रखने से वायु के जीव नहीं मरते, समझे?

-जी हाँ, समझ गया।

(2)

-अरे भाई, तुम इस घोड़े की पूजा क्यों करते हो?

-जी, मैं साधु-पूजक हूँ-एक साधु जी ने कहा था कि मुँह बन्द रखने वाले साधु होते हैं। इस घोड़े को तोबरा लगा था, मैंने सोचा इससे अच्छा मुँह बन्द कौन करेगा, इसलिए इसकी पूजा कर रहा हूँ।

-पागल हुए हैं, तोबरा लगाने से कहीं कोई साधु होता है? साधु की पहिचान यह तोबरा नहीं, किन्तु जटा है। समझे?

-जी हाँ, समझ गया।

(3)

-अरे भाई, इस नारियल को वेदी पर क्यों रख छोड़ा है और ऊपर ये फूल क्यों डाल रक्खे हैं?

-जी इसकी पूजा की थी। मैं साधु-पूजक हूँ, एक साधु जी ने कहा था कि साधु की पहिचान जटा है,

इसलिये मैंने सोचा कि इस नारियल से बढ़कर स्वाभाविक जटा कहाँ मिलेगी, इसलिए इसकी पूजा किया करता हूँ।

-हिस्ट, इस तरह तुम साधु को नहीं पा सकते।

-तो कैसे पा सकता हूँ? जो जैसा कहता है उसी के अनुसार करता हूँ, फिर भी अभी तक मुझे साधु न मिला। क्या आप मुझे साधु के दर्शन करा सकते हैं?

-तुम क्या करते हो?

-मैं मजदूरी करता हूँ। आठ घंटा मजदूरी करके जो समय बचा पाता हूँ उसमें सुबह-शाम भगवान का भजन करता हूँ और मुहल्ले की विधवाएँ और बच्चे जो काम बता देते हैं-उनका काम किया करता हूँ। और मैं मूरख क्या कर सकता हूँ?

-बदले के लिए तो मैं मजदूरी करता हूँ ये सब पैसे के लिए नहीं करता, मजदूरी से पेट के लिए मिल ही जाता है, तब फालतू समय में किसी रोगी की सेवा कर दी, किसी अनाथ स्त्री का सामान ला दिया, किसी के बच्चे सम्हाल दिये, किसी की गाय लगा दी-इसमें मेरा क्या बिगड़ा? उनका भी काम हो गया अपना भी समय कट गया-इसमें पैसे के लेने-देने की क्या बात है?

-तब तुम्हें साधु-दर्शन हो जायगा।

-धन्य भाग्य! बताइये कब और कहाँ होगा?

-अब और यहीं। देखो! (आइना दिखाकर)

-क्या देखूँ यह तो आइना है। इसमें तो मेरा ही मुँह दिखता है?

-बस तुम्हीं साधु हो। जो कम से कम लेकर अधिक से अधिक देता है-वही साधु है। अच्छा साधु जी, मैं आपको प्रणाम करता हूँ। अब साधु दर्शन के लिए कहीं न भटकना।


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