अभ्यास से मिलता है।

May 1945

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(प्रो. श्री मोहनलाल जी वर्मा M.A. LL. B.)

ऐथेन्स निवासी सुकरात ग्रीस के सबसे बड़े तत्वज्ञानी थे। इन्होंने अपना जीवन नवयुवकों को नीति तथा आचरण सम्बन्धी शिक्षा देने तथा सद्गुणों से प्रेम करने में व्यतीत किया। इनका कहना था- सद्गुण ज्ञान हैं, दुर्गुण अज्ञान हैं।

एक दिन ऐथेंस में एक व्यक्ति आया जो यह दावा करता था कि चेहरा देखकर मैं किसी का भी चरित्र बता सकता हूँ। उसकी चतुराई की परीक्षा लेने के लिए सुकरात के उपदेश सुनने वाले तथा उनके अनुयायी नवयुवकों ने उस व्यक्ति को बुलाया और सुकरात की ओर संकेत करके कहा कि बतलाओ तो इस वृद्ध पुरुष का चरित्र कैसा है? सुकरात अत्यन्त कुरूप थे। काला भद्दा रंग, बेढंगा शरीर, बुरी तरह फैली हुई मूँछ दाढ़ी। जीवन की संध्या थी। बुढ़ापा अट्टहास कर रहा था।

सुकरात की ओर देखकर वह नवागंतुक बोला- यह वृद्ध दुर्गुणों से युक्त, सड़े दिमाग, तथा चिड़चिड़े स्वभाव का है। इस पर नवयुवक हँसे क्योंकि वे अपने गुरु के सद्गुणों एवं आश्चर्यमयी विभूतियों से परिचित थे किन्तु सुकरात ने मुस्कराते हुए कहा- “वह आगंतुक गलती नहीं कर रहा है। स्वभाव से मेरा झुकाव बुराई की ओर था, मैं बात-बात पर झगड़ता था, लोगों को परेशान करता था किन्तु चिरकालीन अभ्यास से मैंने अपनी कुप्रवृत्तियों को दबाकर अपने वश में कर लिया है। समस्त शक्तियों का गुप्त रहस्य यही है कि तुम अपने सद् उद्देश्यों को पुष्ट करो, और उनकी प्राप्ति का दीर्घकाल तक अभ्यास करो।”

जो कार्य जितनी बार किया जाता है, वह प्रत्येक बार सरल तथा प्रिय बनता जाता है। उसकी पहले की कठिनाइयाँ दूर होती जाती हैं, नई-नई बातें मालूम होती जाती हैं और प्रारंभ की समूल कठिनाइयाँ धीरे-धीरे सुगम होती जाती है। अभ्यास का ऐसा ही नियम है।

अभ्यास एक प्रकार का मानसिक-मार्ग अंतःमन के योग की बड़ी आवश्यकता पड़ती है। जब पहले-पहले तुम कोई कार्य हाथ में लेते हो तो अड़ियल अश्व की भाँति मन झिझकता, अड़ता-अकड़ता एवं बड़ी कठिनाई से मार्ग पर चलता है। अतः प्रत्येक कार्य का प्रारम्भ नितान्त कठिन एवं कष्टकारी होता है। एक बार के बाद जब पुनः उस कार्य को करते हो तो वह अपेक्षाकृत सरलता से होता जाता है। पुनः-पुनः करने से सफलता की अभिवृद्धि होती तथा कार्य अत्यन्त सुगम हो जाता है।

आप जिस उत्कृष्ट गुण, या आदत की बढ़ोतरी (Development) करना चाहते हैं उसे आरम्भ से ही दृढ़तापूर्वक प्रारंभ कर दीजिए। आरंभ में झिझक होगी किन्तु तुम इस नवीन मार्ग पर डटे रहो। उसे जितना उपयोग में लाओगे, वह उतना ही सुगम एवं दृढ़ बनेगा। बारंबार उसी मार्ग पर चलने से वह आदत बन जायगी।

मान लिया आप अनुभव करते हैं कि व्यायाम करना जरूरी है। लंगोट पहन कर एकान्त स्थान में भी आप चले जाते हैं। जब पहले दिन डंड लगा करके निकलते हैं तो शरीर अकड़ा सा, नस कुछ दुःखती हुई प्रतीत होती है। दूसरे दिन जी अपने आप चाहता। बस, यहीं से आपको दृढ़ता पकड़नी जरूरी है। व्यायाम दृढ़तापूर्वक दो-चार मास कर लेंगे तो पश्चात् आदत का रूप धारण कर लेगा, आपके खान-पान की भाँति यह भी आपके स्वभाव का महत्वपूर्ण अंग बन जायगा।

सभ्य देशों में हजारों व्यक्ति आध्यात्म के मार्ग का अभ्यास कर अपनी मनोवृत्तियों को उस दिशा की ओर मोड़ रहे हैं। तुम भी जो सद् कार्य करना चाहते हो मन की दृढ़ता के अभ्यास से पूर्ण कर सकते हो।


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